रुस-यूक्रेन जंग: अगर आज भी नहीं बनी बात, तो क्या यूरोप आ जाएगा यूक्रेन के साथ?
अपने से बेहद छोटे व कमजोर मुल्क यूक्रेन को तबाही की तरफ धकेल कर पूरी दुनिया को डराने वाले विध्वंसक रुसी हमलों का आज 12 वां दिन है.आज ही रुस व यूक्रेन के बीच तीसरे दौर की बातचीत भी प्रस्तावित है जिसके नतीजे के बारे में कोई नहीं जानता लेकिन उससे पहले रविवार को रुस ने अपने हमलों की धार तेज करते हुए नाटो देशों को धमकाने के साथ ही ये संदेश भी दे दिया है कि वे यूक्रेन की मदद के लिए आगे न आयें, वरना उन्हें भी खतरनाक अंजाम भुगतना होगा.
नाटो देशों के 40 हजार सैनिक रोमानिया में अपना मोर्चा संभाल चुके हैं, तो वहीं अमेरिका ने अपने सबसे खूंखार समझी जाने वाली डेल्टा फ़ोर्स के कमांडों समेत 7 हजार सैनिकों को जर्मनी में मुस्तैद कर दिया है.समंदर में रुस को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए अमेरिका ने अत्याधुनिक मिसाइल से लैस अपना जंगी जहाज ग्रीस में ला खड़ा किया है. नाटो के ही एक और ताकतवर देश फ्रांस की बात करें,तो उसने अपने सबसे बेहतरीन लड़ाकू विमान राफेल समेत चार जंगी विमानों को यूक्रेन से सटे देश रोमानिया में उतार दिया है. उधर, ब्रिटेन ने भी अपनी रॉयल एयर फोर्स के विमान को पोलैंड में तैनात कर दिया है.कुल मिलाकर नाटो देश की ताकतवर सेनाएं भले ही फिलहाल यूक्रेन की जमीन पर नहीं पहुंची हैं लेकिन उसने यूक्रेन को बचाने और रुस को घेरने की पूरी तैयारी कर ली है.
शायद यही वजह है कि रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इतने बौखला उठे हैं कि उन्होंने नाटो के सदस्य देशों के खिलाफ कार्रवाई करने वाले एक आदेश पर कल हस्ताक्षर करके अपनी सेना को ये छूट दे डाली कि अगर इनमें से कोई भी यूक्रेन की तरफ से लड़ता है,तो उसका भी वही अंजाम किया जाए.
दरअसल, पुतिन अभी तक यही मान रहे थे कि अमेरिका समेत नाटो के 30 देशों में से कोई भी यूक्रेन को बचाने के लिए आगे नहीं आयेगा और लड़ाई छिड़ने के दो-तीन दिन के भीतर ही यूक्रेनी राष्ट्रपति जेलेन्स्की देश छोड़कर भाग जाएंगे और रुस का पूरे मुल्क पर कब्ज़ा हो जायेगा.लेकिन कहते हैं कि सियासत और जंग का चोली-दामन का साथ रहता आया है लेकिन ये जरुरी नहीं कि सियासत में कामयाबी की बुलंदी छूने वाला एक जासूस जंग के मैदान को भी उतनी ही आसानी से फतह कर ले.लिहाज़ा,पुतिन के जासूसी दिमाग के आकलन पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वे इसका अंदाजा क्यों नहीं लगा पाये कि एक पिद्दी-सा मुल्क इतने दिनों तक रूसी सेना का मुकाबला भी कर सकता है.
यूक्रेन की धरती से इस युद्ध को कवर कर रहे देश-विदेश के तमाम न्यूज चैनलों को देखकर अगर उनकी समीक्षा करें,तो मोटेतौर पर नतीजा यही निकलता है कि यूक्रैन की जनता देशभक्त तो है ही लेकिन वो अपने राष्ट्रपति जेलेन्स्की पर भरोसा करते हुए उनके प्रति वफादार भी है.यही वजह थी कि वीडियो संदेश के जरिए उनकी मार्मिक अपील का लोगों पर इतना असर हुआ कि वे रुसी सेना को रोकने के लिए निहत्थे ही सड़कों पर उतर आए. पुतिन और उनकी सेना ने शायद सपने में कभी ये नहीं सोचा होगा कि बमों से बरसते शोलों के बीच उन्हें ऐसा नजारा भी देखने को मिल सकता है.यूक्रेन के लोगों की तारीफ़ इसलिये की जानी चाहिए कि इस जंग का नतीजा बेशक चाहे जो निकले लेकिन उन्होने निहत्थे रहकर हथियारबन्द सैनिकों को रोकने की जो कोशिश की, वह दुनिया में मानवता की एक अनूठी मिसाल बन गई.
रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि रुस ने रविवार को यूक्रेन के खिलाफ जो अपना आक्रामक रुख़ दिखाया है,उसका मकसद यही है कि पुतिन ये साबित करना चाहते हैं कि अगर इस लड़ाई को रोकना है,तो फिर यूक्रेन को उनकी हर बात माननी ही पड़ेगी क्योंकि जंग के मैदान में रुस का पलड़ा फिलहाल भारी है.पुतिन ने कल हुए भीषण हमलों के जरिये नाटो देशों को भी ये संदेश दिया है कि अभी भी वक़्त है कि आप सब यूक्रैन को बलि का बकरा बनाने से बचा लें,वरना उसे उकसाने का अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें.
वैसे इस जंग को रोकने के लिए पहली मध्यस्थता इजरायल ने की थी और उसके बाद अब तुर्की ने भी पुतिन को अमन से ये मसला सुलझाने की सलाह दी है.लेकिन लगता है कि पुतिन इस वक़्त खुद को दुनिया का सबसे बड़ा तानाशाह साबित करने पर उतारु हैं और शायद वे इतिहास की एक बड़ी ग़लती को दोहराने के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं.
रविवार को तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने पुतिन से फोन पर बात करके उन्हें समझाया कि आखिर पूरी दुनिया को आप विनाश की तरफ क्यों ले जाने की जिद पर अड़े हैं. पुतिन ने उन्हें जो जवाब दिया,उससे समझा जा सकता है कि अब उन्हें नाटो देशों की सेनाओं से मिलने वाले जवाब की भी कोई परवाह नहीं है.पुतिन ने कहा कि रूस, यूक्रेन में अपना सैन्य ऑपरेशन तभी रोकेगा, जब यूक्रेन लड़ना छोड़ दे और उसकी मांगें मान ले. दरअसल,रूस इस बात पर जोर दे रहा है कि यूक्रेन में उसकी तीनों सेनाओं की ओर से किया गया हमला एक विशेष सैन्य ऑपरेशन है. पुतिन हरेक के आगे इसी एक बात पर जोर दे रहे हैं कि यूक्रेन के 'नाज़ीकरण' को ख़त्म करने के लिए यह ज़रूरी है.
रुस के रक्षा मंत्रालय की तरफ से रविवार को चौंकाने वाला एक दावा ये भी किया गया कि अमेरिका के पेंटागन की मदद से यूक्रेन जैविक हथियार बनाने में जुटा हुआ था. ये हथियार रुस से लगती हुई सीमा पर बनाये जा रहे थे.हालांकि उसके इस दावे का सच तो कोई नहीं जानता लेकिन उसने यूक्रेन पर हमला करने के लिए अपनी तरफ से एक नई दलील और गढ़ ली है कि अगर अन्तराष्ट्रीय कोर्ट में कल से उसके खिलाफ कोई मुकदमा होता भी है,तो वह ये तर्क देगा कि अपने नागरिकों को जैविक आक्रमण से बचाने के लिए उसे मजबूरन यूक्रेन पर हमला करना पड़ा क्योंकि वह बातचीत की मेज पर नहीं आना चाहता था.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि रुस व यूक्रेन के बीच आज होने वाली बातचीत भी अगर बेनतीजा रही, तब क्या होगा? नाटो सेनाओं से मुकाबले के लिए पुतिन क्या उन परमाणु बमों का इस्तेमाल करेंगे जिनके गोदामों को अब उन्होंने खोल दिया है?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)