यूक्रेन: भारत समेत पांच देशों के राजदूतों को हटाने का आखिर क्या है रहस्य?
इधर हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में बेइंतिहा हिंसक होते हालात ने भारत के विदेश मंत्रालय की नींद हराम कर रखी है तो वहीं पिछले साढ़े चार महीने से रूस के युद्ध को झेल रहे यूक्रेन ने अपने भारत स्थित राजदूत को हटाकर एक और नई आफ़त खड़ी कर दी है. यूक्रेन ने भारत समेत पांच देशों के राजदूत को बर्खास्त करने का फ़रमान जारी किया है और उसमें एक बड़ा नाम जर्मनी का है जिसे यूक्रेन का मददगार समझा जाता है क्योंकि वह यूरोपीय यूनियन के अलावा नाटो का भी सदस्य देश है.
हालांकि यूक्रेन ने इन सबको हटाने की कोई वजह नहीं बताई है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय लिहाज़ से ये एक अहम घटना है. लिहाज़ा विदेशी कूटनीति के जानकार सवाल उठा रहे हैं कि ये फैसला यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की का ही है या फिर उन्होंने अमेरिका से चले रिमोट का बटन दबने के बाद ही इसे अंजाम दिया है?
बीती 24 फरवरी को जब दुनिया के दूसरे सबसे बड़े ताकतवर मुल्क रूस ने दुनिया के एक बेहद खूबसूरत व छोटे देश यूक्रेन पर हमला किया था तब उन तस्वीरों को देखकर संसार के 99 फीसदी लोगों ने माना था कि ये कोई जंग नही है बल्कि एक छोटे-से देश को कत्लगाह में बदलने का अहंकार है. दुनिया के बाकी मुल्कों का विरोध तो छोड़िए, रूस में ही बहुतेरे लोगों ने अपने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से ही गुहार लगाई थी कि एक छोटे-से मुल्क को मानवता के कत्ल की चरागाह न बनाएं. लेकिन रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी से अपने सफर की शुरुआत करके मुल्क की बादशाहत संभालने वाले पुतिन के बारे में अंतराष्ट्रीय मनोविश्लेषक कहते हैं कि वे सिर्फ सनक मिज़ाज ही नहीं हैं बल्कि वे जर्मनी के तानाशाह रह चुके अडोल्फ हिटलर से भी दो कदम आगे जाकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करवाना चाहते हैं.
उनका ये सपना कब व कैसे पूरा होगा ये तो शायद कोई नहीं जानता लेकिन इतना तय है कि यूक्रेन पर कब्ज़ा करने को लेकर उनकी इस सनक ने दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है. इसलिए अमेरिका समेत पूरा यूरोप अगर रूस से युद्ध विराम करने की अपील लगातार कर रहा है तो इसका मतलब ये नहीं है कि अमेरिका या नाटो देश रूस से डरे हुए हैं. दरअसल वे नहीं चाहते कि एक व्यक्ति की सनक दुनिया में ऐसा माहौल बना दे कि विश्व युद्ध छिड़ने की नौबत आ जाये जिसमें न जाने कितने लाखों बेगुनाह लोग मारे जाएंगे.
दुनिया में कोई सोच भी नहीं सकता था कि टीवी चैनल पर कॉमेडी करने वाला कोई शख्स उस देश का राष्ट्रपति भी बन सकता है. लेकिन व्लादिमीर जेलेन्सकी ने यूक्रेन का राष्ट्रपति बनकर ये कर दिखाया. उससे भी बड़ी बात ये है कि युद्ध के हालात में दुनिया के हर देश का राष्ट्राध्यक्ष सुरक्षा की चार नहीं बल्कि सातदिवारी में घिरा रहकर अपनी जान बचाने की प्रार्थना किया करता है. लेकिन पूरी दुनिया ने वो तस्वीर भी देखी है जब रूसी सेना की भीषण बमबारी के बीच यही जेलेन्सकी अपने सैनिकों का हौंसला बढ़ाने के लिए राजधानी कीव की सड़कों पर भी निकल आये थे. तब उनक़ी उस बेख़ौफ़ बहादुरी की तारीफ़ अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने भी की थी.
दरअसल, जेलेन्सकी ने भारत समेत पांच देशों में नियुक्त अपने राजदूत को बर्खास्त करने का जो फैसला लिया है वो सबको हैरान करने वाला है. भारत की बात तो समझ में आती है क्योंकि भारत ने इस पूरे हालात पर अभी तक तटस्थ रुख अपनाया हुआ है और उसने हर बार दोनों पक्षों से यही अपील की है कि इसे कूटनीतिक बातचीत करके सुलझाना ही एकमात्र विकल्प है और युद्ध इसका समाधान नहीं है. लेकिन यूक्रेन का ये फैसला अंतराष्ट्रीय बिरादरी में थोड़ा परेशान करने वाला इसलिए है कि जर्मनी में भी अपने राजदूत को बर्खास्त कर दिया है. यूक्रेन के राष्ट्रपति की वेबसाइट पर जारी आदेश के मुताबिक ज़ेलेंस्की ने जर्मनी, हंगरी, चेक गणराज्य, नॉर्वे और भारत में यूक्रेन के राजदूतों को निकाल दिया है. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने अपने राजनयिकों से यूक्रेन के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन और सैन्य सहायता जुटाने का आग्रह किया है. उन्होंने कहा है कि यूक्रेन 24 फरवरी से रूस के द्वारा किए गए आक्रमण को रोकने की कोशिश कर रहा है.
कहने को युद्ध के इस माहौल में जर्मनी बेशक यूक्रेन के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है लेकिन अडोल्फ हिटलर वाले इस देश की भी अपनी मजबूरियां हैं जिसके चलते वो रूस से खुलेआम कोई पंगा लेने की हिमाकत नहीं कर सकता. हकीकत में जर्मनी ने चाहे जितनी तरक्की कर ली हो लेकिन वह आज भी रूस से मिलने वाली गैस की सप्लाई पर सबसे ज्यादा निर्भर है. हालांकि यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए इसे एक बेहद संवेदनशील मामले के तौर पर ही देखा जाता है. लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख ये भी है कि इस मजबूरी के कारण जर्मनी और यूक्रेन के रिश्तों में काफा कड़वाहट भी आ गई है. दोनों देशों के रिश्तों के बीच खटास आने की एक बड़ी वजह कनाडा में मेंटिंनेंस से गुजर रही जर्मनी निर्मित टरबाइन बन गई है. जर्मनी ने कनाडा से कहा है कि वो यह टरबाइन रूस की नेचुरल गैस कंपनी गजप्रोम को लौटा दे ताकि वहां से यूरोप के लिए गैस की सप्लाई शुरू हो सके. लेकिन यूक्रेन ने इसका विरोध करते हुए कनाडा से कहा है कि अगर वो ये टरबाइन रूस देता है तो यह रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का खुला उल्लंघन होगा.
आगे क्या होगा कोई नहीं जानता लेकिन जो रूस महज़ दो-चार दिनों में यूक्रेन पर कब्ज़ा करने का सपना पाले बैठा था. वहीं छोटा-सा देश आज 136 दिन बाद भी उसके सामने मजबूती से डटा हुआ है, लोगों की रक्षा करने के साथ ही अपनी आन-बान और शान बचाने के लिए. ऐसे देश को चलाने वाले और इस जंग को झेलने वाले लोगों के लिए एक सलाम बनता है कि नहीं?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)