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Opinion: यूनिफॉर्म सिविल कोड 2024 चुनाव का बड़ा 'पॉलिटिकल गिमिक', इसे लाने के पीछे मोदी सरकार की है ये मंशा

यूसीसी का कोई कांक्रीट प्रपोजल सरकार की तरफ से नहीं आया है, वह क्या करना चाहते हैं, क्या जोड़ना चाहते हैं, क्या घटना चाहते हैं, इसका प्रस्ताव नहीं आया है. यह तो सभी जानते हैं कि भारत विविधता का देश है. यहां जितने धर्म के, जाति के, भाषाओं के लोग रहते हैं, वह शायद ही किसी और देश में हो. यहां जितने तरह के खानपान होते हैं, जितनी तरह की आदतें, संस्कृति, परिधान इत्यादि हैं, उनमें सरकार को पहले कन्सल्ट करना चाहिए था. हमें तो लगता है कि सरकार का यह कदम 2024 के चुनाव को देखते हुए है. सरकार चाहती है कि इन्हीं सब मामलों में, जो भावनात्मक हैं, जिनमें विवाद हो, सरकार जानबूझकर विवाद करना चाहती है और इसके पीछे जो बुनियादी सवाल हैं, जैसे बेरोजगारी का सवाल है, महंगाई का सवाल है, भुखमरी का सवाल है, ये सारे सवाल खत्म हो जाएं और धार्मिक ध्रुवीकरण का सवाल हो. फिर भी, चूंकि सरकार है और वह ये करना ही चाहती है तो पहले तो कांक्रीट प्रपोजल लाए. 

हमारे देश की मजबूती "विविधता में एकता"

अब मणिपुर के लोगों के, उत्तर पूर्व के लोगों के, आदिवासी समाज के लोगों के रस्म-रिवाज कुछ और हैं, मुस्लिम समाज के रस्म-रिवाज कुछ और हैं. मुस्लिम समाज में भी अलग-अलग तरह का समाज है, यहां तो कहा जाता है कि दस कोस पर बोली और पानी बदल जाता है. हमारे देश की ताकत तो 'अनेकता में एकता' है, उस पर सबको एक तरह के रंग में रंग देना तो थोड़ा लगता है कि बस, पॉलिटिक्स का हिस्सा है और इसमें कहीं से कोई गंभीर बात नहीं दिखती. हां, ये जरूर है कि मौजूदा सरकार का तो 2024 से पहले दो ही एजेंडा रहने वाला है. पहला, राम मंदिर और दूसरा यूनिफॉर्म सिविल कोड. और जगह-जगह जो दंगे और फसाद हो रहे हैं, हिमाचल से लेकर उत्तराखंड और मुंबई से लेकर बिहार में जो हुए हैं, वो बस जनता का ध्यान भटकाने और नाकामी को छुपाने के लिए हैं.

अब आप देखिए, मुसलमानों में चचेरी, फुफेरी, ममेरी बहनों से शादी हो सकती है, अपनी भांजी से शादी नहीं हो सकती है. वहीं, आंध्र प्रदेश में और कई अन्य समाज में ऐसा होता है कि भांजी से शादी सर्वोत्तम मानी जाती है. हमारे एक मित्र थे, पत्रकारिता में. उनका नाम कामेश्वर राव है, वो तो कहते थे कि वह आदमी उनके यहां खुशनसीब माना जाता है, जिसकी अपनी भांजी से शादी हो जाए. तो, कई तरह के रस्मो-रिवाज होते हैं. उसी तरह अलग-अलग समाज हैं, आदिवासी हैं, दलित हैं, उत्तर-पूर्व के हैं, मुसलमान हैं, तो सबमें अलग-अलग बातें हैं, संपत्ति का बंटवारा को लेकर अलग मामला है. कॉमन क्या है, इसमें...तो कॉमन यही है कि देश में सब मिल-जुलकर रहें. लोगों को रोजगार मिलें, सब भाईचारे के साथ रहें, अपने-अपने धर्म को मानते रहें, दूसरे के धर्म के प्रति आस्थावान भी रहें. यहीं तक तो कॉमन है, यहीं तक तो ठीक है. ईश्वर ने पांच ऊंगली बराबर नहीं बनाई न. सबका अलग-अलग काम है न. 

अव्यावहारिक और अप्राकृतिक है यूसीसी

तो, ये प्रकृति यानी नेचर के खिलाफ भी है. कुदरत ने सबको अलग-अलग बनाया है. सबका अलग-अलग डीएनए है. पहले होता था न कि अंगूठे का निशान लगता था. तो, सब कुछ आप फोर्ज कर सकते थे, लेकिन अंगूठे का निशान और आंखों की पहचान जो लेते हैं, उसका यही तो कारण है. अभी भी रजिस्ट्री में अंगूठे के साथ बाकी ऊंगलियों के निशान लेते हैं. ये इसलिए कि कुदरत ने एक इंसान को दूसरे इंसान से अलग बनाया है, तो आप सबको एक तरह से कैसे कर देंगे? ये अप्राकृतिक है, गैर-जरूरी है और सियासी है. फिर भी, ये लाएं तो सही. बताएं तो सही. फिर, इनको आटा-दाल का भाव पता चल जाएगा. जिसको ये टारगेट करना चाह रहे हैं, उससे पहले कई दूसरे मामले उठ खड़े होंगे.

देख रहे हैं, मणिपुर में क्या हो रहा है...किस तरह से दो जातियों का झगड़ा अब धार्मिक झगड़ा हो गया है. 200 से ज्यादा चर्च वहां जलाए गए हैं. वहां अमित शाह जी गए थे, संभालते क्यों नहीं हैं, प्रधानमंत्री उस पर बोलते क्यों नहीं हैं? तो, जो उनसे कुछ करोड़ का प्रदेश नहीं संभल रहा है, वे 140 करोड़ का देश क्या संभालेंगे, दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला देश कैसे संभालेंगे...और, नहीं संभल रहा है. एक लकड़ी से सबको नहीं हांक सकते हैं. कॉमन सिविल कोड वही है. 

ये पलिटिकल गिमिक है, 2024 के चुनाव को देखकर ये मामला उछाला गया है और देश के बुनियादी मसलों से ध्यान हटाने के लिए है. चीन क्या कर रहा है, हमारे देश की सरजमीं पर घुसा हुआ है, गैस-सिलेंडर 1200 का हो गया है, क्लाइमेट चेंज हो गया है, इतनी भीषण गर्मी पड़ रही है, सैकड़ों लोग यूपी-बिहार में गर्मी से मर गए हैं, देश में गृहयुद्ध की स्थिति है, इनके मंत्रियों का घर जला दिया जा रहा है, हो क्या रहा है? इस सब पर ध्यान लगाना चाहिए, तो इसकी जगह विवाद के विषय़ पर, जिस पर धार्मिक और जातीय दंगे हों, उसको छेड़ा जा रहा है. तो, सरकार आखिर चाहती क्या है? वह गृहयुद्ध करवाना चाहती है, देश के टुकडे-टुकड़े करना चाहती है या क्या चाहती है, यह समझ के बाहर है. अब भाई, अलग-अलग मामले हैं. जैन लोग मुंह पर कपड़ा बांधते हैं, कुछ जातियों में लाश गाड़ते हैं, कुछ में दफनाते हैं, नगा साधु नंगे होकर चलते हैं, तो सबको एक साथ कैसे हांक सकते हैं? यह सचमुच दिक्कत की बात है और अगर ये करेंगे तो फसाद होगा, दंगा होगा और यही इस सरकार की मंशा भी है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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