लॉ कमीशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड से जाने-माने धर्मगुरुओं और लोगों की राय मांगी है. केसीआर ने इस पर बयान दिया है कि धर्मगुरुओं को मठों-मंदिरों में पूजा करनी चाहिए, न कि राजनीति में शामिल होना चाहिए. उनके इस बयान के बाद समान नागरिक संहिता पर राजनीति शुरू हो गयी है. वैसे, अभी आसार हैं कि इस पर लॉ कमीशन की रायशुमारी के बाद शायद सरकार शीतकालीन सत्र में इसे संसद में पेश कर दे.
यूनिफॉर्म सिविल कोड से घबराहट
यूनिफॉर्म सिविल कोड के जिक्र से तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक में घबराहट हो गयी है. तेलंगाना में 27 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं, केरल में 33 प्रतिशत है, कर्नाटक में 20 फीसदी हैं. उत्तर भारत में एक पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी इसके खिलाफ हैं. तेलंगाना का चीफ मिनिस्टर यूसीसी से घबराहट में दिख रहे हैं. आखिर क्यों? इसलिए, क्योंकि केसीआर दुविधा में पड़ गए हैं. वह अगर यूसीसी का सपोर्ट करेंगे तो मुस्लिम वोट नहीं मिलेगा. अगर मुखालफत करेंगे तो हिंदू वोट नहीं मिलेगा. केसीआर दरअसल मुस्लिम वोट को बहला-फुसलाकर इतने दिनों तक तेलंगाना में राज करते रहे हैं, इसको नरेंद्र मोदी ने एक्सपोज कर दिया है. ओवैसी को पॉकेट में डाल कर केसीआर चुनाव लड़ते हैं.
ओवैसी हमेशा राहुल गांधी को गाली देते हैं, क्योंकि मुसलमान वोटर्स खुश होते हैं. उनको ये समझना चाहिए कि मुस्लिम महिलाओं को भी संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता है और अगर सिविल कोड लागू होता है, तो उनको भी फायदा पहुंचेगा. जो मुस्लिम औरत को प्रॉपर्टी राइट्स नहीं है, उनको यह अधिकार देनेवाले नरेंद्र मोदी हैं और इसी के लिए वह यूसीसी लाना चाहते हैं. इसी से सभी में घबराहट है. लॉ कमीशन को लोकसभा से पहले लोगों की नब्ज टटोलने का काम दिया गया है और केसीआर पहले राजनेताओं में हैं, जिन्होंने प्रतिक्रिया दी है. उनका यह रिएक्शन पॉलिटिकली सेंसिटिव है. केसीआर ने मुल्ला लोगों से भी बात करने का सुझाव दिया है.
मदरसों को आधुनिक बनाना जरूरी
हालांकि, आजकल तमिलनाडु, कर्नाटक और तेलंगाना के मुस्लिम युवाओं की हकीकत कुछ और है. वे मदरसा में नहीं पढ़ना चाहते. वे डिजिटली पावरफुल होना चाहते हैं. हिंदुओं से नफरत दूर कर वे समाज की मुख्य धारा में आना चाहते हैं. तेलंगाना में मुस्लिम यूथ की ये बातें शुरू हो गयी हैं. जैसे, योगी आदित्यनाथ ने मदरसा में कंप्यूटरीकरण किया है, आधुनिकीकरण किया है, केसीआर क्यों नहीं उसको यहां लागू कर रहे हैं, इसके पीछे कुछ तो बात है न. यूसीसी में भी ये प्रोविजन है. वहां मदरसा में कंप्यूटराइजेशन करने की बात है, ये एक शर्त है. जमीनी हकीकत ये है कि हिंदू वोट केसीआर से फिसल रहे हैं. केसीआर के इस बयान का नकारात्मक ही अर्थ जाएगा और हिंदू वोट उनसे फिसलेंगे. उनको हिंदू वोट नहीं मिलेगा. 2024 के पहले तो 2023 में तेलंगाना में विधानसभा के चुनाव हैं न. उसी तरह बंगाल में अभी पंचायत चुनाव हो रहे हैं तो वहां ममता जी पर भी निगेटिव असर होगा. कर्नाटक में भी होगा और तेलंगाना में भी होगा.
तेलंगाना में होगा ध्रुवीकरण
तेलंगाना में राजनाथ सिंह हों या निर्मला सीतारमण हों, वे ध्रुवीकरण कराएंगे और इसमें केसीआर का बयान भी एक कारण बनेगा. बीजेपी दरअसल खेल रही है. उनकी यह पॉलिटिकल स्ट्रेटेजी है. वह पानी में पैर रखकर देख रहे हैं कि वह कितना गहरा है. बेसिकली, वे अंदाजा लगा रहे हैं. यूसीसी हो या पाक ऑक्यूपाइड कश्मीर हो या कोई न कोई बम तो नरेंद्र मोदी की सरकार फेंकेगी ही. जो शीतकालीन सत्र होनेवाला है, संसद का नवंबर-दिसंबर में, उसमें ही यूसीसी इंट्रोड्यूस हो सकता है. ध्रुवीकरण जरूर होगा, हिंदू-मुस्लिम दोनों ही तरफ से इकट्ठा होंगे. जिस तरह योगी आदित्यनाथ की सरकार दोबारा आने में ट्रिपल तलाक ने योगदान दिया, वैसे ही नरेंद्र मोदी के लिए भी एक समुदाय वोट जरूर करेगा. अब इसको ड्रामा कहिए, सच्चाई कहिए या जो भी कहिए, लेकिन ये तो होनेवाला है. ध्रुवीकरण जरूर होगा. 1980 से जितने भी घोषणापत्र हैं, उसमें बीजेपी ने यूसीसी को हमेशा एक स्थान दिया है.
वाजपेयी जी उन चार चीजों को अलग हटाकर सत्ता में आए थे, जिनके लिए बीजेपी हमेशा लड़ी. उनमें एक कॉमन कोड भी था. नरेंद्र मोदी के लोकसभा में 303 सीटें आने के बाद उन्होंने 370 को हटाया. अब उनको 307 सीटें आ सकती हैं, 370 आ सकती हैं, 270 आ सकती है. 2024 में सीटें कितनी आएंगी, वह तो समय बताएगा, लेकिन यूसीसी भी इसी साल इंट्रोड्यूस होगा और यह नरेंद्र मोदी का ब्रह्मास्त्र है, इसको वह जरूर इस्तेमाल करेंगे.
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