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बजट में मिडिल क्लास से लेकर महिला-बुजुर्ग तक सभी को कुछ न कुछ मिला, लेकिन रह गई बस ये एक कमी

2023-24 का बजट अमृत काल का बजट है. बजट साल का सबसे बड़ा इकोनॉमिक फेस्टिवल होता है, उसी तरह जैसे चुनाव को लोकतंत्र का फेस्टिवल कहा जाता है. जहां तक इनकम टैक्स की बात है, पुराने टैक्स रिजीम में पांच लाख रुपये की तक की आय पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता पड़ता था. अब नए टैक्स रिजीम में 7 लाख रुपये तक की आय पर कोई टैक्स नहीं देना होगा. ज्यादातर लोग अभी शायद ओल्ड टैक्स रिजीम में हैं. मुझे लगता है कि सरकार नए न्यू टैक्स रिजीम को पॉपुलर करना चाहती है, जिससे ज्यादा से ज्यादा लोग इसके दायरे में आएं.

इनकम टैक्स में छूट से ज्यादा लाभ नहीं

देश के अंदर महंगाई बुहत ज्यादा है. इस वजह से मुझे नहीं लगता है कि 7 लाख रुपये की लिमिट करने से लोगों को ज्यादा कुछ फायदा होगा. अगर आप देखें तो आर्थिक सर्वे से ही ये जाहिर हो गया था कि कैपिटल एक्सपेंडिचर का बजट बढ़ेगा और वो इस बार के बजट में बढ़ा भी.

बेरोजगारी दर अलार्मिंग सिचुएशन पर

अगर आप बेरोजगारी दर देखें, तो आर्थिक सर्वे के मुताबिक जो अनपेड सेल्फ इंम्प्लायड लोग हैं, वो अब ज्यादा बढ़ गए हैं. जब यहां पर बेरोजगारी इतनी है, तो आप डिमांड कैसे बढ़ाएंगे. लेबर मार्केट में बेरोजगारी दर के हिसाब से अलार्मिंग सिचुएशन है. वूमेन पार्टिशिपेशन रेट भी कम हो गया है. महिलाओं के लिए स्कीम तो काफी बताई गई हैं, लेकिन लेबर फोर्स में महिलाओं की भागीदारी काफी कम है.

बजट में जॉब क्रिएशन पर फोकस नहीं

इस बार के बजट में जॉब क्रिएशन की बात ज्यादा नहीं हुई है. जैसे कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि लैब में जो डायमंड बनाए जाते हैं, वो इनोवेशन और टेक्नोलॉजी ड्रिवेन सेक्टर है. हम कह रहे हैं कि भारत का कैपिटल एक्सपेंडिचर बढ़ा है. इससे उद्योगों में तो काफी उत्साह रहता है. इससे प्राइवेट सेक्टर में निवेश बढ़ेगा. लेकिन बात ये है कि आप ऑटोमेशन की तरफ जा रहे हैं, यानी आप इंक्रीजिंनगली कैपिटल इंटेंसिव होते जा रहे हैं. ऑटोमेशन से रोजमर्रा की या रूटीन जॉब को काफी नुकसान हो रहा है. रोजगार कम होगा तो आय कम होगी. आय के कम होने से कंन्जूयमर डिमांड भी कम होगी.

जनसंख्या के हिसाब से रोजगार चाहिए

हम कुछ दिन में जनसंख्या में चीन से भी आगे निकल जाएंगे. हमारी जनसंख्या बहुत ज्यादा है. यहां गरीब भी बहुत हैं. कुपोषण भी बहुत ज्यादा है. ग्रोथ रेट तो 6% हासिल हो जाएगी, लेकिन समस्या ये है कि जिस हिसाब से हमारी जनसंख्या बढ़ रही है, उनके लिए रोजगार के अवसर नहीं बनाएंगे, तो काम कैसे चलेगा. आर्थिक सर्वे में भी कहा गया था कि कोरोना महामारी के बाद हमारी K शेप रिकवरी हुई है. K शेप का मतलब होता है कि जो रिच लोग हैं, उनको फायदा हुआ है, बाकियों को नहीं हुआ है. लेकिन आर्थिक सर्वे में कहीं भी इस बात को सपोर्ट नहीं किया गया है.  बजट में सरकार ने ऐसा कुछ नया नहीं किया है. इसमें सिर्फ यहीं बताया गया है कि हमारा एक्सपेंडिचर क्या होगा, रीवेन्यू क्या होगा. सिगरेट को हेल्थ इश्यू के नजरिए से नेगेटिव गुड्स माना जाता है, इसलिए सिगरेट पर ड्यूटी बढ़ाई गई है. चांदी पर ड्यूटी बढ़ाने से जाहिर होता है कि हम प्रोटेक्शनिज्म (संरक्षणवाद) और आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ रहे हैं.  ये बहुत अच्छा है, लेकिन मुख्य मुद्दा रोजगार है. रोजगार के मौके बढ़ने चाहिए.

बजट में कोई ख़ास बात नहीं

मेरे नजरिए से इस बजट में कोई ख़ास बात नहीं है. ये सामान्य बजट है. उम्मीद के मुताबिक कैपेक्स बढ़ाया गया है. अब ये देखना होगा कि लॉन्ग टर्म के हिसाब से ये कितना फायदेमंद साबित होगा. कैपेक्स ग्रोथ के लिए ही बढ़ाया गया है. कैपेक्स बढ़ाने का मतलब ही है कि आप ग्रोथ बूम लेकर आना चाहते हैं. लेकिन ये देखना होगा कि इसका ट्रिकल डाउन इफेक्ट क्या होगा क्योंकि ग्रोथ और डेवलपमेंट में बहुत अंतर होता है. ये देखने वाली बात होगी कि भविष्य में बाकी आम जनता पर इसका क्या असर पड़ेगा?

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]
 

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