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'दूर के ढोल सुहावने होते हैं, बजट पर सटीक बैठती है ये कहावत' जानें कीर्ति आजाद ने क्यों कहा ऐसा?

अगले साल आम चुनाव होना है और इसी को ध्यान में रखकर कई लोक-लुभावन चीजों को इस बार के बजट में डाला गया है. ये बताने का प्रयास किया गया है कि जो सैलरीड क्लास हैं, उनके लिए सरकार कुछ कर रही है. लेकिन देखा जाए तो सरकार ने सैलरीड क्लास को सिर्फ झुनझुना पकड़ाने का काम किया है.

जो आम आदमी हैं,  उनके लिए बजट में कुछ नहीं किया गया है. रोजगार को लेकर कुछ नहीं कहा गया है. महंगाई को कम करने पर भी कुछ नहीं कहा गया है. जीएसटी काउंसिल ने ये भी निर्णय नहीं लिया है कि पेट्रोल-डीजल पर जीएसटी लगाया जाए या नहीं. अगर जीएसटी लगता है, तो पेट्रोल-डीजल के दाम इतने कम होंगे कि सब्जियों, खाने के सामानों और फल के दाम कम हो जाएंगे. परिवहन कॉस्ट कम होने से महंगाई कम होगी, लेकिन बजट में पेट्रोल-डीजल पर कुछ नहीं कहा गया है. 

महंगाई की वजह टैक्स छूट का कोई फायदा नहीं

एक तरफ ये कह देना कि हम 80 करोड़ लोगों को खाना खिला रहे हैं, तो वो टैक्स कहां से जा रहा है, वो पैसा कहां से आ रहा है, उसमें हमारे टैक्स की ही पैसा लग रहा है. उसमें आप कहते हैं कि हम 7 लाख रुपये तक माफ कर देंगे, तो आपने महंगाई ही इतनी ज्यादा कर दी है कि इस छूट से कोई फायदा ही नहीं मिलेगा. जब तक आप उसे 10 से 12 लाख रुपये के बीच में नहीं करेंगे, तब तक आम लोगों को कोई फायदा नहीं मिलेगा. सरकार महंगाई कम करने के लिए बहुत सारे कदम उठा सकती है, लेकिन बजट में ऐसा नहीं किया गया. किसानों को उनकी फसल का सही भाव नहीं मिल पा रहा है. किसान, गरीब, बेरोजगार, महिला, इन सबके लिए बजट में कुछ नहीं है. सैलरीड क्लास वालों के लिए थोड़ी खुशी की बात है, लेकिन ये सिर्फ साल भर के लिए है, वो भी झुनझुना सरीखा है. आने वाले वक्त में देश पर इसका बुरा असर देखने को मिलेगा.

'दूर के ढोल सुहावने होते हैं'

'दूर के ढोल सुहावने होते हैं' ये कहावत इस बार के बजट पर सटीक बैठती है. जब बजट का विश्लेषण करेंगे, तब पता लगेगा कि इसमें आम आदमी के फायदे के लिए कुछ भी नहीं है. आर्थिक रफ्तार को अगर बनाए रखना है तो ये आवश्यक है कि आप अपने लोगों को सशक्त करें. प्रत्येक साल में दो करोड़ नौकरियों की बात हुई थी, अगर ऐसा किया जाता तो  पिछले 9 साल में 18 करोड़ नौकरियां मिल जाती. ऐसे में अगर हर घर में औसतन 5 आदमी है, तो 90 करोड़ लोगों को खाना मिलते रहता. ऐसा पहले कर दिए होते, तो आज लोक-लुभावन चीजों को बजट में डालने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

बजट तभी ठीक है, जब तक उसका उपयोग करने वाला आम आदमी बुनियादी जरूरतों से वंचित नहीं रह जाए. मनमोहन सिंह सरकार में कच्चा तेल 135-140 डॉलर प्रति बैरल हुआ करता था, जो कम होकर 40 से 50 डॉलर पर आ गया. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से भारत को रूस से सस्ता पेट्रोल-डीजल मिल रहा है. उसका लाभ सरकार ने लिया. आम आदमी को इसका लाभ नहीं पहुंचाया गया. 2014 में जब से मोदी सरकार आई है, पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार बढ़ाए गए. इसकी कीमतों में कमी नहीं होने से पूरी अर्थव्यवस्था पर असर पड़ा है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]
 

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