जरा सोचिये, आपने जिसे अपना सांसद चुनकर लोकसभा भेजा हो,वही अपनी पुलिस को डरपोक बताते हुए आपको दंगा भड़काने की सलाह दे,तो आप क्या करेंगे? अपना माथा पीटेंगे या अपने दिए हुए वोट को लेकर पछतायेंगे या फिर उस पार्टी के नेतृत्व से पूछेंगे कि ऐसे लोगों की बदजुबानी पर लगाम लगाते हुए पार्टी को आखिर लकवा क्यों मार जाता है? हिन्दू धर्म में भगवा चोला पहने हर शख्स को न सिर्फ सम्मान की नजर से देखा जाता है बल्कि वो उन्हें मिलता भी है. उसका सबसे बड़ा व जीता-जागता सबूत यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं. लेकिन उसी भगवा के सहारे देश की संसद तक पहुंचने वाला कोई जन प्रतिनिधि अगर अपनी जुबान से जहर उगलता है और एक खास समुदाय के खिलाफ लोगों को भड़काता है, तो उसे इस देश का कानून आख़िर जायज़ कैसे ठहरा सकता है?


उत्तर प्रदेश की उन्नाव लोकसभा सीट से बीजेपी के सांसद हैं साक्षी महाराज. वे पहले मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए थे और अक्सर अपने बड़बोले बयानों के जरिये वे तब भी मीडिया की सुर्खियां बटोरते रहे हैं. लेकिन इस बार उन्होंने नैतिकता की सारी मर्यादाएं लांघते हुए एक ऐसा भड़काऊ बयान दिया है, जिसे लोकतंत्र में कोई बर्दाश्त नहीं करेगा. उनके इस बयान को लेकर अगर कोई सुप्रीम कोर्ट की चौखट तक पहुंचेगा, तो वहां से भी इन माननीय सांसद को फटकार तो मिलेगी ही, लेकिन हो सकता है कि उनके खिलाफ कोई और सख्त आदेश भी आ जाये.


दरअसल, साक्षी महाराज ने अपनी फेसबुक पोस्ट में एक खास समुदाय की तस्वीर को पोस्ट करते हुए लोगों को सलाह दी है कि वे अपने घर में कोल्ड-ड्रिंक की दो पेटी और तीर कमान रखें. माननीय कहलाने वाले इन सांसद महोदय ने अपनी फेसबुक पोस्ट की शुरुआत ही इससे की है कि - "आपके गली-मोहल्ले या आपके घर पर अचानक से ये भीड़ आ जाए तो इससे बचने का कुछ उपाय है आपके पास!" उन्होंने आगे लिखा- "अगर नहीं है, तो कर लीजिए, पुलिस बचाने नहीं आएगी बल्कि खुद बचने के लिए किसी दड़बे में छिप जाएगी, जब यह लोग जिहाद करके वापस चले जाएंगे तब पुलिस डंडा ठोकने आ जाएगी और कुछ दिनों बाद मामला जांच कमेटी में जाकर खत्म हो जाएगा, ऐसे मेहमानों के लिये कोल्ड ड्रिंक की एक दो पेटी, कुछ ओरिजनल वाली तीर कमान हर घर में होनी चाहिए।।  जय श्री राम।।"


हम नही जानते कि कानून के मुताबिक सांसद महोदय का ये बयान कितना सही है या गलत. इसलिये उनके इस बयान पर कुछ कानूनी जानकारों की राय ली गई. दिल्ली हाइकोर्ट के एडवोकेट रवींद्र कुमार कहते हैं-" साक्षी महाराज का ये बयान विभिन्न समुदायों के बीच नफ़रत फैलाने और धार्मिक भावनाएं भड़काने वाला है. उनके खिलाफ भी वही जुर्म बनता है, जिस आरोप में शनिवार को मुम्बई पुलिस ने अमरावती की सांसद नवनीत राणा और उनके पति रवि राणा के खिलाफ मामला दर्ज करके उन्हें गिरफ्तार किया है. उनके इस बयान के आधार पर अगर कोई इसकी शिकायत पुलिस में करता है, तो उसे एफआईआर दर्ज करनी पड़ेगी. यदि पुलिस ऐसा नहीं करती है, तब अदालत का दरवाजा खुला है और कोई भी कोर्ट ऐसे भड़काऊ बयान के खिलाफ कानून के आधार पर एक्शन लेने से पीछे नहीं हटेगी."


उनके मुताबिक सांसद महोदय के ख़िलाफ़ एक और मामला ये भी बनता है कि उन्होंने पुलिस को निकम्मा, नाकारा और डरपोक बताने के साथ ही लोगों को अपनी सुरक्षा के लिए हथियार उठाने के लिए भी उकसाया है. इसलिये कि किसी इंसान पर बोतल फेंकना या तीर कमान के जरिये उसे चोट पहुंचाना भी कानूनन एक जुर्म है. हालांकि साक्षी महाराज का विवादों से पुराना नाता रहा है और अक्सर वे ऐसे बड़बोले बयान देते रहे हैं,जो मीडिया की सुर्खी बन जाये. 27 अक्टूबर 2020 को


उन्नाव की बांगरमऊ विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे बीजेपी के उम्मीदवार श्रीकांत कटियार के समर्थन में एक नुक्कड़ सभा में उन्होंने कहा था कि -"जिस गांव में कोई मुसलमान नहीं,वहां कब्रिस्तान भला क्यों होना चाहिए.उस जमीन का इस्तेमाल तो श्मशान स्थल बनाने के लिए होना चाहिए." पिछले दिनों महाराष्ट्र से उठे लाउडस्पीकर विवाद के दौरान भी साक्षी महाराज ने ये बयान दिया था कि "लाउडस्पीकर से न तो अजान पढ़ी जानी चाहिए और न ही हनुमान चालीसा बजाई जानी चाहिए."


वैसे भगवा वस्त्र पहनकर राजनीति में कूदने वाले साक्षी महाराज का वास्तविक नाम सच्चिदानंद हरि साक्षी है जिनका जन्म उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले के साक्षी धाम में हुआ था .उनके पिता आत्मानंदजी महाराज प्रेमी थे और माता मदालसा देवी लोधी थीं. साक्षी उस लोध समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जिसे उत्तर प्रदेश में ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के रूप में वर्गीकृत किया गया है.वे राम जन्मभूमि आंदोलन में भी शामिल रहे हैं और बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में एक आरोपी भी रहे हैं.


साल 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने  फर्रुखाबाद सीट से उनका टिकट काट दिया था, जिसके बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी के लिए खुलकर  प्रचार किया .चुनाव नतीजे आने के बाद  मुलायम सिंह ने औपचारिक रूप से उन्हें समाजवादी पार्टी का सदस्य बनाया. तब साक्षी महाराज ने खुले मंच से कहा था कि बीजेपी की नीतियां समाज के गरीब और पिछड़े वर्गों के अनुकूल नहीं हैं.


बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर ही पार्टी ने उनका टिकट काट दिया था. उसकी वजह थी कि उस समय साक्षी महाराज, वाजपेयी के एक करीबी सहयोगी ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या से जुड़े मामले में आरोपी थे. लेकिन बाद में सबूतों के अभाव मे वे उस आरोप से बरी हो गए. साल 2000 में उन्हें मुलायम सिंह यादव  ने ही सपा से राज्यसभा भेजा था. लेकिन कहते हैं कि " जात न पूछो साधौ की और चाहत न पूछो किसी नेता की". सो, साक्षी महाराज ने उसी पर अमल किया और वे 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव से पहले दोबारा बीजेपी में लौट आये.


उनकी राजनीति से किसी को तकलीफ़ नहीं है और होनी भी नहीं चाहिए लेकिन अगर उनके धार्मिक उन्माद फैलाने वाले ऐसे बयान का एक खास भीड़तंत्र समर्थन करता है, तो फिर समझ लीजिये कि हमारा देश लोकतंत्र के खात्मे की तरफ बढ़ रहा है. वह इसलिये कि वो महज़ भगवाधारी साधु नहीं हैं, बल्कि लोकतंत्र के उस सबसे बड़े मंदिर के चुने हुए एक नुमाइंदे हैं, जहां प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही नरेंद्र मोदी ने उस संसद की पहली सीढ़ी पर अपना शीश झुकाते हुए उसे नतमस्तक होकर प्रणाम किया था!



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