UP Elections 2022: उत्तर प्रदेश में पैदा हुए मशहूर कवि और गीतकार दिवंगत गोपालदास 'नीरज' ने बरसों पहले देश की राजनीति के हालात को अपनी कलम से कुछ ऐसे बयान किया था-


"ख़ुद-कुशी करती है आपस की सियासत कैसे,


हम ने ये फ़िल्म नई ख़ूब इधर देखी है."


लगता है कि उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव का ऐलान होने से पहले वहां भी कुछ ऐसी ही नई सियासी फ़िल्म के डायलॉग लोगों को सुनने को मिल रहे हैं.हालांकि एक -दूसरे पर आरोप लगाने के लिए नेताओं ने जिस नयी भाषा का इस्तेमाल शुरु किया है,वो भी सियासत की उसी पुरानी बोतल में वादों की नई शराब भरकर उसकी नुमाइश करने के प्रयोग से ज्यादा कुछ नहीं है.वह इसलिये भी कि नेता भी इस नब्ज़ को जानते हैं कि चुनाव से पहले अपने भाषणों में लच्छेदार भाषा के साथ ही शब्दों की नई परिभाषा दिए बगैर जनता को लुभाया नहीं जा सकता.


शायद इसीलिये मंगलवार का दिन यूपी की जनता के लिए नर्सरी की क्लास अटेंड करते हुए ABCD के नये अर्थ समझने वाला था.ये तो हम नहीं जानते कि वहाँ की जनता ने इस नए अर्थ को कितना समझा और वो इससे किस हद तक प्रभावित हुई होगी लेकिन राजनीति की सबसे बड़ी प्रयोगशाला समझे जाने वाले यूपी में अब बच्चों की ABCD ही राजनीतिक दिग्गजों का सबसे बड़ा हथियार बनती दिख रही है.आप-हम हों या नहीं लेकिन न्यूज़ चैनलों पर नेताओं के मुंह से ABCD की ये नई परिभाषा सुनकर देश के बच्चे जरुर हैरान हो रहे होंगे.वह इसलिये कि उन्होंने अपने नर्सरी स्कूल में इन चार शब्दों के जो अर्थ समझे थे,वे तो इसके बिल्कुल उलट हैं, लिहाज़ा उनका जीर्ण-परेशान होना इसलिये भी वाजिब बनता है कि देश के कर्णधार कहे जाने वाले ये नेता आखिर उनके लिए किस तरह के सुनहरे भविष्य का निर्माण कर रहे हैं.




सियासत में किसी भी चुनाव के दौरान अपने विरोधी दलों पर हमला करने का राम मनोहर लोहिया, चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी की अपनी एक व्यंग्यात्मक शैली व खास अंदाज हुआ करता था.विरोधी दल के खिलाफ अंग्रेजी की वर्णमाला के चुनिंदा शब्दों का उपयोग अपने मन-मुताबिक करना,उन्हें दोयम दर्जे का या यों कहें कि एक तरह से ओछी राजनीति करना लगता था और इसीलिये उन्होंने अपने सियासी जीवन में ऐसे जुमलों का इस्तेमाल करने से हमेशा परहेज़ ही किया.हालांकि ये अलग बात है कि पिछले कुछ सालों में इस तरह की नयी शब्दावली का प्रयोग करने का चलन कुछ ज्यादा बढ़ गया है और हो सकता है कि लोग भी ऐसी 'जुमलेबाजी' को पसंद करते हों.लेकिन अगर सचमुच ऐसा है,तो ये हमारी राजनीति को रसातल की तरफ ले जाने की एक शुरुआत है.


वैसे भी उत्तर प्रदेश वह सूबा है,जिसका किला बचाये बगैर दिल्ली के सिंहासन को सुरक्षित रखना भी बहुत मुश्किल है.शायद इसीलिये वहां की चुनावी सभाओं में मंगलवार को अचानक ABCD का ज़िक्र शुरू हो गया. पहले अमित शाह ने इसका मतलब समझाया,तो समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने भी इसी अंदाज़ में उसका जवाब देने में जरा भी देर नहीं लगाई. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को हरदोई की रैली में समाजवादी पार्टी पर हमला बोलते हुए कहा कि ''समाजवादी पार्टी की A, B, C, D ही उल्टी है. इनके A का मतलब है- अपराध और आतंक. B का मतलब है- भाई-भतीजावाद. C का मतलब है- करप्शन. D का मतलब है- दंगा.''


लेकिन सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भी उसी भाषा में इसका जवाब देकर पलटवार किया. अखिलेश ने अपने ट्वीट में लिखा, ''हाथरस, लखीमपुर, गोरखपुर, आगरा कांड जैसे अन्य कांडों की वजह से अब तो भाजपा के समर्थक भी भाजपा के खिलाफ खड़े होकर कह रहे हैं ABCD… मतलब : A = अब, B = भाजपा, C = छोड़, D = दी.''




लेकिन ऐसा नहीं है कि बीजेपी और सपा के बीच भाषा के इस नये प्रयोग के जंग की ये शुरुआत है.अभी तीन दिन पहले ही बीती 26 तारीख़ को अंग्रेजी शब्द 'P' का नया मतलब समझाने को लेकर भी दोनों के बीच बयानबाजी हो चुकी है.अमित शाह ने 26 दिसंबर को कहा था, "एसपी सरकार में उत्तर प्रदेश में तीन P अर्थात् परिवारवाद, पक्षपात और पलायन का बोलबाला था." इसका जवाब देते हुये तब  अखिलेश यादव ने पलटवार करते हुए कहा था, ''भाजपा के शासनकाल में 3P हैं- पाखंड, प्रताड़ना और प्राणघातक'.'


यानी, यूपी के सियासी संग्राम में सत्ताधारी बीजेपी और मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी शब्दों का नया अर्थ गढ़ने और उसका जवाब देने में कहीं भी पीछे छूटना नहीं चाहती.ऐसे में,सवाल उठता है कि यूपी के इस चुनाव में जनता के रोजमर्रा के सरोकार से जुड़े वे सारे मुद्दे कहां गायब हो गए,जिन्हें लेकर विपक्षी दलों को मुखरता से उठाते हुए सत्ताधारी पार्टी को न सिर्फ इस चुनावी दंगल में घेरना चाहिए था,बल्कि जनता को भी ये अहसास कराना चाहिए था कि वो सचमुच उनके हित की चुनावी लड़ाई लड़ रहे हैं.


जाहिर है कि वहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच ही है लेकिन बीजेपी के दिग्गजों ने बेहद चतुराई से सपा को अपने 'शब्दजाल' में घेरने की जो रणनीति बनाई है,उसमें वे कामयाब होते इसलिये भी दिखाई दे रहे हैं कि अब अखिलेश की सारी ऊर्जा उनके 'शब्दबाणों' का जवाब देने में ही खर्च हो रही है और वे असल मुद्दों से भटक रहे हैं.यही तो बीजेपी भी चाहती है. हालांकि कहना मुश्किल है कि इस सियासी महाभारत में जनता रुपी कृष्ण किसका साथ देगी लेकिन यूपी में ही पैदा हुए शायर मुनव्वर राणा ने कभी लिखा था-


"बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है,


बहुत ऊँची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है."



[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]