उत्तर प्रदेश में ब्लॉक प्रमुख के चुनावों में जिस तरह की हिंसा का दृश्य पूरे देश ने देखा, उसने लोकतंत्र को तो शर्मसार किया ही है, उससे भी ज़्यादा अहम सवाल ये खड़ा कर दिया है कि हमारे राजनीतिक दल आखिर देश को किस तरफ ले जाना चाहते हैं. लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में छिटपुट हिंसा होना आम बात है, लेकिन राजनीति में प्रवेश करने की सबसे निचली पायदान के चुनाव में अगर इस तरह की मारकाट मचने लगे, तो ये ज्यादा चिंताजनक इसलिये भी है कि इस तरह से चुनकर आने वाले प्रतिनिधि अपनी जनता का भला नहीं करेंगे, बल्कि समाज में अपराध व भ्रष्टाचार के ऐसे गठजोड़ को मजबूत करेंगे, जिस पर अंकुश लगाना उस पार्टी के आकाओं के लिए भी आने वाले वक्त में बेकाबू हो जायेगा.


ये स्थिति और भी ज्यादा खतरनाक इसलिये समझी जानी चाहिए कि अगले साल की शुरुआत में प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हैं और हिंसा की यही चिंगारी अगर शोला बन गई, तब क्या होगा. यही चुने हुए लोग अपनी-अपनी पार्टी के लिए इस धारणा के साथ प्रचार करेंगे कि जब ब्लॉक प्रमुख के चुनाव में हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया, तो अब भला कोई क्या कर लेगा. जाहिर है कि इसी एक वजह से हिंसा करने-करवाने की उनकी ताकत दोगुनी होगी.


सवाल उठता है कि इन चुनावों में नामांकन भरने से लेकर मतदान होने तक सूबे के लगभग हर जिले में जो हिंसा हुई, उसके लिए जिम्मेदार क्या सिर्फ एक ही दल है या विपक्ष भी उतना ही कसूरवार है? चूंकि बड़े चुनावों की तरह इसे संपन्न कराने की जिम्मेदारी चुनाव आयोग की नहीं थी, बल्कि स्थानीय प्रशासन की देखरेख में ही ये सम्पन्न हुए. लेकिन कानून-व्यवस्था कायम रखना स्थानीय पुलिस का काम था, जिसमें वह पूरी तरह से नाकाम रही. कहीं पर महिला उम्मीदवार या प्रस्तावक के साथ बदसलूकी करने और कहीं पर एसपी स्तर के पुलिस अफसर को थप्पड़ मारने जैसी घटनाएं बताती हैं कि जिस इलाके में जिस पार्टी का दबदबा था, वहां उसके समर्थकों ने गुंडई दिखाने में कोई कंजूसी नहीं की. जाहिर है कि सत्ता पाने की भूख दोनों तरफ समान थी, जिसके चलते इतने बड़े पैमाने पर हिंसा का सहारा लेना पड़ा.


हिंसा पर राजनीति न हो, यह कभी हो नहीं सकता. लिहाजा विपक्षी दलों ने इसका सारा ठीकरा सत्ताधारी बीजेपी पर ही फोड़ा है. राहुल गांधी ने एक खबर शेयर करते हुए ट्वीट में लिखा, "उत्तर प्रदेश में हिंसा का नाम बदलकर मास्टरस्ट्रोक रख दिया गया है." वहीं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बीजेपी पर एक महिला का नामांकन करने से रोकने का आरोप लगाया है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "कुछ सालों पहले एक बलात्कार पीड़िता ने बीजेपी विधायक के खिलाफ आवाज उठाई थी, उसे व उसके परिवार को मारने की कोशिश की गई थी. आज एक महिला का नामांकन रोकने के लिए बीजेपी ने सारी हदें पार कर दीं. सरकार वही. व्यवहार वही."


वहीं बीएसपी मुखिया मायावती ने भी बीजेपी पर निशाना साधा और कहा कि ब्लॉक प्रमुख के चुनाव के दौरान भी सत्ता व धनबल का घोर दुरुपयोग हुआ है और जो हिंसा हुई है, वह सपा शासन की ऐसी अनेकों यादें ताजा कराता है. इसीलिए बीएसपी ने इन दोनों अप्रत्यक्ष चुनावों को नहीं लड़ने का फैसला लिया. पुरानी कहावत है कि जंग और सियासत में सब कुछ जायज है लेकिन जब ये अपनी हदें पार कर जाये, तो मुल्क तबाह हो जाते हैं और राजनीति में जब ये ताकत जरुरत से ज्यादा बढ़ जाये, तो सत्ता संभालने वाले को निरकुंश बना देती है. उम्मीद करनी चाहिये कि यूपी विधानसभा चुनाव में सभी दल हिंसा के इस तांडव को दोहराने से बचेंगे? 


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)