यूपी चुनाव: पिता जेल से तो बेटा बाहर से ताल ठोंककर अखिलेश को जितवाएंगे?
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देश के सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में शायद ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि पिता-पुत्र की जोड़ी मैदान में है लेकिन पिता जेल के भीतर से चुनाव लड़ेगा लेकिन बेटा बाहर से अपनी ताल ठोंकेगा. दोनों की सियासी किस्मत का फैसला तो 10 मार्च को ही होगा लेकिन इसे यूपी के राजनीतिक इतिहास में एक नई इबारत के तौर पर जोड़ा जरुर जाएगा. 14 फरवरी को दूसरे चरण की 55 सीटों पर होने वाली वोटिंग को बीजेपी और सपा,दोनों के लिए ही चुनावी इम्तिहान का सबसे कठिन दौर माना जा रहा है. यहां के नौ जिलों में मुस्लिमों व दलितों की आबादी औसत से ज्यादा है, इसलिये कयास लगाये जा रहे हैं कि इस बार भी यहां बीजेपी अपना पिछला रिकॉर्ड दोहराएगी या फिर अखिलेश की साइकिल की रफ़्तार कुछ तेज हो जाएगी. हालांकि इस चरण में योगी सरकार के चार दिग्गज मंत्रियों की भी प्रतिष्ठा दांव पर है लेकिन सबकी निगाहें रामपुर की एक सीट पर लगी हुई हैं,जहां से समाजवादी पार्टी के बाहुबली नेता आजम खान जेल में रहते हुए ही चुनाव लड़ रहे हैं. हालांकि अपने इलाके से वे नौ बार विधायक रह चुके हैं लेकिन इस बार बीजेपी ने उन्हें पटखनी देने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है.
दूसरे चरण में 14 फरवरी को नौ जिलों-सहारनपुर, बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, रामपुर, बरेली, बदायूं और शाहजहांपुर की जिन 55 सीटों पर वोटिंग होनी है, वहां एक तरफ कर्नाटक से उठा मुस्लिम लड़कियों का हिज़ाब-विवाद भी छाया रहेगा,तो वहीं उन्नाव में सपा सरकार में रहे पूर्व मंत्री के प्लाट से मिली एक दलित युवती की लाश का मुद्दा गरमाने के भी आसार दिखाई दे रहे हैं. हालांकि साल 2017 के चुनाव से तुलना की जाए,तो दूसरे चरण की ये पिच वैसे तो बीजेपी के लिये उतनी मुश्किल भी नही है, क्योंकि तब बीजेपी ने यहां की 55 में से 38 सीटें जीतकर इतिहास रचा था. जबकि सपा को 15 और कांग्रेस ने 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि कांग्रेस और सपा ने पिछला विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ा था. सपा को जो 15 सीटें मिली थी उनमें से 10 पर मुस्लिम उम्मीदवार ही जीते थे.
वैसे इन सीटों पर मुस्लिम आबादी की बहुलता को देखते हुए अभी तक कयास यही लगाए जा रहे हैं कि सपा को इस बार ज्यादा फायदा हो सकता है. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि सपा को इस बार भी कोई खास फायदा मिलने के आसार इसलिये नहीं दिखाई दे रहे, क्योंकि हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी मैदान में कूद पड़ी है. लिहाज़ा, मुस्लिम वोटों का बंटवारा होना तय है,इसलिये सपा को इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि उसे मुस्लिमों के सारे वोट एकतरफा मिल ही जाएंगे.
चूंकि मुस्लिम वोटरों की बहुलता वाली सीटों पर हिज़ाब के विवाद को ओवैसी और अन्य मुस्लिम संगठनों ने एक मुद्दा तो बना ही दिया है, लेकिन सपा मुखिया अखिलेश यादव ने इसे अपने पक्ष में भुनाने के लिए कोई साफ स्टैंड नहीं लिया है और वे इस विवाद में किसी समुदाय का पक्ष लेने से बचते दिखाई दे रहे हैं. इसलिए भी कि वे समझ चुके हैं कि ये मसला किसी दोधारी तलवार से कम नहीं है और चुनाव के बीच इस पर कुछ भी बोलना भारी पड़ सकता है. मोटे तौर पर तो शायद यही वजह रही होगी,इसलिये शनिवार को यूपी की एक जनसभा में न्यूज़ एजेंसी के एक रिपोर्टर ने जब इस मुद्दे पर अखिलेश से सवाल पूछा,तो उन्होंने बेहद चतुराई के साथ लगातार दो बार यही जवाब दिया कि-"मुझे आपकी आवाज सुनाई नहीं दे रही है. "न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित हुई अखिलेश की इस बात को ओवैसी ने फौरन लपक लिया. उन्होंने सपा पर निशाना साधते हुए कहा कि जिस पार्टी का मुखिया मुस्लिम महिलाओं के हिज़ाब के हक़ पर बोलने से कतराता हो,वह भला मुस्लिम कौम का खैरख्वाह कैसे बन सकता है.
दूसरे चरण के इस चुनाव में वैसे तो कुल 586 उम्मीदवार मैदान में हैं. लेकिन योगी सरकार के चार मंत्रियों के मैदान में होने से बीजेपी के लिए ये चरण भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है. चुनाव लड़ने वालों में प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना एक बड़ा नाम इसलिये हैं कि वे लगातार नौ बार विधायक रह चुके हैं. इस बार भी वह शाहजहांपुर,सदर की सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. जबकि जल शक्ति राज्य मंत्री बलदेव सिंह औलख (बिलासपुर), नगर विकास राज्य मंत्री महेश चंद्र गुप्ता (बदायूं), माध्यमिक शिक्षा राज्य मंत्री गुलाब देवी (चंदौसी) से चुनावी-मैदान में उतरकर अगले पांच साल के लिए अपना मंत्रीपद पक्का करने के लिए पुरजोर ताकत से जुटे हैं. योगी सरकार में ही आयुष राज्यमंत्री रहे लेकिन अब सपा के उम्मीदवार बने धर्म सिंह सैनी भी नकुड़ सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं.
ये तो हर कोई जानता है कि मुलायम सिंह यादव से लेकर अखिलेश यादव वाली सपा सरकार में आज़म खां ने अपना जलवा कायम किया था. वह आज जेल में बंद हैं. लेकिन राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि आजम खां को जेल से ही चुनाव लड़ाने का ये सियासी दांव इस बार अखिलेश को भारी भी पड़ सकता है. बेशक इस सीट पार आजम खां ने 1980 से लेकर 2017 तक कभी हार का सामना नहीं किया. लेकिन कहते हैं कि सियासत में लोगों का मिज़ाज़ बदलने में भला कितनी देर लगती है. लेकिन इस बार यूपी के इस चुनावी लड़ाई को इसलिये भी याद रखा जाएगा कि आजम खां के बेटे अबदुला आजम खां भी मैदान में हैं. वे 2017 में विधायक बने थी लेकिन गलत उम्र बताने पर उनकी विधायकी कोर्ट ने रद्द कर दी और उन्हें जेल भी जाना पड़ा. दो साल जेल में बिताने के बाद वे पिछले दिनों ही जमानत पर बाहर आये है. अब वह सपा के टिकट पर ही स्वार सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनके सामने बीजेपी गठबंधन की तरफ से भी एक मुस्लिम को ही उम्मीवार बनाकर उनकी राहों में कांटे बिछा दिए गए हैं.
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)
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