UP Election 2022: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) के नामांकन भरने के मौके को भव्य आयोजन बनाना और गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की इसमें मौजूदगी ने विपक्ष के इन आरोपों का जवाब दे दिया है कि बीजेपी ने बाबा को वापस अपने आश्रम भेज दिया है. दरअसल,बीजेपी (BJP) ने पूर्वांचल के अपने मजबूत किले को बचाने की गरज से ही योगी को अयोध्या,मथुरा या काशी से चुनाव लड़वाने की बजाय उनकी कर्मनगरी गोरखपुर से ही मैदान में उतारा है,ताकि आसपास के 15 जिलों पर पार्टी की स्थिति और मजबूत की जाये. हालांकि योगी (CM Yogi) गोरखपुर से ही पांच बार लोकसभा के सांसद रहे हैं लेकिन विधानसभा का चुनाव वे पहली बार लड़ रहे हैं.
योगी के अपनी कर्मभूमि से ही चुनाव लड़ने से पूर्वांचल की सीटों पर कितना असर होगा? यह जानने के लिए एबीपी न्यूज़- सी वोटर (ABP C Voter Survey) की टीम जनता के बीच पहुंची. इस सर्वे में 49 फीसदी लोगों ने माना है कि पूरे पुर्वांचल में इसका खासा असर दिखाई देगा और बीजेपी को इससे फायदा होगा. हालांकि 37 फीसदी लोग ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि योगी के यहां से चुनाव लड़ने पर पूर्वांचल की बाकी सीटों पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला है. इस सर्वे में 14 फीसदी लोग ऐसे भी थे,जिनका जवाब न तो हैं में और न ही ना में. लेकिन सर्वे के नतीजे से उभरी तस्वीर बताती है कि बीजेपी ने बेहद सोच-समझकर ही यह सियासी दांव खेला है.
दरअसल, पिछले कई दशक से यूपी की सत्ता का फैसला पूर्वांचल की जनता ही करती आई है. मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) से लेकर मायावती (Mayawati), अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और योगी आदित्यनाथ को सीएम की कुर्सी तक पहुंचाने में इसी इलाके का ही सबसे बड़ा योगदान रहा है.साल 2012 तक पूर्वांचल को सपा का गढ़ समझा जाता था लेकिन 2017 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ ने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे रखकर इसे ध्वस्त कर दिया. 2017 में बीजेपी और सहयोगी दलों ने पूर्वांचल के 26 जिलों की 156 सीटों में से 128 पर कब्जा जमाया था.
बीजेपी (BJP) के लिए ये ऐतिहासिक जीत थी जिसकी उम्मीद पार्टी नेताओं को भी नहीं थी. लेकिन तब ओमप्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) भी बीजेपी के साथ थे,जो अब अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के साथ हैं. नये समीकरण बनने के बाद बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को भी समझ आ गया था कि यहां समाजवादी पार्टी से ही उसका सीधा मुकाबला होना है, लिहाज़ा,जरा-सी चूक भी भारी पड़ सकती है.
यही कारण है कि पार्टी ने अपने सबसे कद्दावर चेहरे को यहां से मैदान में उतारकर पूरे पूर्वांचल को साधने की रणनीति बनाई. यूपी की राजनीति की नब्ज समझने वाले विश्लेषक मानते हैं कि योगी की गोरक्षपीठ और खुद योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) का प्रभाव पूर्वांचल के उन इलाकों में जाना जाता है, जो यूपी की सत्ता में निर्णायक भूमिका अदा करते आये हैं.
अगर योगी के प्रभाव वाले इलाकों की बात करें,तो कुशीनगर, देवरिया, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, बस्ती, कुशीनगर, आजमगढ़ और मऊ जैसे इलाके उनके लिए सबसे अहम हैं क्योंकि यहां की तमाम सीटों पर योगी खुद चुनाव लड़वाते रहे हैं.इनमें से कुछ इलाकों में योगी (CM Yogi) की हिंदू युवा वाहिनी का प्रभाव भी बहुत देखा जाता है. साथ ही गोरक्षनाथ धाम में दलितों और पिछड़ों की आस्था होने का फायदा भी योगी को मिलना तय है.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मायावती (Mayawati) की बीएसपी (BSP) का अब यहां उतना मजबूत जानाधर नहीं है,इसलिये माना जा रहा है कि पिछली बार की तरह इस बार भी उसका वोट बीजेपी में और कुछ हद तक सपा में शिफ्ट हो सकत है.राजभर और मौर्य नेताओं के साथ आने से अखिलेश यादव को उम्मीद है कि वो पूर्वांचल को फिर से सपा का गढ़ बना लेंगे.हालांकि अब तक आये अधिकांश ओपिनियन पोल भी यही बता रहे हैं कि पूर्वांचल में सपा और बीजेपी के बीच कोई बहुत बड़ा फासला नहीं है और दोनों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है.
वैसे 2012 में यहां की 156 में से 102 सीटों पर जीत हासिल करके ही अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) सूबे के सीएम बने थे. वैसे यादव और कुर्मी के बाद मौर्य समाज यहां ओबीसी में तीसरी सबसे बड़ी ताकत समझी जाती है.जबकि यहाँ के आठ जिलों में ब्राह्मण वोट बैंक 18 प्रतिशत से ज्यादा है इसलिए अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने भी यहां ब्राम्हण कार्ड खेला है और वे योगी आदित्यनाथ की इमेज को ब्राह्मण विरोधी बताने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं.