राजनीति की थोड़ी-सी भी समझ रखने वाले लोग ये जानते हैं कि दिल्ली के सिंहासन तक पहुंचने का रास्ता हमेशा से उत्तरप्रदेश ही तय करता आया है. लिहाजा अगले साल यूपी में होने वाले चुनाव सिर्फ इसलिए ही महत्वपूर्ण नहीं हैं कि योगी आदित्यनाथ को दोबारा उस कुर्सी पर बैठना है. उसके लिए तो डबल इंजिन वाली सरकार हर मुमकिन काम कर ही रही है. लेकिन ये चुनाव इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं कि पांच साल बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इसे एक तरह से सीधी और आरपार की लड़ाई में बदल देने पर अपना सारा जोर लगा दिया है.
बेशक अखिलेश अपनी साइकिल को पांच साल बाद फिर से लखनऊ तक ले जाने का सपना देख रहे हैं लेकिन इस बार उनके चुनाव-अभियान का सारा फोकस ममता बनर्जी के बंगाल चुनाव की तर्ज़ पर है,जहां उन्होंने आम लोगों से सीधा संवाद करने में कामयाबी हासिल करके एक बड़ी लड़ाई जीती. फिलहाल तो सियासत का कोई बड़ा नजूमी भी नहीं बता सकता कि अखिलेश का ये 'खेला होइबे' वाला बंगाल प्रयोग कितना कामयाब होगा लेकिन इसने बीजेपी को थोड़ा सेल्फ फुट पर खेलने के लिए मजबूर तो कर ही दिया है. यूपी का चुनाव-प्रचार जब उफान पर होगा और तब ममता बनर्जी जया बच्चन व डिंपल यादव के साथ एक ही रथ पर सवार होकर सपा के लिए वोट मांगने निकलेंगीं,तो उसका कुछ फायदा अखिलेश यादव को होने की हक़ीक़त को झुठलाया नहीं जा सकता.
कहते हैं कि राजनीति भी किसी पंसारी के उस धंधे से कम नहीं है,जहां एक हाथ दे और दूसरे हाथ ले से ही सारा कामकाज सिरे चढ़ता है. सो, ममता अगर यूपी में आकर अखिलेश के लिए वोट मांगेंगी,तो इसमें उनका भी स्वार्थ जुड़ा हुआ है क्योंकि 2024 के लोकसभा के चुनावी नतीजों के बाद दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने के लिए उन्हें भी सपा के समर्थन की दरकार होगी. अब ये अलग बात है कि तब तक यूपी की क्या तस्वीर बनेगी और सपा कितनी सीटों पर जीत हासिल करेगी लेकिन
एक चतुर नेता पहले ही ये ताड़ लेता है कि किसी खास जगह जाने से अगर मुझे फायदा न भी मिल पाये लेकिन उससे मेरा कोई नुकसान नहीं होता है,तो वह उस जगह जाने से कभी परहेज़ नहीं करता है.
सियासत का हर स्वाद चख चुकी ममता जानती हैं कि यूपी में सपा ही एक ताकतवर विपक्ष की भूमिका में है और अगर उसे सत्ता न भी मिल पाई, तब भी वो उनके लिए ऐसा मजबूत सियासी औजार है, जो उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पीएम पद का उम्मीदवार बनाने के लिए सबसे बड़ी झंडाबरदार पार्टी बनकर खड़ी हो जायेगी. लिहाज़ा, यूपी के कुछ प्रमुख शहरों में जाकर समाजवादी पार्टी के लिए प्रचार करना, ममता के लिए कहीं से भी घाटे का सौदा नहीं कहा जा सकता. वहीं, अखिलेश के लिये तो ममता का आना ही एक बड़े फायदे वाला सौदा साबित हो सकता है. वह इसलिये कि ममता बनर्जी के यूपी में आने से न सिर्फ उनकी टीआरपी बढ़ेगी बल्कि उनके भाषणों का सीधा असर महिलाओं व कमजोर वर्ग के वोटरों पर पड़ेगा क्योंकि मोदी-योगी सरकार के खिलाफ जनता से जुड़े मसलों को लेकर वे जितनी आग उगलती हैं,उतनी तो अखिलेश सोच भी नहीं पाते.
हालांकि,अखाड़े में कूदने से पहले ही योगी आदित्यनाथ की सरकार को लेकर अखिलेश की भाषा अब कुछ वैसी होती जा रही है,जो अपने प्रतिद्वंद्वी पहलवान को मनोवैज्ञानिक तरीक़े से कमजोर करने का दांव खेलता है.कल एबीपी न्यूज़ को दिए एक खास इंटरव्यू में अखिलेश यादव ने एक नए जुमले का इस्तेमाल किया है.उन्होंने कहा है कि "यूपी की जनता को योगी नहीं बल्कि योग्य सरकार चाहिये." इससे पहले उन्होंने इस तरह से सीधे-सीधे योगी पर हमला नहीं किया था, वे बीजेपी सरकार को अपने निशाने पर ले रहे थे.लिहाज़ा, इस बयान के पीछे उनके ऐसे सलाहकारों का दिमाग है,जो ब्राह्मण वर्ग की उस नाराजगी को अपने पक्ष में भुनाना चाहते हैं, जो योगी के तौरतरीकों को कहीं न कहीं सही नहीं ठहराते. इसकी सियासी गहराई को समझें, तो मकसद ये भी है कि योगी से खफा ऐसा वर्ग भले ही सपा की बजाय कांग्रेस को वोट दे दे लेकिन वो योगी के बहाने बीजेपी को अपना हमदर्द समझने के भुलावे में आये.
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