पूर्वांचल को मिली सौगातें ही तय करेंगी योगी आदित्यनाथ की दोबारा 'ताजपोशी' ?
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने पूर्वांचल को सौगातें देने की जो बारिश की हुई है, उससे सिर्फ यूपी के विकास की तस्वीर ही नहीं बदल रही बल्कि ये बीजेपी को दोबारा सत्त्ता में लाने का रास्ता भी आसान बना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज 341 किलोमीटर लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन करके लखनऊ को गाजीपुर से जोड़ने के जिस संकल्प को पूरा किया है, उसका सीधा असर नौ जिलों के लोगों पर पड़ेगा और इसे योगी आदित्यनाथ की दोबारा ताजपोशी के सफ़र का सबसे बड़ा सियासी औजार माना जा रहा है.
एक्सप्रेस-वे से आपस में जुड़ने वाले नौ जिले हैं- लखनऊ, बाराबंकी, अमेठी, सुल्तानपुर, अयोध्या, अम्बेडकरनगर, आजमगढ़, मऊ और गाजीपुर. लखनऊ-सुल्तानपुर रोड पर चांद सराय गांव से शुरू होकर यूपी के नौ जिलों को जोड़ता हुए ये एक्सप्रेसवे पूर्वांचल की जान बनेगा और गाजीपुर के हैदरिया गांव पर खत्म होगा. जिस यात्रा में दस घंटे लगते थे अब वहीं गाजीपुर से लखनऊ की दूरी महज़ साढ़े तीन घंटे की रह जाएगी. बीजेपी इसे पूर्वांचल में अपना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाना चाहती है और यही वजह है कि योगी सरकार ने तय वक्त से पहले ही इसे तैयार करवाके पीएम मोदी के जरिये जनता को सौंपकर अपना राजनीतिक संदेश दे दिया है.
वैसे भी राजनीति की हक़ीक़त तो यही है कि अगर दिल्ली के सिंहासन का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है, तो यूपी की सत्ता में आने की चाबी भी सिर्फ पूर्वांचल के पास ही है. यूपी की सत्ता के इतिहास पर गौर करें, तो मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव से लेकर योगी आदित्यनाथ तक को मुख्यमंत्री बनाने में पूर्वांचल का ही सबसे बड़ा योगदान रहा है. कहते हैं कि जिसने पूर्वांचल जीत लिया, समझ लो कि उसने यूपी का किला फतह कर लिया.
यूपी की 164 सीटें पूर्वांचल के 28 जिलों में हैं, जो किसी भी दल के सत्ता में आने की किस्मत का फैसला करती हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां से सर्वाधिक 115 सीटें मिली थीं, जिसके बल पर ही वह सत्ता पाने में कामयाब हुई थी. तब बीजेपी को भी इतनी सीटें मिलने की उम्मीद नहीं थी क्योंकि उससे पहले तक पूर्वांचल को समाजवादी पार्टी का मजबूत गढ़ माना जाता था. लेकिन 2017 के चुनाव में पूर्वांचल की जनता ने सपा को महज़ 17 सीटें देकर उसका अहंकार ख़त्म कर दिया. साल 2007 के चुनाव में बसपा का भी यहां खासा जनाधार था और इसी पूर्वांचल से मिली सीटों के बूते पर ही मायावती सूबे की मुख्यमंत्री बनी थीं लेकिन पिछले चुनाव में वह भी सिर्फ 14 सीटों पर ही सिमट गई थी, जबकि कांग्रेस को दो और अन्य को 16 सीटें मिली थीं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी यहां भगवा लहर का असर देखने को मिला और बीजेपी ने यहां से सर्वाधित सीटें जीती थीं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जिला गोरखपुर और पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी पूर्वांचल में है. लिहाज़ा बीजेपी की कोशिश इस बार 2017 के इतिहास को दोहराने के साथ ही 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए लिए भी अनुकूल माहौल बनाने की है. लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद उपजी नाराजगी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन की तपिश से होने वाले नुकसान की आशंका को देखते हुए बीजेपी ने अपना सारा फोकस पूर्वांचल पर ही कर रखा है.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश को विकास की सौगात देते हुए मोदी ने भावनाओं की लहर चलाने की भरपूर कोशिश की है और स्थानीय बोली में अपने भाषण की शुरुआत करना, उनका पुराना अंदाज़ रहा है, सो आज भी उन्होंने वैसा ही किया. मोदी ने भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या के पड़ोसी जिले सुल्तानपुर के इतिहास की भी चर्चा की और पूर्वांचल को पवित्र, ऐतिहासिक धरती बताते हुए भावनात्मक रूप से लोगों को बीजेपी के साथ जोड़ने की कोशिश की.
मोदी ने सपा व बसपा की पिछली सरकारों पर निशाना साधते हुए पूर्वांचल के लोगों को ये भी अहसास दिलाया कि अब तक उनके साथ कितना बड़ा भेदभाव होता आया है. मोदी ने कहा कि पिछले मुख्यमंत्रियों के लिए विकास वहीं तक सीमित था जहां उनका घर था. लेकिन आज जितनी पश्चिम की पूछ है, उतनी ही पूर्वांचल के लिए भी प्राथमिकता है. पूर्वांचल एक्सप्रेसवे आज यूपी की इस खाई को पाट रहा है, यूपी को आपस में जोड़ रहा है. ये एक्सप्रेस-वे यूपी में आधुनिक होती सुविधाओं का प्रतिबिंब है. ये एक्सप्रेस-वे यूपी की दृढ़ इच्छा शक्ति का एक्सप्रेस-वे है. ये एक्सप्रेस-वे यूपी में संकल्पों की सिद्धि का जीता जागता प्रमाण है. ये यूपी की शान है, ये यूपी का कमाल है.
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