UP Assembly Election 2022: कहते हैं दिल्ली के सिंहासन तक पहुंचने या फिर उसे बचाये रखने के लिए उत्तर प्रदेश का किला फतह करना बेहद जरुरी होता है, लेकिन सूबे का सियासी इतिहास बताता है कि पूर्वांचल और अवध को जीते बगैर प्रदेश की सत्ता पर काबिज़ नहीं हुआ जा सकता. यही वजह है कि सत्ताधारी बीजेपी समेत विपक्ष ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है. हालांकि जनता का मूड बताता है कि फिलहाल बीजेपी ने इन दोनों ही क्षेत्रों में बढ़त बना रखी है, जहां कुल 248 सीटें हैं. अखिलेश यादव की साइकिल तेजी से उसका पीछा कर रही है. लिहाज़ा हैरानी नहीं होनी चाहिए कि चुनाव आते-आते समाजवादी पार्टी और बीजेपी के बीच बराबर का मुकाबला होता हुआ दिखाई दे.


यूपी की जनता के सियासी मिज़ाज को समझने के लिए एबीपी न्यूज़ सी-वोटर के साथ मिलकर हर हफ्ते सर्वे कर रहा है. ताजा सर्वे के मुताबिक अगर वोट प्रतिशत मिलने का अनुमान लगाया जाए तो फिलहाल बीजेपी और सपा के बीच बहुत बड़ा फासला नहीं दिखता. पिछले कुछ हफ्तों से तुलना करें तो यदि बीजेपी का वोट शेयर बढ़ा है तो सपा भी इसमें पिछड़ी नहीं है, बल्कि दिनों दिन अपना प्रदर्शन बेहतर करने में जुटी है. इसीलिये राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि योगी आदित्यनाथ को अपनी कर्मनगरी गोरखपुर वाले पूर्वांचल के इस मजबूत किले को बचाये रखने के लिए अभी और मेहनत करनी होगी, क्योंकि बीजेपी का अति आत्मविश्वास ही सपा की कामयाबी की वजह बन सकता है.


वैसे पूर्वांचल में 130 सीटें हैं, वहीं अवध रीजन में 118 सीटें. इस सर्वे के मुताबिक पूर्वांचल की 130 सीटों पर फिलहाल तो बीजेपी ही सबसे आगे है और उसे 40 फीसदी वोट मिलता हुआ दिखाई दे रहा है. समाजवादी पार्टी भी वोट शेयर के मामले में बीजेपी को कड़ी टक्कर देती हुई दिखाई दे रही है. सपा और उसके सहयोगियों के हिस्से में 36 फीसदी वोट जाता हुआ नजर आ रहा है. मायावती की बीएसपी को 12 फीसदी और कांग्रेस को महज़ 7 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है. अन्य के खाते मे 5 फीसदी वोट जा सकता है. हालांकि पिछले हफ्ते और ताजा सर्वे के अनुमान में कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आया है, लेकिन विपक्ष जिस तरह से अपनी पूरी ताकत पूर्वांचल में झोंक रहा है, उससे आने वाले दिनों में इन अनुमानों में उलटफेर होने की सम्भावना है.


एबीपी न्यूज सी वोटर के इस सर्वे में अवध की 118 सीटों पर भी वोट शेयर के मामले में बीजेपी ही अभी आगे है, लेकिन यहां समाजवादी पार्टी और उसके बीच फासला कुछ बढ़ता दिख रहा है. यहां 44 फीसदी वोट शेयर बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों के हिस्से में दिखाई दे रहा है. पिछले हफ्ते की तुलना में बीजेपी ने यहां 2 फीसदी वोट शेयर बढ़ाया है, जबकि समाजवादी पार्टी के वोट प्रतिशत में 2 फीसदी की कमी होती दिख रही है और वह 33 से घटकर 31 फीसदी पर आ गई है. बीएसपी के वोट प्रतिशत में भी एक फीसदी की कमी आई है और उसका हिस्सा अब 11 से घटकर 10 फीसदी हो गया है. कांग्रेस के हिस्से 8 फीसदी वोट शेयर दिखाई दे रहा है. 


वैसे राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक पूर्वांचल के 28 जिलों में कुल 164 सीटें हैं, जो किसी भी पार्टी  के सत्ता में आने की किस्मत का फैसला करती आई हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां से सर्वाधिक 115 सीटें मिली थीं, जिसके बूते पर ही योगी आदित्यनाथ को यूपी का सिंहासन मिला था. वैसे 2017 के चुनाव में भी बीजेपी को ये उम्मीद नहीं थी कि पूर्वांचल के लोग इतनी सारी सीटें देकर उसकी झोली भर देंगे. उसकी वजह भी थी, क्योंकि उससे पहले तक पूर्वांचल को समाजवादी पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था. योगी की ओजस्विता और बीजेपी की रणनीति ने सपा के इस किले को नेस्तनाबूद करके रख दिया था.


दरअसल 2017 के चुनावी इतिहास पर अगर गौर करें तो बीजेपी ने पूर्वांचल में प्रभावी क्षेत्रीय दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (सोनेलाल) के साथ गठबंधन करके ही बड़ी जीत हासिल की थी. तब पूर्वांचल की जनता ने सपा को महज़ 17 सीटें देकर उसका अहंकार ख़त्म कर दिया. इसी तरह साल 2007 के चुनाव में बीएसपी का भी यहां खासा जनाधार था और इसी पूर्वांचल से मिली सीटों के बूते पर ही मायावती सूबे की मुख्यमंत्री बनी थीं, लेकिन पिछले चुनाव में वह भी सिर्फ 14 सीटों पर ही सिमट गई थीं, जबकि कांग्रेस को दो और अन्‍य को 16 सीटें मिली थीं.  


साल 2019 के लोकसभा चुनावों में निषाद पार्टी के साथ गठबंधन करने से भी बीजेपी को बड़ा फायदा मिला था. हालांकि इस बार भी बीजेपी की निगाह छोटे दलों पर है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार ये छोटे दल ही बीजेपी की पूर्वांचल में ताकत हैं.  कुर्मी जाति के साथ ही कोईरी, काछी, कुशवाहा जैसी जातियों पर भी अपना दल (सोनेलाल) का असर होता है.  इन्हें आपस में जोड़ दें तो पूर्वांचल के बनारस, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, कानपुर, कानपुर देहात की सीटों पर यह वोट बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं.  


हालांकि इस बार समाजवादी पार्टी गठबंधन में आगे इसलिये निकल चुकी है कि उसने आरएलडी के अलावा जनवादी दल और महान दल जैसी छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ भी गठबंधन कर लिया है. महान दल की पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुशवाहा, शाक्य, सैनी और मौर्या जाति पर अच्छी पकड़ है. चौहान वोट बैंक वाली पार्टी जनवादी दल भी वोट बैंक के लिहाज से मजबूत पकड़ वाली पार्टी समझी जाती है. कुल मिलाकर अगले साल यूपी की सत्ता में जो भी बड़ी पार्टी आयेगी उसके पीछे इन छोटे दलों की ताकत ही होगी.


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