उत्तर प्रदेश विधानसभा के चौथे चरण में 59 सीटों पर होने वाली वोटिंग को बीजेपी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है, इसलिये उसे तो अपना किला बचाने की ज्यादा फिक्र है लेकिन समाजवादी पार्टी समेत अन्य विपक्षी दलों के लिए यहां अपना खाता खोल पाना ही एक बड़ी चुनौती है.वह इसलिये कि पिछली बार यहां के 9 में से 4 जिलों में तो विपक्ष का सूपड़ा ही साफ हो गया था.
बीजेपी ने यहां से क्लीन स्वीप करते हुए 59 में से 51 सीटों पर अपना कब्जा जमाया था.23 फरवरी को चौथे चरण का मतदान बीजेपी के लिए जहां प्रतिष्ठा का सवाल है,तो वहीं विपक्ष को भी ये अहसास हो जाएगा कि किसान किस हद तक उसके साथ हैं.क्योंकि किसानों को कथित रुप से रौंदने की घटना के बाद देश-विदेश के मीडिया की सुर्खियां बन चुके लखीमपुर खीरी की आठ सीटों पर भी बुधवार को ही वोटिंग होनी है.
पिछली बार बीजेपी ने सभी सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन इस बार बीजेपी के लिए ये किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है क्योंकि सपा व कांग्रेस ने किसानों के इस गुस्से को अपने पक्ष में भुनाने के लिए सारी ताकत लगा दी है. साल 2017 के चुनाव में लखीमपुर खीरी के अलावा पीलीभीत,बांदा और फतेहपुर जिलों की कुल 25 सीटें ऐसी थीं, जहां से विपक्ष को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी.
चौथे चरण में ही सोनिया गांधी के लोकसभा क्षेत्र रायबरेली क्षेत्र में भी मतदान होना है जिसे गांधी परिवार का गढ़ माना जाता है.पिछली बार बीजेपी ने उनके इस गढ़ को तोड़ते हुए यहां की 6 में से 3 सीटों पर भगवा लहरा दिया था. लिहाज़ा,प्रियंका गांधी के लिए भी ये इम्तिहान की घड़ी है कि वे अपनी मां के संसदीय क्षेत्र की तीन सीटों को बचाने में भी कामयाब हो पाती हैं कि नहीं. इसी चरण से ही ये भी पता लग जाएगा कि पार्टी का चुनावी प्रबंधन संभालने में प्रियंका किस हद तक सफल साबित हुई हैं.
हालांकि अहमदाबाद के बम ब्लास्ट केस का फैसला आने के बाद बीजेपी नेताओं की बांछें खिल उठी हैं. इस मामले में दोषी पाए गए एक आतंकी के पिता की तस्वीर सपा मुखिया अखिलेश यादव के साथ सामने आने के बाद बीजेपी के हमले जहां और भी ज्यादा तीखे हुए हैं,तो वहीं सपा को बैकफुट पर आना पड़ा है.इस केस में मौत की सजा पाए आज़मगढ़ के सैफ के पिता शादाब की अखिलेश के साथ आई तस्वीर ने सपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं.अखिलेश को अब इस मामले से कुछ हद तक हिन्दू वोट खिसकने का डर भी सता रहा है. दरअसल,साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए जो मेहनत बीजेपी नेताओं को करनी पड़ती,उसे अहमदाबाद कोर्ट के आये फैसले ने पूरा कर दिया है.
चौथे चरण के मतदान से पहले बीजेपी को इस बहाने आतंकवाद के जरिये सपा को घेरने के लिए एक बड़ा हथियार मिल गया है. असल में,अहमदाबाद में हुए उस धमाके में बम एक सायकिल में फिट किया गया था.लिहाज़ा, पीएम नरेंद्र मोदी ने समाजवादी पार्टी के चुनाव चिह्न को आतंकवाद से जोड़ते हुए साफ कहा कि साइकिल से बम फोड़े जाते है.उन्होंने ये भी आरोप लगाया कि अखिलेश और उनकी पार्टी आतंकवादियों का साथ देती है.हालांकि इसके जवाब में अखिलेश ने कहा कि साइकिल तो ग़रीबों की शान है.उन्होंने बीजेपी के आतंकवाद वाले आरोप का कोई जवाब न देने और इस पर चुप रहने की रणनीति बनाई है.
यही हिदायत उन्होंने पार्टी के अन्य नेताओं और प्रवक्ताओं को भी दी है.शायद यही वजह है कि पिछले दो दिनों से न्यूज़ चैनलों पर सपा के स्थापित प्रवक्ता नहीं दिखाई दे रहे हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि बीजेपी ने आतंकवाद से सपा का रिश्ता जोड़कर चौथे चरण के पूरे चुनाव को हिन्दू बनाम मुसलमान बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है.बीजेपी को इसका फायदा होने की उम्मीद है और उसे लगता है कि पहले के तीन चरणों में जो थोड़ा बहुत नुकसान हुआ भी होगा,तो उसकी भरपाई ये चौथा चरण पूरा कर ही देगा.लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या एक तस्वीर ही चुनावी सियासत का रुख बदल देती है या फिर बदल देगी?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)