तीन दशक पहले से देश में राम राज्य स्थापित करने का नारा देने वाली बीजेपी के लिए यूपी के विधानसभा चुनाव में अब यही स्लोगन एक चुनौती बनकर उभर रहा है. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी अब इसी के भरोसे यूपी में अपनी सियासी जमीन तलाशते हुए ये संदेश देने की कोशिश कर रही है कि भगवान राम पर सिर्फ बीजेपी का ही कॉपीराइट नहीं है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि हिंदुत्व का सबसे मुखर चेहरा बन चुके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए क्या आम आदमी पार्टी चुनौती बन पाएगी या फिर नरम हिन्दुत्व का प्रयोग करते ये हुए उसकी आगे की रणनीति का एक हिस्सा है?


यूपी के सियासी गलियारों में सवाल तो ये भी पूछा जा रहा है कि चुनाव से ऐन पहले ही आप को श्री राम और राम राज्य की याद आखिर क्यों आई. क्योंकि ये वही पार्टी है जिसने कभी अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर की जगह विश्वविद्यालय बनाने की बात की थी. उसी आम आदमी पार्टी ने यूपी के सियासी दंगल में उतरने के लिए कल अयोध्या में तिरंगा यात्रा निकालकर ये जता दिया है कि हिंदुत्व और राष्ट्रवाद ही अब उसके सियासी हथियार हैं, जिसके जरिये वे सूबे के हिंदुओं में अपनी जगह बना सकती है.


यानी केजरीवाल की पार्टी दिल्ली से बिल्कुल उलट तरह की राजनीति का प्रयोग करके ये देखना चाहती है कि देश के सबसे बड़े सूबे की सियासी जमीन पर उसका कितना वजूद है. दिल्ली में आप सरकार पर ये आरोप लगते रहे हैं कि वो अल्पसंख्यकों खासकर मुसलमानों का कुछ ज्यादा ही ख्याल रखती है. लेकिन यूपी चुनाव के लिए उसने जिस तरह से हिंदुत्व के सहारे आगे बढ़ने का खाका तैयार किया है, उसमें मुसलमान तो कहीं फिट ही नहीं बैठते हैं. जाहिर है कि केजरीवाल का सारा फोकस हिंदू वोटरों पर है.


लेकिन राजनीतिक पंडित मानते हैं कि आप के चुनावी-मैदान में कूदने से बीजेपी को कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है और न ही उसका कोई बड़ा नुकसान होने की आशंका है. वजह ये है कि बीजेपी का हिंदुत्व वोट बैंक 'इंटेक्ट' है, यानी उसके इधर-उधर छिटकने का खतरा लगभग न के बराबर ही रहता है. बीजेपी का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट ये भी है कि उसके पास आरएसएस का मजबूत कैडर है, जो खामोशी से अपना काम करता रहता है लेकिन वोटिंग वाले दिन ही बूथ स्तर पर उसकी प्रभावी मौजूदगी दिखती है. लेकिन केजरीवाल के पास यहां ऐसा कोई कैडर नहीं है,ये तो अभी उनकी शुरुआत है. वे ये भी मानते हैं कि इसकी संभावना बहुत कम है कि बीजेपी चुनाव के दौरान आप को कोई बहुत ज्यादा सीरियसली लेगी.


आप की तिरंगा यात्रा में शामिल हुए दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से पूछा गया था कि AAP तो हिंदुत्व को लेकर दूसरी पार्टियों को घेरती रही है ,तो फिर उसे श्री राम की शरण में आने की आखिर क्यों जरुरत पड़ गई? इसका सियासी जवाब देते हुए सिसोदिया ने कहा कि "राम सबके हैं, हर किसी को अयोध्या आना चाहिए. रामराज्य तो सुशासन का पर्याय है. अगर कोई राम पर राजनीति करने के लिए अयोध्या आ रहा है तो यह अलग बात है लेकिन रामराज्य सरकार का सबसे अच्छा स्वरूप है. राम भगवान हैं,  हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए. जो राम पर सियासत करते हैं, हमें उन लोगों से सवाल करने चाहिए कि मिड-डे मील में नमक और रोटी देने का खुलासा करने वाला पत्रकार जेल में क्यों है? हाथरस रेप कांड क्यों हुआ? क्योंकि राम उनके लिए सिर्फ एक प्रतीक हैं, प्रेरणा नहीं."


इन तेवरों से साफ है कि चुनावी प्रचार की जंग में आप के निशाने पर योगी आदित्यनाथ ही रहने वाले हैं, लिहाजा अब यूपी में विरोध की तीन नहीं ,बल्कि चार आवाज़ सुनने को मिलेंगी. वैसे आम आदमी पार्टी भले ही बीजेपी के लिए कोई बड़ी चुनौती न भी बन पाये लेकिन सत्ता विरोधी लहर का कुछ हद तक तो उसे सामना करना ही होगा. ऐसे में, बीजेपी के लिए सिर्फ एक ही खतरा दिखता है कि सरकार से नाराज़ हिन्दू वोटरों का झुकाव आप की तरफ हो सकता है.


संभव है कि इसका प्रतिशत बेहद मामूली हो लेकिन विधानसभा चुनाव में महज़ आधे प्रतिशत का फर्क भी बड़ा उलटफेर कर देता है. जाहिर है कि बीजेपी से नाराज वोटरों से आप को कोई फायदा नहीं होगा लेकिन अन्य विपक्षी उम्मीदवार को परोक्ष रुप से इसका लाभ मिल सकता है,जो बीजेपी के लिए खतरे का संकेत है. लिहाज़ा कह सकते हैं कि आम आदमी पार्टी अगर चुनौती न भी बन पाए लेकिन वोट काटने की कुछ हैसियत रखने वाली पार्टी के रुप में तो उभर ही सकती है. इसलिये बीजेपी को अति आत्मविश्वास में इसे हल्के में लेने की दिल्ली वाली गलती दोहराने से बचना होगा.


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