UP Assembly Election 2022: उत्तर प्रदेश का सियासी इतिहास बताता है कि सत्ता में आने के लिए पूर्वांचल को फतह करना जरुरी है और ऐसा करने के लिए छोटी पार्टियों को अपने साथ रखना अब BJP की मजबूरी बन गई है. इसकी वजह भी है, क्योंकि इन्हीं छोटे दलों के दम पर ही वह पांच साल पहले सत्ता पाने में कामयाब हुई थी. छोटे दल भी अब अपनी हैसियत समझ चुके हैं, लिहाज़ा उनके अरमान भी पहले से ज्यादा बड़े हो गए हैं.


BJP की सहयोगी अपना दल एस ने इस बार ज्यादा सीटें लेने के लिए मुंह फाड़ना शुरु कर दिया है. पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने अपने इरादे जताते हुए इशारा दे दिया है कि इस बार हम BJP से ज्यादा सीटें देने की मांग करेंगे. हालांकि BJP से इसके बारे में उसकी आखिरी दौर की बातचीत चल रही है, लेकिन सीटों की संख्या पर ही बात अटकी हुई है. वैसे अनुप्रिया पटेल ने गुरुवार को जौनपुर पहुंचकर अपनी पार्टी के चुनाव-प्रचार का बिगुल फूंक दिया है. साथ ही ये भी कह दिया कि हर दल गठबंधन में सीटों का विस्तार चाहता है. अपना दल एस की भी यूपी चुनाव में सीटों के विस्तार की बातचीत चल रही है. जैसे ही सीटों की संख्या का फैसला होगा, बता दिया जाएगा. वैसे अपना दल एस पिछले तीन चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा है.अनुप्रिया ने साफ किया है कि वे चौथा चुनाव भी गठबंधन में रहकर ही लड़ेंगे.


2017 के यूपी चुनाव में बीजेपी ने पूर्वांचल की 11 सीटें अपना दल को दी थीं. उस समय पूरे सूबे में पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की लहर थी, लेकिन तब भी पूर्वांचल की 11 में से 9 सीटों पर अपना दल ने कब्जा किया था. जबकि कांग्रेस को महज सात सीटें ही मिली थीं. उस लिहाज से देखें तो पूर्वांचल की कुछ खास सीटों पर अपना दल का मजबूत जनाधार है, जहां चुनाव जीतने के लिए उसे BJP के सहारे की जरुरत नहीं होती. तब अनुप्रिया पटेल की पार्टी ने बनारस में सेवापुरी, फतेहपुर में जहानाबाद, इलाहाबाद में सोराव, प्रतापगढ़ में सदर, विश्वनाथगंज, बस्ती के शोहरतगढ़, सोनभद्र के दु्द्धी, जौनपुर के मड़ियाहू, मिर्जापुर के छानबे विधानसभा सीट पर जीत हासिल की थी. इलाहाबाद की दो सीट हड़ियां और प्रतापपुर में उसे हार का सामना करना पड़ा था.


हालांकि उससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में अपना दल के पास एकमात्र बनारस की रोहनिया सीट ही थी, जहां से खुद अनुप्रिया पटेल जीती थीं. साल 2014 में प्रतापगढ़ के विश्वनाथगंज सीट से विधायक राजाराम पांडेय की मृत्यु के बाद जब उपचुनाव हुआ तो उस सीट पर भी अपना दल ने अपना कब्जा जमा लिया. इस तरह उन पांच साल में पार्टी ने अपनी ताकत बढ़ाई और उसे कुल सात सीटों का फायदा हुआ.


इसी तरह 2017 के चुनाव में पूर्वांचल में पहली बार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने भी अपनी ताकत दिखाई और उसने आठ में से चार सीटों पर कब्जा किया. तब वो भी बीजेपी गठबंधन में शामिल थी, लेकिन इस बार पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी से नाता तोड़कर अखिलेश यादव की सपा का दामन थाम लिया है. तब उनकी पार्टी को बनारस की अजगरा, गाजीपुर की जखनिया, जहूराबाद और  कुशीनगर की रामकोला सीट पर जीत मिली थी. इसके अलावा मऊ के सदर, बलिया के बांसडीह, आजमगढ़ के मेहनगर, जौनपुर के शाहगंज की सीट पर पार्टी को शिकस्त का सामना करना पड़ा.


पिछले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर पीएम मोदी (PM Modi) ने अपने संसदीय क्षेत्र काशी में तीन दिन का प्रवास किया था. उनका काशी प्रवास और पूर्वांचल के सभी जिलों में रैलियों का असर यह हुआ कि सभी 61 सीटों पर बीजेपी ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया. विधानसभा चुनाव के छठे और सातवें चरण के चुनाव के दौरान पीएम मोदी (PM Modi) ने धुआंधार प्रचार किया था. बलिया, मऊ, जौनपुर, गाजीपुर, मिर्जापुर की रैलियों में कांग्रेस, सपा, बसपा मुक्त उत्तर प्रदेश का नारा दिया था.          


हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी को पूर्वांचल में मिली उस कामयाबी के पीछे मोदी की नई सोशल इंजीनियंरिंग का विज़न ही था. इसी सोशल इंजीनियरिंग ने पूरे पूर्वांचल में कमल खिलाया था. इस रणनीति के तहत बीजेपी ने दलित, अति दलित और  पिछडों को जोड़ने का जो प्रयास किया था, उसमें उम्मीद के मुताबिक उसे सफलता भी मिली, जिसके लिए बीजेपी साल 2015 से कोशिश कर रही. इसके ‌लिए बीजेपी पिछले दो साल से प्रयास कर रही थी. इसी के तहत पूर्वांचल के विभिन्न जिलों में राजभर सम्मेलन, दलित सम्मेलन आदि किए गए. इसके अलावा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल, भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया गया था.


उसी रणनीति के तहत तब केशव प्रसाद मौर्य को यूपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. वहीं मौर्य बिरादरी में अच्छी पकड़ रखने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य को भी पार्टी से जोड़ा गया. इससे गैर जाटव दलित, अति पिछड़े, पिछड़े, सवर्ण वोटों के डेडली कंबिनेशन से भाजपा ने पूर्वांचल के किले को फतह किया था. उसी रणनीति के तहत बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पूरे प्रदेश में कई जगहों पर दलितों के घर जाकर भोजन भी किया था. बता दें कि पूर्वांचल की हरेक सीट पर इन जातियों के तकरीबन 18 से 30 हजार वोटर हैं. बड़ा सवाल ये है कि क्या इस बार बीजेपी इन छोटे दलों के बड़े अरमान को आसानी से पूरा करेगी? 


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