आज कांग्रेस ने अपने स्टार प्रचारकों की लिस्ट जारी की है. सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ-साथ प्रियंका गांधी भी इस बार कांग्रेस की स्टार प्रचारक होंगी. ये तो वह खबर है जो कांग्रेस ने आज बता दी है, इस खबर की चर्चा काफी दिनों से जोरों पर थी. सियासी गलियारे से लेकर आम लोग तक सोच रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद लगातार राज्यों में हार रही कांग्रेस के लिए आने वाले पांच राज्यों का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण है. इन राज्यों के परिणाम कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का भविष्य तय करेंगे. लेकिन सच तो यह है कि चुनाव परिणाम का दिन 11 मार्च प्रियंका गांधी का भविष्य तय करने वाला है.


 

प्रियंका गांधी यूपी और पंजाब के विधानसभा चुनावों को बेहद गंभीरता से ले रही हैं. इन दोनों राज्यों का चुनाव प्रियंका गांधी के लिए 'इगो' का प्रश्न बन चुका है. इसकी जोरदार तैयारी पिछले 1 साल से चल रही है. प्रशांत किशोर को कमान देने का निर्णय भी प्रियंका गांधी ने ही लिया था. प्रियंका की सियासी सुझबुझ का अंदाजा आप इतने मात्र से लगा लें कि जब सभी यह उम्मीद कर रहे थे कि सपा 54 और 85 से अधिक सीटें नहीं देगी उस वक्त प्रियंका से अपने दूत के जरिए 105 सीटें झटक लीं. गुलाम नबी आजाद समेत राज्य के कई नेता लगातार गठबंधन नहीं करने की सलाह दे रहे थे. आजाद और स्थानीय सूबे के नेताओं का तर्क था कि इससे हमारे कार्यकर्ताओं में जोश जगेगा, संगठन मजबूत होगा. फिर पीके ने कुछ ही दिन पहले प्रियंका और उनकी टीम को एक प्रजेंटेशन दी. इसमें उन्होंने प्रियंका को बताया कि कांग्रेस खुद अकेले चुनाव लड़ती है तो करीब 20 सीटें मिलेंगी. यदि गठबंधन के साथ लड़ते हैं तभी हमें फायदा होगा. प्रियंका को स्थानीय नेताओं की कमजोरी और उनकी मंशा के बारे में पीके ने स्पष्ट बता दिया. प्रियंका गांधी को स्पष्ट पता है कि कांग्रेस के कई स्थानीय दिग्गज कांग्रेस के लिए ही गढ्ढा खोद रहे हैं. दो दिन पहले गुलाम नबी आजाद और राज बब्बर को प्रियंका गांधी ने कहा कि यदि सत्ता में नहीं आएंगे तो कार्यकर्ता हमें छोड़कर भाग जाएंगे. सबसे पहले हमें सत्ता में आना है फिर संगठन को मजबूत करने पर फोकस किया जाएगा. इसी फॉर्मूले के तहत अभी बिहार में कांग्रेस की सदाकत आश्रम में मीटिंग में आपने देखा होगा कि एक-एक विधायक को हर जिले में तीन गुना सदस्य बनाने की जिम्मेदारी दी गई है.


 

अब आइए आपको बताते हैं कि प्रियंका की कैसी है टीम? यह टीम क्या करती है? प्रियंका गांधी ने 87 सदस्यों की एक टीम बनाई है. इस टीम में 15 कोर मेंबर हैं. इन 87 सदस्यों का चुनाव दो तरीके से हुआ है. करीब 45 सदस्य एक टेस्ट देकर आए हैं. इसमें अधिकांश प्रोफेशनल लोग हैं. कुछ वे प्रोफेशनल सदस्य हैं जो कम से कम एक दो चुनाव लड़ चुके हैं. कोर टीम को ये सभी अपनी रिपोर्ट देते हैं. कोर टीम चार भागों में है. एक सोशल मीडिया, प्रिंट और टेलीविजन मीडिया में क्या चल रहा है? कांग्रेस के प्रति क्या राय बनाई जा रही है? इसका जवाब कैसे देना है? जवाब कहां देना है? यह तय करता है. आपको बता दें कि महज 15 दिन के भीतर प्रियंका गांधी और कांग्रेस से जुड़े करीब 400 फेसबुक पेज बनाए गये हैं. ट्वीटर पर फेसबुक पर ग्राफिक्स बनाकर वीडियो बनाकर सरकार और विरोधियों पर निशाना साधा जा रहा है. यह टीम पीके की टीम से बिल्कुल अलग है. कोर टीम का दूसरा भाग, ग्राउंड रिपोर्ट तैयार करता है. स्थानीय स्तर पर क्या हो रहा है? किसको टिकट देना चाहिए, कौन जीत सकता है कौन हार सकता है? यह रिपोर्ट तैयार करता है. ग्राउंड पर क्या माहौल है किसके पक्ष में है यह तैयार करता है. इसका असर आप गाजियाबाद के साहिबाबाद में रातों रात अमरपाल शर्मा को टिकट देना, रूड़की से टिकट में फेरबदल इसी टीम के रिपोर्ट के आधार पर तय हुआ. उत्तराखंड कांग्रेस में जिन 7 सीटों पर विवाद हो रहा है उन पर फैसला भी इसी टीम के रिपोर्ट के आधार पर होगा. कोर टीम का तीसरा हिस्सा, प्रियंका गांधी जब चुनाव प्रचार करेंगी तो उनको तथ्य मुहैया कराएगा, विधान सभा स्तर के मुद्दे बताएगा. सूत्रों के मुताबिक यदि पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनती है और यूपी में सरकार में सहयोगी बनती है तो प्रियंका गांधी जून में जनरल सेक्रेटरी बन जाएंगी. और इसी के साथ खुलकर अपनी सियासी पारी खेलेंगी. पांच राज्यों का चुनाव परिणाम कुछ भी हो राहुल गांधी का अध्यक्ष बनना तय है. यदि इन दो राज्यों में कांग्रेस सत्ता में शामिल होती है तो प्रियंका गांधी संसदीय सियासत में और राहुल संगठन का काम देखेंगे.


 

कांग्रेस और सियासी गलियों में यह तय माना जाता है कि प्रियंका गांधी सियासी पारी खेलेंगी. पिछले दस सालों से गाहे बेगाहे यह चर्चा भी तेज हो जाती है. वक्त का पहिया पीछे ले जाएंगे तो आपको याद होगा 2011 में जब सोनिया गांधी बीमार पड़ीं तब उम्मीद जगी कि प्रियंका गांधी अब कांग्रेस की बागडोर अपने हाथों में ले लेंगी. तब उन्होंने कहा कि वह अभी सक्रिय सियासत से दूर ही रहेंगी. वैसे 2011 में लोगों को उम्मीद की वजह 1999 का बेल्लारी का लोकसभा चुनाव था. याद करिए आप बेल्लारी में बिना किसी सियासी अनुभव के कैसे अरूण नेहरू जैसे दिग्गज नेता को प्रियंका गांधी के करिश्मे ने मात दी थी. अमेठी और रायबरेली में आम कार्यकर्ता से लेकर जनता तक से प्रियंका का संवाद सालों से बना हुआ है. आपको शायद याद न हो तो बता दें कि अमेठी से राहुल गांधी का परिचय प्रियंका गांधी ने ही कराया था. तो 11 मार्च का दिन प्रियंका गांधी का भविष्य तय करेगा ना कि राहुल गांधी का?


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