Elections 2022: देश की राजनीति का इतिहास बताता है कि जिसने यूपी का किला फतह कर लिया, उसके लिए दिल्ली की गद्दी पाने का रास्ता आसान हो जाता है. हालांकि मुलायम सिंह यादव और मायावती से लेकर अखिलेश यादव ने भी इस किले को जीता जरुर लेकिन फिर भी दिल्ली का सिंहासन हासिल कर पाना उनका एक ख्वाब ही बनकर रह गया. अब अखिलेश यादव पांच साल बाद अपनी उसी साइकिल पर चढ़कर दोबारा यूपी का महाराजा बनने के लिए सारा दमखम लगा तो रहे हैं. लेकिन वहां के लोगों का मूड कुछ ऐसा दिखाई दे रहा है, मानो वे दोबारा एक संन्यासी को ही सूबे का राजपाट सौंपने में अपनी भलाई समझ रहे हैं. जनता का ये मूड आज का है, लेकिन चुनाव आने तक और वोट डालने तक उसकी नीयत में कितना बदलाव हो सकता है, ये तो कोई बड़ा से बड़ा सियासी नजूमी भी नहीं बता सकता.

लेकिन हां, अगर जनता का मूड भांपने और उनकी नब्ज को कुछ हद तक पकड़ने की कोशिश से किए गए किसी सर्वे के नतीजों की बात करें, तो फिलहाल योगी आदित्यनाथ ही आगे चल रहे हैं. अपनी साइकिल पर सवार होकर अखिलेश बेशक उनका पीछा तो कर रहे हैं लेकिन उस फासले को कम करने के लिए अखिलेश को अपनी साइकिल की रफ्तार अभी और बढ़ानी होगी और चुनाव आने तक उसे कायम भी रखना होगा. हालांकि इस सच को झुठलाया नहीं जा सकता कि चुनाव से तीन महीने पहले बोली गई बात और मतदान वाले दिन वोटिंग मशीन का कोई खास बटन दबाने की हकीकत में बहुत फर्क होता है, जिसे पकड़ पाना किसी भी सेफ़ॉलोजिस्ट के बस की बात नहीं है. बावजूद इसके हर राजनीतिक दल के चुनावी प्रबंधकों और समर्थकों की दिलचस्पी चुनाव पूर्व होने वाले ऐसे सर्वे के नतीजों को जानने के लिए बनी रहती है. अक्सर होता यही है कि जो पार्टी ऐसे सर्वे के नतीजों में पिछड़ रही होती है, वो उसे पूर्वाग्रह से ग्रसित या सत्ताधारी दल की शह पर करार देते हुए ठुकरा देती है. लेकिन उसी पार्टी की चुनावी रणनीति बनाने के माहिर इलेक्शन मैनेजर इस तरह के सर्वे से सबक लेते हुए अपनी उन खामियों को देखते हैं कि वे किस इलाके में कमजोर हैं और आखिर उसकी वजह क्या है. लिहाजा, वे बेहद खामोशी के साथ उसे दुरस्त करने पर अपना सारा जोर लगा देते हैं. यही चाणक्य-नीति का भी अहम सूत्र वाक्य है.

यूपी के चुनावों से पहले लोगों की सियासी नब्ज़ टटोलने के मकसद से एबीपी न्यूज़ ने सी-वोटर के साथ मिलकर हर हफ्ते सर्वे कराने की एक अनूठी व रोचक पहल की है. 27नवंबर के जो नतीजे आए हैं, उसमें किस पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं, उसका अनुमान नहीं लगाया गया है बल्कि उसे कितने प्रतिशत वोट मिल सकते हैं, उसका मोटा आंकलन किया गया है. इसमें फिलहाल बीजेपी आगे है और समाजवादी पार्टी दूसरे नंबर पर है. यानी, सारा सियासी दंगल इन दोनों के बीच ही होने वाला है. हैरानी की बात ये है कि जिस कांग्रेस को मजबूत करने के लिए पिछले करीब दो साल से प्रियंका गांधी यूपी की सड़कें नाप रहीं हैं और अपनी दादी के नक्शे कदम पर चलते हुए एक संघर्षशील नेत्री का अवतार धारण कर रही है,वही कांग्रेस वोटों के लिहाज से चौथे नंबर से आगे नहीं बढ़ पाएगी. इस सर्वे में वोट प्रतिशत के हिसाब से मायावती की बीएसपी तीसरे नंबर पर आती दिख रही है.

सी-वोटर के सर्वे में सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को मिलता दिख रहा है. सर्वे के मुताबिक बीजेपी+ को 40 फीसदी तक वोट मिलता दिख रहा है. वहीं, समाजवादी पार्टी (SP) और उसके सहयोगी दलों को 32 फीसदी वोट मिलता दिख रहा है. यानी इस सर्वे के मुताबिक, छोटे क्षेत्रीय दलों से गठबंधन के बावजूद सपा को अभी भी बीजेपी के मुकाबले 8 फीसदी कम वोट मिलने का अनुमान है.

हालांकि सपा ने अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से गठबंधन का ऐलान फिलहाल नहीं किया है लेकिन उनकी बात फाइनल हो चुकी है.सीटों के बंटवारे की बात तय होते ही किसी भी दिन इसकी घोषणा हो सकती है.इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी से भी उसकी सीटों के बंटवारे को लेकर बातचीत चल रही है और हो सकता है कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा रोकने के लिए अखिलेश उन्हें भी मना ही लें. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने कल ही ये इशारा दिया है कि चुनाव से पहले और भी कई छोटे दाल सपा गठबंधन में शामिल होने वाले हैं. इसलिए इस सर्वे के नतीजों के आधार पर ये नहीं कह सकते कि योगी आदित्यनाथ के लिए दोबारा सिंहासन हासिल करना,बेहद आसान है.

यूपी में विधानसभा की कुल 403 सीट हैं.

C VOTER के पिछले दो सर्वे के नतीजे

  20 नवंबर  27 नवंबर
BJP+ 40% 40%
SP+ 32% 32%
BSP   15% 14%
कांग्रेस 7% 8%
अन्य 6% 6%

चुनावों में तकरीबन तीन महीने का वक़्त अभी बाकी है,इसलिये सियासी तस्वीर बदलने के साथ लोगों का मूड भी बदलता दिखेगा और इन आंकड़ों में भी फेरबदल होता हुआ हमें देखने को मिल सकता है. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि चुनाव आने तक अखिलेश यादव की साइकिल क्या इस आठ फीसदी के फासले को कर पायेगी कि नहीं?

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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