देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश चुनाव के तीसरे चरण में 20 फरवरी को होने वाली वोटिंग दो मायनों में बेहद महत्वपूर्ण है. पहला तो यह कि इस चरण में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की करहल सीट पर मतदान होना है, जहां से बीजेपी ने मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्री एस.पी.सिंह बघेल को मैदान में उतारकर इस मुकाबले को कड़ा बनाने के साथ ही अखिलेश को एक बड़ी चुनौती दे डाली है. ये तीसरे चरण की सबसे हॉट सीट इसलिये भी मानी जा रही है क्योंकि अपने राजनीतिक जीवन में अखिलेश को पहली बार ऐसी कड़ी टक्कर मिली है,जब उनका सामना एक केंद्रीय मंत्री से हो रहा है.हालांकि अपने मुख्य विरोधी दल के मुखिया को घेरने और शिकस्त देने में बीजेपी कितनी कामयाब हो पाती है,ये तो चुनाव नतीजे ही बताएंगे.लेकिन एक केंद्रीय मंत्री को विधानसभा का चुनाव लड़वाकर बीजेपी ने अपने सबसे बड़े विरोधी को मनोवैज्ञानिक रुप से कमजोर करने का सियासी दांव तो खेला ही है,जिसका कुछ तो असर होगा ही.


तीसरे चरण के अहम होने की दूसरी बड़ी वजह ये है कि इस चरण में 16 जिलों की जिन 59 सीटों पर वोटिंग होनी है,उसका एक बड़ा हिस्सा किसान बहुल है.खासकर,उन किसानों का जो आलू की खेती करते हैं.लेकिन इसी इलाके को 'यादवलैंड' भी कहा जाता है क्योंकिं इनमें से अधिकांश जिलों में यादव समुदाय की खासी संख्या है,जिसे सपा अपना सबसे प्रभावशाली वोट बैंक मानती रही है.लेकिन साल 2017 के विधानसभा चुनाव नतीजे देखें,तो इस इलाके के यादवों ने ही सपा को ऐसी पटखनी दे दी थी,जिसकी कल्पना न तो कभी मुलायम सिंह यादव ने की होगी और न ही अखिलेश ने.इसीलिये बीजेपी इसे भी पश्चिमी यूपी की तरह ही अपना मजबूत गढ़ समझती है क्योंकि पिछली बार उसने यहां की 59 में से 49 सीटों पर भगवा लहराकर तमाम सियासी समीकरणों को ध्वस्त कर दिखाया था.


इस बार बीजेपी के लिए जहां उन सीटों को दोबारा फतह करने की चुनौती है,तो वहीं अखिलेश पांच साल पहले रुठ गए यादव समुदाय को वापस अपने साथ जोड़ने के लिए पूरी ताकत खपा रहे हैं.दोनों ही दलों के लिए ये तीसरा चरण बेहद अहम है लेकिन अखिलेश यादव के लिए इसे सबसे बड़ा इम्तिहान इसलिये समझा जाएगा क्योंकि इस क्षेत्र की आधी यानी 30 सीटें ऐसी हैं,जहां यादव ही निर्णायक भूमिका में हैं. इनमें भी अधिकांश सीटें फिरोजाबाद, कन्नौज, मैनपुरी व  इटावा जिले में हैं. इसी मैनपुरी की करहल सीट से अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं.चूंकि इस बार बीजेपी ने उनके लिए मुकाबला कुछ पेचीदा बना दिया है,लिहाज़ा भतीजे को बाजी जिताने के लिए चाचा शिवपाल यादव ने पुरानी सब बातें भुला दी हैं और वे भी अखिलेश के लिए अपनी पूरी ताकत लगाते दिखाई दे रहे हैं.


लेकिन चुनावी इतिहास की एक हक़ीक़त ये भी है कि इन्हीं यादवों ने पिछली बार सपा को कड़वा स्वाद चखाते हुए सिर्फ़ आठ सीटों पर ही जीत दिलाई थी.जबकि बीएसपी और कांग्रेस को सिर्फ एक-एक ही सीट मिल पाई थी.हालांकि जमीन से आ रही कुछ रिपोर्ट पर यकीन करें,तो इस बार हालात अलग हैं और माहौल भी कुछ बदला हुआ इसलिये है कि यादवों का बड़ा तबका अब सपा से उतना नाराज नहीं दिखाई दे रहा है.


लेकिन इस इलाके में एक बड़ा मुद्दा आलू की पैदावार करने वाले किसानों की समस्या से भी जुड़ा हुआ है,जिसका सामना बीजेपी और सपा को समान रुप से करना पड़ रहा है.इन 59 में से तकरीबन 36 सीटें ऐसी हैं,जहां आलू की खेती करने वाले किसानों का ठीकठाक प्रभाव है क्योंकि एक मोटे अनुमान के मुताबिक इनकी तादाद करीब साढ़े चार लाख से कुछ ज्यादा ही है. सियासी लिहाज से ये हर पार्टी के लिये एक बड़ा वोट बैंक समझा जाता है. लेकिन बताते हैं कि सूबे की आलू पट्टी कहे जाने वाले इस इलाके के किसानों के मूड को भांपना इतना आसान भी नहीं है कि वे इस बार किसका साथ देंगे.यादवों के अलावा यहां कुर्मी जाति के वोटरों की भी खासी संख्या है.


दरअसल, आलू की पैदावार करने में यूपी ही देश का सबसे बड़ा राज्य है ,जहां इस सीजन में 147 लाख मीट्रिक टन से भी ज्यादा का उत्पादन हुआ है.आगरा, मथुरा, इटावा, फर्रुखाबाद से लेकर कानपुर देहात तक फैला इलाका आलू बेल्ट के नाम से भी मशहूर  है,और यहां देश में होने वाली कुल पैदावार के करीब 30 फीसदी हिस्से का उत्पादन होता है. एक अनुमान के मुताबिक सिर्फ फरुखाबाद जिले में ही दो लाख से ज्यादा किसान आलू की खेती से जुड़े हैं.लेकिन किसानों के गुस्से की एक बड़ी वजह ये है कि उन्हें अपनी फसल का वाजिब दाम नहीं मिलता और इसे लेकर पिछली कई सरकारों ने उन्हें वादों के झुनझुने के सिवा और कुछ नहीं थमाया.आलू की पैदावार करने वाले किसान नेता कहते हैं कि हर चुनाव में सभी दल हमारे लिए बड़े-बड़े वादे तो करते हैं लेकिन पिछले 10-15 साल में आई किसी भी सरकार ने आलू की खपत बढ़ाने के लिए उद्योग लगाने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया.जाहिर है कि किसानों की ये नाराजगी इस बार बीजेपी को भी कुछ भारी पड़ सकती है.


इस बीच अपनी सीट पर वोटिंग होने से ऐन पहले अखिलेश यादव ने योगी सरकार पर निशाना साधने के लिए अब शायरी का भी सहारा लिया है.उन्होंने बुधवार को अपने ट्वीट में लिखा- ”अच्छा नहीं है, यूं अवाम की आंखों में सैलाब का आना…हुकूमत के हाथों का क़ानून के हाथों से लम्बा हो जाना.”


तीसरे चरण के प्रचार के अंतिम दौर में अखिलेश ने ये दावा भी किया कि दो चरण के चुनाव के बाद बीजेपी कार्यकर्ता ठंडे पड़ गए हैं. अखिलेश के इस बयान पर सीएम योगी आदित्यनाथ ने पलटवार करते हुए कहा कि ये उनकी बौखलाहट बता रही है. अपनी हार के कारण वह बीजेपी उम्मीदवारों पर हमला करवा रहे हैं. लेकिन वो चिंता ना करें, 15-16 दिन बाकी हैं,उनकी सारी गर्मी उतर जाएगी. सूबे में अगली सरकार किस पार्टी की होगी,ये तो कोई नहीं जानता लेकिन फिलहाल सवाल ये है कि क्या  अखिलेश यादव अपनी सीट निकालने में इतनी आसानी से कामयाब हो जाएंगे?