उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में तकरीबन 20 फीसदी मुस्लिम आबादी (Muslim) सत्ता का गणित बनाने-बिगाड़ने में अपनी अहमियत रखती आई है लेकिन पिछले चुनाव में योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने हिंदुत्व का जो कार्ड खेला, उसने इस पूरे गणित को धराशायी करके रख दिया था. बीजेपी (BJP) तो इस बार भी वही प्रयोग दोहरा रही है लेकिन सपा-आरएलडी (SP-RLD) गठबंधन जिसे अपना मजबूत वोट बैंक मानकर चल रहा है, उसमें इस बार बीएसपी सुप्रीमो मायावती (BSP Supremo Mayawati) ने अपनी सोशल इंजीनियरिंग का जो प्रयोग किया है, उसका खामियाजा सपा गठबंधन को हो सकता है और जिसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलने के आसार नजर आ रहे हैं.
दरअसल, वेस्ट यूपी की कुल 144 सीटें हर पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हैं और पिछले चुनाव में बीजेपी ने यहां से 108 सीटें जीतकर 'जाटलैंड' को अपना सबसे मजबूत गढ़ बना लिया था. बीजेपी तो उस गढ़ को बचाने के लिए ही पूरी ताकत लगा रही है लेकिन अखिलेश यादव-जयंत चौधरी की जोड़ी किसानों की नाराजगी का फायदा उठाते हुए MJ यानी मुस्लिम-जाट को एक करके बीजेपी के इस गढ़ को तोड़ने में जुटी हुई है. लेकिन मायावती ने गठबंधन के मंसूबों पर पानी फेरने का काम कर दिया है.
मायावती ने सबसे अधिक 44 (31 प्रतिशत) मुस्लिम उम्मीदवार उतारकर जो कार्ड खेला है, उससे मुस्लिम वोटों का विभाजन होना तय है, जिसका फायदा बीजेपी को ही मिलेगा. हालांकि सपा-रालोद ने भी 34 मुस्लिमों को टिकट बांटे हैं. कांग्रेस ने भी इस इलाके में 34 मुस्लिम मैदान में उतारे हैं. लेकिन बीजेपी ने किसी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट नहीं दिया है. इस तरह 'जाटलैंड' में 28 ऐसी सीट हैं, जहां सपा, बसपा और कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार आमने-सामने हैं.
जाहिर है कि इससे इन सीटों पर वोटों के बंटने की संभावना बढ़ गई है और यही बीजेपी के लिए खुश होने की वजह बन गई है. कांग्रेस, बसपा, सपा-रालोद गठबंधन ने कुल 113 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट बांटे हैं. दिलचस्प बात है कि जिन सीटों पर सपा-रालोद ने मुस्लिमों को टिकट नहीं दिया, वहां बीएसपी ने खासतौर पर मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट देकर सारा समीकरण बदल दिया है. कांग्रेस ने भी कमोबेश यही रणनीति अपनाई है. वहीं एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने भी 90 प्रतिशत मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव चला है.
वेस्ट यूपी में जातिगत समीकरण को साधने के लिए अपने उम्मीदवार तय करने में हर पार्टी ने खूब होम वर्क किया है लेकिन इसमें भी बीजेपी बाजी मारती दिख रही है. किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए बीजेपी ने जाटों और गुर्जरों को अपने पाले में करने की पूरी कोशिश की है. बीजेपी ने सामान्य जाति के 43 लोगों को टिकट दिए हैं. 44 टिकट ओबीसी जाति के लोगों को देकर उन्हें उम्मीदवार बनाया है. इसमें 17 जाट, 7 गुर्जर और 5 सैनी हैं. जबकि अनुसूचित जाति के 19 को उम्मीदवार बनाया गया है.
पार्टी ने मायावती के सिपहसालार रह चुके जगपाल सिंह को सहारनपुर देहात से चुनावी रण में उतारकर बड़ा दांव खेला है. दूसरी ओर सपा-रालोद गठबंधन ने 16 जाटों को टिकट दिए हैं. कांग्रेस ने 6 और बीएसपी ने 4 पर अपनी किस्मत आजमाई है.
वैसे यूपी विधानसभा की कुल 403 सीटों में से 143 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम वोटरों का असर है. इनमें से भी 36 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिम उम्मीदवार अपने दम पर चुनाव जीत सकते हैं. पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों के अलावा पश्चिमी यूपी में मुसलमान की बड़ी मौजूदगी है. सिर्फ पश्चिमी यूपी में 26.21 फीसदी मुसलमान हैं. पश्चिमी यूपी में 26 जिले आते हैं, जहां विधानसभा की 144 सीटें हैं. पहले चरण में 10 फरवरी को 11 जिलों की 58 सीटों पर वोटिंग होनी है.
पहले चरण में कैराना, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ जैसी वो सीटें शामिल हैं, जहां मुस्लिम बहुल आबादी हैं. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज यानि CSDS के आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 41 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उसे औसत से भी ज्यादा 43-44 फ़ीसदी वोट मिले. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे, जबकि पश्चिमी यूपी में बीजेपी ने 52 फीसदी वोट हासिल किए थे.
राजनीतिक विश्लेषक मोहम्मद आफताब अंसारी कहते हैं, ''राम मंदिर के आंदोलन के बाद से ही मुस्लिम विधायकों की संख्या ज्यादा थी लेकिन उसके मुकाबले आज की हालत काफी खराब है. आज वो महज 6 फीसदी के आसपास आ गई है. इसका कारण भी साफ है कि वोटों के बिखराव की वजह से ही ऐसा हो रहा है.
यूपी की करीब 150 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी डिसाइडिंग फैक्टर है लेकिन वहां भी उनको पहले की तरह से वोट नहीं मिलते क्योंकि बीजेपी को छोडकर सभी दल मुस्लिम कैंडिडेट ही उतारते हैं जिससे मतों का बिखराव होना स्वाभाविक है. उनके मुताबिक इस चुनाव मेंतो वोटों के लिए और भी ज्यादा कशमकश होगी क्योंकि अब तक सपा-बसपा-कांग्रेस ही थीं लेकिन अब आप और ओवैसी के आने से मुस्लिम विधायकों की संख्या में और भी गिरावट देखने को मिलेगी.''
यूपी में मुसलमान मतदाता कुल आबादी का लगभग 20 फीसदी हैं. साल 2012 के चुनाव में अब तक के सब से ज्यादा 64 मुसलमान विधायक जीत कर आए थे. तब सपा के 41, बसपा के 15, कांग्रेस के दो जबकि छह विधायक अन्य दलों से थे. वहीं उससे पहले साल 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में 56 मुसलमान विधायक बने थे जिसमें बसपा के 29, सपा के 21 व छह विधायक अन्य दलों के थे.
हालांकि, जानकारों की माने तो 1991 में राम मंदिर मुद्दे की वजह से सिर्फ 4.1% मुस्लिम विधायक ही जीत पाए थे. इसके बाद हर चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ रही थी लेकिन मौजूदा स्थिति यह है कि 2017 में यह आंकड़ा घटकर महज 5.9% पर पहुंच गया है. सियासी समीकरणों को देखते हुए इस बार ये आंकड़ा अगर और भी कम ही जाए, तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.