यूपी चुनाव: कांग्रेस के लिए कितना घातक साबित होगा सलमान खुर्शीद का 'किताब बम' ?
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों से ऐन पहले कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने एक 'किताब बम' फोड़कर सूबे समेत देश की राजनीति में हलचल मचा दी है.इस किताब में उन्होंने हिंदुत्व की तुलना आतंकी संगठन आईएसआईएस और बोको हरम से करके बेशक बीजेपी व अन्य हिंदू संगठनों पर निशाना साधा है लेकिन सियासी लिहाज़ से देखें तो ये यूपी में कांग्रेस के चुनावी गणित को काफी हद तक बिगाड़ सकता है. यूपी में प्रियंका गांधी जिस 'सॉफ्ट हिंदुत्व' का सहारा लेकर पार्टी की बंजर जमीन को मजबूत बनाने में जुटी हुई हैं,सलमान की ये किताब उस मेहनत पर पलीता लगाने वाली भी साबित हो सकती है.
वैसे तो 'सनराइज़ ओवर अयोध्या' के शीर्षक से अंग्रेजी में लिखी गई इस किताब में सलमान खुर्शीद ने अयोध्या विवाद और उस पर सुप्रीम कोर्ट के आये ताजा फैसले की ही आसान भाषा में व्याख्या की है.लेकिन किताब के छठे चैप्टर में "द सैफ़रन स्काई" वाले हिस्से में उन्होंने हिंदुत्व पर जिस तरीके से हमला किया है,उसने बीजेपी का काम आसान कर दिया है क्योंकि अब उसे आगामी चुनाव में हिंदू वोटों के पोलराइजेशन यानी ध्रुवीकरण के लिए उतनी मेहनत करने की जरुरत नहीं होगी.हालांकि हिंदुत्व को निशाने पर लेने का सियासी मकसद तो यही समझा जाएगा कि इसके जरिये सलमान ने कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश की है, जो 1992 में बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद से ही उससे छिटककर समाजवादी पार्टी का दामन थामे हुए है.लेकिन इसकी क्या गारंटी है कि वो सलमान की इस किताब से इतना प्रभावित हो ही जायेगा कि अचानक साइकिल की सवारी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थाम लेगा.
यूपी के मुसलमान के लिए सपा को छोड़कर कोई और विकल्प तलाशने की मजबूरी अगर हुई भी तो वो तब भी कांग्रेस के मुकाबले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को ज्यादा तरजीह देगा क्योंकि इस बार वो भी चुनावी अखाड़े में होगी.सलमान की इस किताब के हिंदुत्व वाले उस विवादित हिस्से के जरिये बीजेपी अब प्रियंका-राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस पर जमकर ये निशाना साधेगी कि उसका सॉफ्ट हिंदुत्व महज़ एक दिखावा है और वह आज भी सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति पर ही यकीन रखती है.कुल मिलाकर इस किताब ने कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है औऱ सोनिया, प्रियंका व राहुल गांधी के पास अब ये कहने के सिवा कोई और चारा नहीं बचता कि वे इसे सलमान खुर्शीद के निजी विचार बताते हुए इससे अपना पल्ला झाड़ लें.हालांकि पार्टी तब भी इसका नुकसान भुगतने से खुद को बचा पायेगी, ये कहना मुश्किल है.
दरअसल, इस किताब के छठे चैप्टर "द सैफ़रन स्काई" की कुछ पंक्तियों में सलमान ने हिंदुत्व पर हमला करते हुए जो लिखा है,उसका हिंदी अर्थ ये है-"भारत के साधु-संत सदियों से जिस सनातन धर्म और मूल हिंदुत्व की बात करते आए हैं, आज उसे कट्टर हिंदुत्व के ज़रिए दरकिनार किया जा रहा है. आज हिंदुत्व का एक ऐसा राजनीतिक संस्करण खड़ा किया जा रहा है, जो इस्लामी जिहादी संगठनों आईएसआईएस और बोको हरम जैसा है."
सारा बवाल इसी पर उठा है जिसे लेकर बीजेपी और वीएचपी से जुड़े नेताओं ने सवाल उठाए हैं. बीजेपी के प्रवक्ता गौरव भाटिया ने कहा कि इस मामले पर सोनिया गांधी को चुप्पी तोड़नी होगी और इस पर अपना विचार साफ करना होगा. उन्होंने के सवाल भी उठाया है कि ये सोच शशि थरूर की है, या मणिशंकर अय्यर की है. क्या प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश की गलियों में जाकर ये सब कहने की हिम्मत करेंगी करेंगी.उन्होंने इसे हिंदुओं का अपमान और भारत की आत्मा को ठेस बताते हुए कहा कि चुनाव आते ही राहुल और प्रियंका इच्छाधारी हिन्दू बन जाते है.
हालांकि सलमान ख़ुर्शीद ने दावा किया है कि उन्होंने किताब में 'हिंदू धर्म' को नहीं बल्कि 'हिंदुत्व' को आतंकवादी संगठनों से जोड़ा. मैंने ये कहा कि हिंदुत्व की राजनीति करने वाले गलत हैं और आईएसआईएस भी गलत है. किताब में हिंदू धर्म के बारे में बहुत कुछ अच्छा लिखा है. लोगों को चाहिए कि वो उनकी पूरी किताब पढ़ें.
विश्व हिंदू परिषद के नेता सुरेंद्र जैन के मुताबिक पिछले इतने सालों से कांग्रेस की राजनीति हिंदू समाज को अपमानित करके ही चलती रही है. जिन्होंने बार-बार राम के अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह लगाया, जिन्होंने हिंदू आतंकवाद शब्द को आगे बढ़ाया, जिन्होंने सिमी की वकालत की, ऐसे लोगों को हिंदुत्व का उत्थान हजम नहीं हो रहा है. अब उनकी तुष्टीकरण की राजनीति का अंत हो रहा है, इसलिए उन्हें ये स्वीकार नहीं हो रहा. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि चुनाव से पहले ये किताब लाकर सलमान खुर्शीद ने कांग्रेस का कुछ भला किया है या उसकी नाव में सुराख करने का काम कर डाला है?
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.