उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल ही वो इलाका है, जो किसी भी पार्टी के लिए लखनऊ की कुर्सी तक पहुंचने का दरवाजा खोलता है.  देश के सबसे बड़े सूबे के इस हिस्से का चुनावी इतिहास बताता है कि इसी इलाके की जनता ने मुलायम सिंह यादव, मायावती, अखिलेश यादव से लेकर योगी आदित्यनाथ की झोली में सीटों की बौछार करके उन्हें यूपी के सिंहासन पर  बैठाया है, लिहाज़ा हर राजनीतिक दल के लिए ये इलाका आज भी सत्ता तक पहुंचने की सबसे कामयाब सीढ़ी माना जाता है.  हालांकि पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी और गुरु गोरखनाथ की गद्दी संभाले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ की कर्म नगरी गोरखपुर भी इसी पूर्वांचल में आता है, लिहाज़ा बीजेपी के लिए तो ये और भी ज्यादा अहम है.  

यूपी चुनाव को लेकर लोगों के दिमाग में आखिर क्या चल रहा है और वे खुद को किसे अगले पांच साल के लिए अपना रहनुमा समझते हैं, यही सब जानने और देश की जनता को वह बताने के लिए एबीपी न्यूज़  सी-वोटर के साथ मिलकर हर हफ्ते चुनाव पूर्व सर्वे कर रहा है.  वैसे ये सर्वे 25 नवंबर से लेकर 1 दिसंबर के बीच हुआ है, लिहाज़ा इसके नतीजों को उसी अंतराल के मुताबिक ही देखा जाना ज्यादा वाज़िब होगा क्योंकि सियासत की बिसात पर हर दिन गोटियां बदलती रहती हैं औऱ वोटरों का एक बड़ा तबका भी  उसी हिसाब से अपना मूड भी बदलता है, जो किसी भी सर्वे के नतीजों में पुख्ता तौर पर सामने नहीं आ सकता.  लेकिन इस हक़ीक़त को तो मानना ही पड़ेगा कि प्रदेश में सबसे ज्यादा सीटों वाले पूर्वांचल के लोगों को लुभाने के लिए सत्ताधारी बीजेपी से लेकर अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की प्रियंका गांधी ने अपनी पूरी ताकत झोंक रखी है.  

हालांकि ये सर्वे पूर्वांचल क्षेत्र में आने वाली विधानसभा की 130 सीटों को लेकर ही किया गया है लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक पूर्वांचल के 28 जिलों में  कुल 164 सीटें हैं, जो किसी भी पार्टी  के सत्ता में आने की किस्मत का फैसला करती हैं.   पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां से सर्वाधिक 115 सीटें मिली थीं, जिसके बूते पर ही योगी आदित्यनाथ को यूपी का सिंहासन मिला था.   वैसे 2017 के चुनाव में भी बीजेपी को ये उम्मीद नहीं थी कि पूर्वांचल के लोग इतनी सारी सीटें देकर उसकी झोली भर देंगे. उसकी वजह भी थी क्योंकि उससे पहले तक पूर्वांचल को समाजवादी पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था.  लेकिन योगी की ओजस्विता और बीजेपी की रणनीति ने सपा के इस किले को ऐसा नेस्तनाबूद करके रख दिया कि अखिलेश यादव पांच साल बाद भी अब इसी मशक्कत में लगे हैं कि इसका आधा हिस्सा ही इस बार उनके उनके हाथ लग जाये.  

वैसे पिछले हफ्ते हुए और ताजा सर्वे के नतीजों की तुलना करें, तो पूर्वांचल में सपा अपनी बढ़त बनाती दिख रही है लेकिन उसी अनुपात में बीजेपी भी उससे आगे निकल रही है.  लिहाज़ा, ये तो तय है कि यूपी के बाकी हिस्सों की तरह ही यहां भी असली मुकाबला बीजेपी और सपा के बीच ही है.  मायावती की बीएसपी और प्रियंका गांधी की कांग्रेस यहाँ भी काफी पीछे हैं.  हालांकि इस सर्वे में इसका अनुमान नहीं लगाया गया है कि किस पार्टी को कितनी सीटें मिल सकती हैं.  मोटे तौर पर लोगों से बातचीत करके इसका अंदाजा लगाया है कि किस दल को कितने प्रतिशत वोट मिल सकते हैं.  बीजेपी को सबसे ज्यादा वोट मिलते दिख रहे हैं लेकिन सपा इस रेस को जीतने के लिए पूरी ताकत लगा रही है क्योंकि दोनों के बीच सिर्फ चार फीसदी वोटों का ही फासला है.  

सर्वे के नतीजों के मुताबिक पिछले हफ्ते भर में बीजेपी औऱ सपा, दोनों ने ही उसे मिलने वाले वोटों में एक फीसदी की बढ़त हासिल की है, जबकि बीएसपी को मिलने वाले वोट प्रतिशत में दो फीसदी की कमी हुई है, जो थोड़ा हैरान करने वाली बात है.  ताजा सर्वे के नतीजे कुछ इस तरह से हैं-

पूर्वांचल रीजन में किसे कितने वोट?

कुल सीट-130

 

27 नवंबर-     

4 दिसंबर

BJP+      

39%         

40%

 

SP+      

35%          

36 %

 

BSP 

14 %         

12%

 

कांग्रेस-    

7%

7%

अन्य-       

5%

5%

इस सर्वे में यूपी के 11 हजार 85 लोगों ने हिस्सा लिया है.   सर्वे 25 नवंबर से 1 दिसंबर के बीच का है.   इसमें मार्जिन ऑफ एरर प्लस माइनस 3 से 5% तक का है, दरअसल 2017 के चुनावी इतिहास पर अगर गौर करें, तो तब बीजेपी ने पूर्वांचल में प्रभावी क्षेत्रीय दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (सोनेलाल) के साथ गठबंधन करके ही बड़ी जीत हासिल की थी. तब पूर्वांचल की जनता ने सपा को महज़ 17 सीटें देकर उसका अहंकार ख़त्म कर दिया.  इसी तरह साल 2007 के चुनाव में बसपा का भी यहां खासा जनाधार था और इसी पूर्वांचल से मिली सीटों के बूते पर ही मायावती सूबे की मुख्यमंत्री बनी थीं लेकिन पिछले चुनाव में वह भी सिर्फ 14 सीटों पर ही सिमट गई थी जबकि कांग्रेस को दो और अन्‍य को 16 सीटें मिली थीं.  साल 2019 के लोकसभा चुनावों में निषाद पार्टी के साथ गठबंधन करने से भी बीजेपी को बड़ा फायदा मिला था. हालांकि इस बार भी बीजेपी की निगाह छोटे दलों पर है. राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार,  ये छोटे दल ही बीजेपी की पूर्वांचल में ताकत हैं.  कुर्मी जाति के साथ ही कोईरी, काछी, कुशवाहा जैसी जातियों पर भी अपना दल (सोनेलाल) का असर होता है.  इन्हें आपस में जोड़ दें तो पूर्वांचल के बनारस, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, कानपुर, कानपुर देहात की सीटों पर यह वोट बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं.  

हालांकि इस बार समाजवादी पार्टी गठबंधन में आगे इसलिये निकल चुकी है कि उसने जनवादी दल और महान दल जैसी छोटी पार्टियों के साथ भी गठबंधन कर लिया है. महान दल की पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुशवाहा, शाक्य, सैनी और मौर्या जाति पर अच्छी पकड़ है. चौहान वोट बैंक वाली पार्टी जनवादी दल भी वोट बैंक के लिहाज से मजबूत पकड़ वाली पार्टी समझी जाती है. कुल मिलाकर, अगले साल यूपी की सत्ता में जो भी बड़ी पार्टी आयेगी,  उसके पीछे इन छोटे दलों की ताकत होगी.

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