कहते हैं कि राजनीति में कोई नेता अपनी लोकप्रियता के दम पर एक बार तो सत्ता हासिल कर लेता है लेकिन दोबारा उसी सिंहासन पर बैठने के लिए उसमें 'चाणक्य बुद्धि' होना भी जरुरी है.यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो गुरु गोरखनाथ के शिष्य के भी शिष्य महंत अवैद्यनाथ के चेले बनते ही संन्यासी हो गए थे और सच ये है कि एक संन्यासी का किसी राजपाट से कभी कोई वास्ता नहीं रहता. सदियों पहले गुरु गोरखनाथ की योग विद्या से तो धार के राजा भर्तृहरि इतना प्रभावित हुए थे कि उन्होंने अपना सारा राजपाट छोड़कर सही मायने में वैराग्य धारण कर लिया था और उसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.


लेकिन 24 बरस पहले उन्हीं महंत अवैद्यनाथ ने अपने शिष्य आदित्यनाथ को जब अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया होगा,तो जाहिर है कि उन्होंने अपने चेले को चाणक्य-नीति के भी कुछ खास पाठ पढ़ाये होंगे,कि कोई भी सियासी मुसीबत आने पर उससे कैसे निपटा जाये. इसमें किसी को कोई शक नहीं होगा कि पांच साल तक राजपाट चलाते हुए योगी आदित्यनाथ ने सियासत की इस अग्नि-परीक्षा के चक्रव्यूह से गुजरने में काफी हद तक कामयाबी ही हासिल की है.


पर, बीजेपी को दिल्ली से लेकर यूपी की सत्ता दिलाने में एक और चाणक्य की भूमिका रही है,जिसे नकारा नहीं जा सकता और जिनका नाम है-अमित शाह. पांच साल पहले पूर्वांचल में खासा जनाधार रखने वाले छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने से लेकर पश्चिमी उत्तरप्रदेश में जाट-मुस्लिम गठबंधन के परंपरागत वोट बैंक को तोड़ने में अगर उन्होंने अपनी 'चाणक्य बुद्धि' का इस्तेमान न किया होता, तो साल 2017 के चुनावों में यूपी की सत्ता पाना, बीजेपी के लिए उतना आसान भी न होता.उस चुनाव में यूपी की हर विधानसभा सीट पर उम्मीदवार तय करने और उसके बाद चुनाव अभियान को तेज धार देने की जो रणनीति उन्होंने बनाई थी, वह कामयाब हुई और बीजेपी को उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं. हालांकि ये अलग बात है कि तब पार्टी मनोज सिन्हा को सीएम बनाना चाहती थी लेकिन पूर्वांचल से झोली भरकर मिली सीटों का दबदबा ही कुछ ऐसा था कि आखिरकार पार्टी नेतृत्व के पास योगी आदित्यनाथ के नाम पर अपनी मुहर लगाने के सिवा और कोई चारा बचा ही नहीं था.


ख़ैर, बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व यूपी के इस चुनाव में तीन सौ या उससे भी ज्यादा सीटें लाने का दावा बेशक करता रहे लेकिन वो इस जमीनी हक़ीक़त से भी अनजान नहीं है कि अखिलेश यादव की साइकिल इस बार उसे कड़ी टक्कर देती दिख रही है. लिहाज़ा, इस बार उसने बूथ स्तर तक अपने कार्यकर्ताओं को यही संदेश दिया है कि आखिरी वक्त तक अहंकार पालने और अति आत्मविश्वास में मुग्ध रहने की गलती भूलकर भी न करें. चुनाव से पहले हुए अब तक हुए तमाम सर्वे के नतीजों की नब्ज को पकड़ते हुए पार्टी को ये अंदाज हो गया है कि पिछली बार की तुलना में इस बार उसकी सीटें कम होने के आसार दिख रहे हैं.लेकिन कहीं बाजी ही न पलट जाये, इसलिये पार्टी ने इस खतरे को भांपते हुए चुनाव अभियान की कमान फिर से अपने चाणक्य के हाथ में थमा दी है.


इतिहास के मुताबिक महाभारत का युद्ध शुरु होने से पहले श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था,वही गीता के 18 अध्याय हैं. अधर्म पर धर्म की विजय पाने के लिए वह युद्ध तो कुरुक्षेत्र में लड़ा गया था लेकिन श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था.उसी जन्मभूमि से बीजेपी के चाणक्य यानी अमित शाह आज यूपी की इस चुनावी महाभारत का बिगुल फूंक रहे हैं. इस बिगुल की आवाज का कितना और कितनी दूर तक असर होगा,ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा लेकिन इतना तय है कि बीजेपी इसे दो साल बाद होने वाली देश की सियासी महाभारत का सेमी फाइनल मानकर ही अपनी पूरी ताकत झोंक रही है.


गौरतलब है कि यूपी चुनाव की तारीखों का ऐलान होने और शुरुआती दो चरणों में मैदान में उतरने वाले उम्मीदवारों के नाम घोषित होने के बाद अमित शाह का ये पहला उत्तर प्रदेश दौरा है,लिहाज़ा पार्टी इसके जरिये अपना सबसे बड़ा शक्ति-प्रदर्शन करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहती. मथुरा से निकलकर शनिवार को शाह उस 'जाटलैंड' पहुंचेंगे, जहां किसान आंदोलन की कड़वी यादें और उसकी तपिश आज भी लोगों के जेहन में हैं. शाह मेरठ में कई विधानसभाओं के पदाधिकारियों के साथ बैठकें करेंगे,जिसमें वे चाणक्य नीति के कुछ गुर बताएंगे कि किसानों की नाराजगी दूर करने और उनका भरोसा जितने के लिए पार्टी नेताओं को कौन-सी अहम बातें उनके सामने रखनी हैं. वैसे अगर वे कुछेक किलोमीटर की पदयात्रा करते हुए पार्टी के लिए वोट मांगें,तो हैरानी नहीं होना चाहिए.मेरठ से दिल्ली आने के बाद वे उत्तर प्रदेश की कोर ग्रूप की बैठक लेंगे,जिसमे तय होगा कि चुनाव अभियान को किस दिशा की तरफ आगे ले जाना है. और आक्रामक प्रचार की वही रणनीति अगले कुछ दिनों में सभी 403 विधानसभा सीटों पर एक समान देखने को मिलेगी.


दरअसल, बीजेपी को संघ के आंतरिक सर्वे के अलावा अन्य स्रोतों से जो फीड बैक मिल रहा है,उसमें इसी पर सारा जोर है कि बीजेपी बहुमत का आंकड़ा तो पर कर लेगी लेकिन पिछली बार के मुकाबले उसकी सीटें काफी कम होने जी उम्मीद है,जो 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए शुभ संकेत नहीं है.तीन दिन पहले एबीपी न्यूज़ पर प्रसारित हुए सुपर ओपिनियन पोल यानी अब तक हुए सभी सर्वे के औसत यानि पोल ऑफ पोल्स पर नजर डालें तो, बीजेपी को 221 से 231 सीटें मिल सकती है.ये स्थिति बीजेपी के लिये थोड़ी चिंताजनक है क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 312 सीटों पर जीत दर्ज कर अपनी सरकार बनाई थी. उस लिहाज़ से देखें, तो बीजेपी को इस बार तकरीबन 80 सीटों का नुकसान उठाना पड़ सकता है.ऐसे में,पार्टी के चाणक्य के लिए ही पूरा सियासी अखाड़ा संभालना ही उसकी मजबूरी भी बन जाती है?


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