उत्तरप्रदेश में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव-नतीजों ने बीजेपी का हौसला तो बुलंद किया ही है लेकिन इससे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का कद पहले से कुछ और ज्यादा बढ़ गया है. इन चुनावों को अगले साल होने विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था, इसीलिये सत्ताधारी बीजेपी समेत मुख्य विरोधी समाजवादी पार्टी ने भी इसमें अपनी पूरी ताकत झोंक रखी थी. जिला पंचायत अध्यक्ष पद की कुल 75 में से 67 सीटें जीतकर बीजेपी ने सपा का सूपड़ा तो साफ किया ही, साथ ही उसके पुराने रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया, जब सपा ने 63 सीटों पर जीत दर्ज की थी.
पिछले करीब महीने भर से यूपी बीजेपी में जो अंदरुनी खटपट चल रही थी और लखनऊ से लेकर दिल्ली दरबार तक में मंथन के जो दौर चल रहे थे ,इन नतीजों ने अब उस तस्वीर को काफी हद तक साफ कर दिया है कि सूबे में पार्टी के खेवनहार सिर्फ योगी ही हैं. उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने हाल के दिनों में जिस अंदाज़ में कुछ बयान दिए थे, उससे सियासी हलकों में यह अटकलें लग रही थीं कि अगले चुनाव में पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा बदल सकती है. लेकिन इन नतीजों ने उन अटकलों को गलत साबित करते हुए योगी आदित्यनाथ के कद को इतना ऊंचा कर दिया है कि अब उन्हें अगले सीएम के रुप में प्रोजेक्ट करना ही पार्टी नेतृत्व की मजबूरी बन जाएगी.
वैसे भी आरएसएस तो योगी को ही दोबारा मुख्यमंत्री देखना चाहता है लेकिन पार्टी में एक खेमा ऐसा है, जो योगी के बढ़ते कद व ताकत से कुछ परेशान दिखता है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक उस खेमे की परेशानी की अपनी वजह भी है क्योंकि उसे लगता है कि 2022 का किला आसानी से फतह करने के बाद योगी आदित्यनाथ का अगला लक्ष्य दिल्ली दरबार होगा.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद अगर नरेन्द्र मोदी स्वेच्छा से पद छोड़ते हैं, तब योगी प्रधानमंत्री पद के सबसे मजबूत दावेदारों की रेस में अव्वल नंबर पर होंगे. हालांकि इस पर अंतिम निष्कर्ष निकालना फिलहाल जल्दबाजी होगी लेकिन राजनीति में सब कुछ पहले से कभी तय नहीं होता, कुछ चीजें अचानक ही होती हैं जो दशा-दिशा बदलकर रख देती हैं.
वैसे पिछले साढे चार साल में जिस तरह से योगी ने यूपी सरकार चलाई है, उससे उनकी छवि एक ऐसे सख्त,ईमानदार व कुशल संन्यासी-नेता की बनी है जिसका दामन बेदाग है क्योंकि विपक्ष उनके खिलाफ अभी तक ऐसा कोई मुद्दा नहीं तलाश पाया है, जिसके आधार पर उन्हें कटघरे में खड़ा किया जा सके. लिहाज़ा इन नतीजों ने गुरु गोरखनाथ की गद्दी संभालने वाले संन्यासी मुख्यमंत्री को राजनीतिक रुप से और अधिक मजबूत किया है.
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