इस देश में नाथ सम्प्रदाय को आगे बढ़ाने वाले औऱ गुरु गोरखनाथ की गद्दी संभालने वाले यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कल विधानसभा में एक बयान देकर वहां की सियासत में हलचल मचा दी है. आमतौर पर कोई भी मुख्यमंत्री सदन में किसी विपक्षी नेता की तारीफ करने से बचता है. लेकिन सीएम आदित्यनाथ ने समाजवादी पार्टी के नेता और अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव की जिस तरह से तारीफ़ की है, उसके गहरे सियासी मायने हैं. लेकिन ये तारीफ़ भी दोतरफा थी, क्योंकि शिवपाल ने भी योगी आदित्यनाथ को एक संत का दर्जा देने में कोई कंजूसी नहीं बरती. लिहाजा,लखनऊ से लेकर दिल्ली के सियासी गलियारों में ये सुगबुगाहट तेज हो गई है कि ये तारीफें आने वाले दिनों में राजनीति का कोई नया गुल खिला सकती है.


योगी-शिवपाल की तारीफों भरी इस जुगलबंदी का एक मायना ये भी निकाला जा रहा है कि शिवपाल यादव बीजेपी में आने के मूड में तो हैं लेकिन वे अपने लिए किसी ऐसे ओहदे की तलाश में भी हैं जो उन्हें यूपी का विधायक होने से कुछ ऊंचा कर दे. हालांकि पिछले दिनों भी शिवपाल के बीजेपी में शामिल होने की अटकलों का बाजार गरम था, लेकिन जेल में बंद आज़म खान से उनकी नजदीकी शायद इसमें आड़े आ गई थी. इसलिए कि सपा से शिवपाल यादव ही इकलौते ऐसे नेता थे,जो आज़म खान से मिलने जेल भी पहुंचे और रिहाई के वक़्त भी वे उनका स्वागत करने के लिए उसी जेल के बाहर मौजूद थे.


संगठन के नेताओं की मजबूरी
कहते हैं कि राजनीति भी उस घड़ी की तरह है, जिसकी सुई आगे बढ़ने के साथ-साथ इसका मिजाज भी बदलता जाता है. कल तक जो दुश्मन नजर आ रहा था, वही अचानक आपको अपना हमदर्द दिखने लगता है और फिर सोचा जाता है कि क्यों न इसे भी हम अपने साथ मिला लें. केंद्र में सत्ता तो पहले भी छह साल तक बीजेपी की ही रही है लेकिन तब जमाना कुछ और था, जहां संगठन की बात मानने के लिए सरकार मजबूर हुआ करती थी. हाशिये पर आ चुके बीजेपी के ही वरिष्ठ नेता मानते हैं कि पिछले आठ सालों में ये परंपरा लगभग ध्वस्त हो चुकी है. इसलिये कि अब संगठन के सबसे बड़े पदाधिकारी को भी सरकार में दो अहम पदों पर बैठे नेता की बात सुनने और उसे मानने के सिवा और कोई रास्ता ही नहीं बचा है.


चूंकि पिछले आठ साल में कुछ नेताओं को कई तरह की वजहों से सक्रिय राजनीति से हाशिये पर ला दिया गया, इसलिये उनकी इस कुंठा को समझा जा सकता है. लेकिन इन बीते सालों में हुए लोकसभा,राज्यसभा से लेकर राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में उम्मीदवारों के चयन की जो कसौटी अपनाई गई है, उसमें संगठन से ज्यादा सरकार में अहम पदों पर बैठे लोगों की ही चली है. मजाल है कि संगठन की कमान संभालने वाले नेता ने उनमें से किसी एक नाम पर भी अपना एतराज जताने की हिम्मत जुटाई हो. इसलिए कहते हैं कि ये पार्टी का ऐसा आंतरिक लोकतंत्र है, जहां बाहर बैठे लोगों को सब कुछ सावन की हरियाली का ही अहसास कराता है.


बहरहाल, शिवपाल यादव बीजेपी का दामन कब थामेंगे, ये तो उन्हें पार्टी में लेने वाले ही तय करेंगे. लेकिन उन्होंने योगी आदित्यनाथ की खुलेआम तारीफ करके अपनी पिच मजबूत कर ली है. उसके जवाब में नाथों के अंदाज़ में ही योगी ने भी ये इशारा दे दिया है कि, चिंता मत कीजिये, आपको अनाथ नहीं होने दिया जायेगा.


योगी का हठ योग 
बता दें कि पीर मत्स्येंद्रनाथ यानी मच्छेन्दरनाथ के चेले गुरु गोरखनाथ की गद्दी संभालने वाले योगी आदित्यनाथ हठ योग की विद्या में भी बेहद माहिर हैं. यानी राजनीति में भी वे जो चाह लेते हैं, उसे पाकर ही दिखाते हैं. जिन लोगों को साल 2017 के यूपी विधानसभा के चुनाव-नतीजे आने के बाद का वाकया याद होगा, तो उन्हें ये भी अहसास होगा कि इसी योगी ने किस तरह से पूरी पार्टी को झुका दिया था कि या तो मैं या फिर बीजेपी का कोई सीएम ही नहीं. मतलब कि साढ़े पांच साल पहले भी योगी के पास इतनी राजनीतिक ताकत थी कि अगर वे चाहते तो तब बीजेपी को दो फाड़ कर सकते थे. इसलिये अगर योगी ने ठान लिया कि शिवपाल यादव को बीजेपी में लाना ही है, तो दिल्ली दरबार की ताकत नहीं कि वो इससे इनकार कर दे. अब देखना ये है कि योगी आदित्यनाथ कब और कैसे शिवपाल को भगवा रंग में लपेटते हैं, ताकि उनका हठयोग भी पूरा हो जाये और शिवपाल का रुतबा भी बढ़ जाये?


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