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यूपी की सानिया मिर्जा बन गई पूरे कौम की बेटियों के लिये मिसाल !

नफ़रत और डर के इस माहौल में एक और सानिया मिर्जा पूरे मुस्लिम समुदाय की लड़कियों के लिए एक नई मिसाल बनकर उभरी है. उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में गरीबी के माहौल में जिस लड़की की परवरिश हुई, वही सानिया अब आकाश की ऊंचाइयां छूते हुए दुश्मनों से लोहा लेने की ट्रेनिंग लेगी. उसे देश की पहली महिला फाइटर पायलट बनने का गौरव हासिल हुआ है, जिस पर पूरी कौम को फ़क्र होना चाहिये. इसलिये भी कि तमाम तरह की सियासत के बावजूद सानिया मिर्ज़ा का NDA में सिलेक्शन होना ये साबित करता है कि अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होने की बातें महज़ सियासी लफ़्फ़ाज़ी है और जमीनी हक़ीक़त से इसका कोई वास्ता नहीं है.

सानिया का चयन ये भी साबित करता है कि राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली ऐसी प्रतियोगी परीक्षाओं में किसी की जाति या धर्म नहीं देखा जाता, बल्कि मेरिट यानी परीक्षार्थी की योग्यता ही उसके सिलेक्ट होने का सबसे बड़ा आधार बनती है. लिहाज़ा, मजहब के आधार पर सियासत करके पूरी कौम को गुमराह करने वाले चंद ठेकेदारों को इस सानिया मिर्ज़ा ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है कि अब किस मुंह से आरोप लगाओगे कि मोदी सरकार मुसलमानों के साथ भेदभाव कर रही है.

सानिया के जोश व जुनून और अपनी मंजिल हासिल करने के जज़्बे ने समूची कौम की लड़कियों को ये रास्ता भी दिखाया है कि मज़हबी तालिम अपनी जगह है लेकिन दुनिया में अपना मुकाम हासिल करने के लिए आधुनिक शिक्षा लेना और बदलते वक़्त के साथ खुद को उस माहौल में ढालना ही आज की सबसे बड़ी जरुरत है.

दरअसल, यूपी के मिर्जापुर के सदर तहसील क्षेत्र के जसोवर गांव में रहने वाली सानिया अगर ये सोचती कि उसके पिता तो एक मामूली-से टीवी मैकेनिक हैं, इसलिये वे आसमान की ऊंचाइयां नापने के बारे में सोच भी नहीं सकती, तो सचमुच उसके लिए ताउम्र यह एक अधूरा सपना ही बना रहता. सानिया मिर्ज़ा के जज़्बे को इसलिये भी सलाम करना बनता है कि उसने अंग्रेजी की बादशाहत को तोड़ते हुए हिंदी का परचम लहराकर इस मुकाम को हासिल किया है. हिंदी मीडियम से अपनी सारी पढ़ाई पूरी करने वाली सानिया ने ये बता दिया कि हिन्दीवाले भी किसी से कमतर नहीं होते.

चौतरफा दकियानूसी माहौल में घिरने के बावजूद घर की दहलीज़ लांघकर पूरी लगन के साथ स्कूल जाने वाली इस लड़की की इस खूबी की भी तारीफ़ इसलिये की जानी चाहिए कि उसने इस बात की कभी कोई परवाह नहीं कि मुहल्ले वाले उसके बारे में क्या कहते-सोचते हैं. उसके दिमाग में एक ही जुनून सवार था कि मुझे भारतीय वायु सेना का फाइटर पायलट बनकर देश की सेवा करनी है और इसके लिए हर दीवार लांघने से पीछे नहीं हटना है.वही उसने कर दिखाया.

अपने सिलेक्शन से बेहद खुश सानिया कहती हैं कि हिंदी मीडियम वाले भी मुकाम पा सकते हैं, बस इरादा पक्का होना चाहिए. अगर हौसला बुलंद हो तो कोई भी मंजिल मुश्किल नहीं होती. सानिया के मुताबिक उसने देश की पहली महिला फाइटर पायलट अवनी चतुर्वेदी से प्रेरित होकर इस मुकाम को हासिल किया है. हालांकि पहली बार सानिया को परीक्षा में कामयाबी नहीं मिली, लेकिन उसने हार नहीं मानी. दोबारा पूरी लगन के साथ तैयारी की और कामयाबी उसकी झोली में आ गई. हालांकि अवनी चतुर्वेदी के बाद सानिया देश की दूसरी लड़की है जिसका चयन फाइटर पायलट के रूप में हुआ है. 

दरअसल, सानिया की ये उपलब्धि अल्पसंख्यक समुदाय के अभिभावकों के लिए भी एक बड़ा सबक है कि उन्हें अपनी बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए किस तरह का सहयोग देना चाहिये. टीवी मैकेनिक का काम करते हुए अपने परिवार को पालने वाले सानिया के पिता शाहिद अली कहते हैं कि शुरुआत में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. बिटिया की पढ़ाई के लिए 8 घंटे की बजाय 12 से 14 घंटे तक मेहनत की, इसके बदले जो भी मेहनताना मिला, उसे पढ़ाई में लगाया.

आज बिटिया ने उस मेहनत को सफल कर दिया. एनडीए एग्जाम को क्वालीफाई करके बिटिया ने सिर्फ गांव या जनपद का नहीं बल्कि पूरे सूबे का नाम रोशन किया है. वहीं मां तबस्सुम कहती हैं कि हमने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हमारी बच्ची यहां तक पहुंचेगी. बच्ची ने बहुत मेहनत की और आज उसका नतीजा सबके सामने है. बता दें कि नेशनल डिफेंस एकेडमी 2022 की परीक्षा में महिला और पुरुष की मिलाकर कुल 400 सीटें थी. जिसमें महिलाओं के लिए 19 सीटें थी और उसमें भी दो सीट फाइटर पायलट के लिए आरक्षित थी. इन्हीं 2 सीटों में अपनी प्रतिभा के बल पर सानिया जगह पाने में कामयाब रही.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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