उपेन्द्र कुशवाहा ने जेडीयू को छोड़कर नई पार्टी राष्ट्रीय लोक जनता दल का एलान किया है. लेकिन उपेन्द्र कुशवाहा बिहार की राजनीति में कोई नई शख्सियत नहीं है. कई बार इन्होंने अपनी पार्टी बदली और गठबंधन बनाया है. इसलिए इनकी अपने समाज या फिर उसके बाहर कोई साख नहीं बची हुई है.  ये तो पार्टी चला रहे थे, अगर उसी पार्टी को चला रहे होते तो बेहतर होता. एक बार बीजेपी के साथ थे, केन्द्र में मंत्री की भी थे. फिर अलग होकर पार्टी चलाए, फिर जेडीयू में थे. फिर बीजेपी में गए, फिर जेडीयू में गए और पार्टी का विलय किया.


कुशवाहा की नहीं बची साख


एक समय जब उपेन्द्र कुशवाहा ने पार्टी बनाई तो इनकी फॉलोइंग भी थी. ये मेरे साथी रहे हैं. मैं पत्रकार भी रहा हूं, इसलिए इस आधार पर कह सकता हूं कि इतनी बार इन्होंने अपना स्टैंड बदला कि अब लोग इनके साथ चलने को तैयार नहीं है.


दूसरी  बात ये हैं कि केन्द्रीय गृह मंत्री और बीजेपी के सीनियर नेता अमित शाह से भी पीछे कुशवाहा की मुलाकात हुई है. वो गुपचुप ही मुलाकात थी, लेकिन आप ये जानते हैं कि ऐसी बातें नहीं छिपती है. बीजेपी ये समझती है कि अगर इनको अपनी पार्टी में मिला लेंगे तो उसका कम फायदा होगा. इसलिए अलग पार्टी बनाकर महागठबंधन को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं. लेकिन वो स्थिति इनकी नहीं है कि ज्यादे नुकसान पहुंचा सके.


बीजेपी तो चूंकि इस तरह का काम करती है. बीजेपी इनको सूट कर रहा है. इसलिए बीजेपी की सलाह और उसकी मदद से अपनी नई पार्टी खड़ा कर रहे हैं. बिहार के लोग इन बातों को बखूबी जानते हैं.   


शुरू में जब इन्होंने पार्टी बनाई थी उस वक्त महाराष्ट्र के छगन भुजबल ने इनकी काफी मदद की थी. लेकिन वे अगर अपने स्टैंड में अगर कायम रहते तो पार्टी को बढ़ाते और जो सपना था सूबे के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनने का, उसको कंटिन्यू नहीं करते. अपना संगठन और अपनी पार्टी चलाते रहते. जीत-हार होती रहती है.
बिहार में सीधा होगा मुकाबला


बिहार में सीधा-सीदी हो गया है. इस बार जो लोकसभा का चुनाव होगा, वो मोदी और एंटी मोदी होगा. एक तरफ लेफ्ट की पार्टियां, कांग्रेस, आरजेडी और जेडीयू है, जो एक बड़ा कंबिनेशन हो गया. ये कोई राज्य का चुनाव नहीं बल्कि लोकसभा का चुनाव होगा. उसमें महंगाई, बेरोजगारी और अडानी प्रकरण आ गया. इसमें कोई इनका साफ स्टैंड नहीं रहा है. ये कहते हैं कि मर जाएंगे लेकिन बीजेपी के साथ नहीं जाएंगे.


बीजेपी के साथ जाने के बाद ये पार्टी उपेन्द्र कुशवाहा का भी वही हाल करेगा जो चिराग पासवान का किया था. चिराग पासवान को भी नीतीश कुमार के खिलाफ इस्तेमाल कर फेंक दिया. इनको भी नीतीश और आरजेडी के खिलाफ इस्तेमाल कर फेंक देगी. इसलिए हम नहीं समझते हैं कि कुशवाहा का चुनाव में कोई फायदा होने जा रहा है.


इसी तरह बीजेपी कई काम कर रही है. बीजेपी प्रशांत किशोर को खड़ा कर रही है. हालांकि, उन्होंने कोई पार्टी का एलान तो नहीं किया है, लेकिन वे बीजेपी के खिलाफ नहीं है, बल्कि उनका टोन महागठबंधन के खिलाफ है. 


उपेन्द्र कुशवाहा का काम पिछड़ों को, दलितों को लेकर कोई स्टैंड नहीं लिया. इनकी अपनी महत्वाकांक्षा है. इनको लगता है कि यादव ने राज कर लिया. अब कुशवाहा की ज्यादा आबादी है, उनका राज होना चाहिए. 


कुशवाहा चाहते थे निकाल दे पार्टी


उपेन्द्र कुशवाहा खुद चाह रहे थे कि उनको पार्टी निकाल दे ताकि एमएलसी वाली सीट बच जाएगी. लेकिन पार्टी तो इनको नहीं निकाल रही है. पार्टी बनाएंगे तो इनकी एमएलसी सदस्यता खत्म हो जाएगी. दरअसल, बीजेपी चाह रही थी कि और बीजेपी इस तरह का कई राज्यों में प्रयोग किया है. 


पंजाब में देखिए, वहां पर सीएम थे कैप्टन अमरिंदर सिंह, उनका देखिए क्या हाल बीजेपी ने किया है. बिहार में चिराग की तरह के कुशवाहा के साथ खेल दोहराया जा रहा है. हर आदमी को महत्वाकांक्षा होनी चाहिए, लेकिन परिस्थितियों का भी आकलन किया जाना चाहिए.


इनके समाज के बाहर बहुत सारे लोग जेडीयू में हैं. नीतीश कुमार तो इनको मंत्री बनाने वाले थे. लेकिन नीतीश के चलते नहीं बल्कि इनके समाज के लोग ही एकजुट हो गए. इसमें सारे कुशवाहा समाज के एमएलए और एमपी ने कहा कि कुशवाहा को मंत्री न बनाया जाए. ये बात सभी जानते हैं कि नीतीश कुमार उपेन्द्र कुशवाहा को मंत्री बनाना चाहते थे.


इसलिए इनका न कोई सैद्धांतिक आधार है, न कोई मुद्दा है. हम समझते है कि ये बहुत हड़बड़ी में हैं. हम किसी पार्टी में नहीं है. लेकिन हम ये स्वतंत्र सोच और 25-30 साल का तजुर्बा और 12 साल का बतौर जो सांसद अनुभव रहा उसके आधार पर मैने ये बातें कही है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)