(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
बाइडेन के इजरायल दौरे में हल निकलना बड़ी चुनौती, अगर और जंग फैली तो मिडिल-ईस्ट युद्ध की भट्ठी में जल उठेगा
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन इजराइल में चल रही जंग और फिलिस्तीनी नागरिकों के क़त्लेआम के बीच इजराइल आए, ये बताने के लिए कि फिलिस्तीन के खिलाफ इस लड़ाई में अमेरिका इजराइल के साथ खड़ा है. अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे से ठीक पहले ग़ाज़ा में एक हॉस्पिटल पर हवाई हमला कर इजराइल ने ये जता दिया कि जो बाइडेन इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से अपने होने वाली मुलाक़ात में जंगबंदी को लेकर जो कुछ भी बोले, लेकिन इजराइल ग़ाज़ा में अपने वहशियाना हमले में किसी तरह की कोई कमी नहीं करेगा. वो नागरिक प्रतिष्ठानों और उनके घरों को अपने हमले का निशाना बनाना जारी रखेगा.
गौरतलब है कि हॉस्पिटल पर हुए इजरायली हमले में कम से कम 500 फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हुई हैं. हमले के विरोध में फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास और जॉर्डन के किंग अब्दुल्लाह ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से अपनी होने वाली मुलाक़ात को कैंसिल कर दिया. वहीं मिस्र के राष्ट्रपति जनरल सीसी ने जंगबंदी को लेकर होने वाली अरब देशों की बैठक को स्थगित कर दिया.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से ये उम्मीद थी कि वो मध्य पूर्व नीति पर पिछली डेमोक्रेटिक सरकार के प्रयासों को आगे बढ़ाएंगे ताकि फिलिस्तीनियों को उनका एक अलग राज्य मिले और मध्य पूर्व स्थायी शांति बहाल हो सके. लेकिन जो बाइडेन पिछले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की नीति पर ही क़ायम रहे. फिलिस्तीन मसले को दरकिनार कर वो रूस और चीन को बाक़ी दुनिया से अलग-थलग करने की कोशिश में लगे रहे, जिसका नतीजा ये रहा कि हताश हमास ने दुनिया का ध्यान फिलिस्तीनी मुद्दे पर खींचने के लिए इजराइल पर एक बड़ा हमला कर दिया.
बाइडेन ने किया निराश
इसमें हज़ारो बेगुनाह आम इज़राइली नागरिकों की मौत हो गई और दो से ज़्यादा से इजरायली जिनमें ज़्यादातर आम नागरिक है. हमास के हाथों बंधक बना लिए गए हैं और अब इस हमले के जवाब में ग़ाज़ा पर इज़राइली सेना का अंधाधुंध हमला जारी है, जिसके नतीजे में तीन हजार से ज़्यादा फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हो चुकी है.
रिचर्ड निक्सन के बाद से, लगातार अमेरिकी प्रशासन ने कैंप डेविड शिखर सम्मेलन के बाद से लेकर अभी तक इजराइल फिलिस्तीनी मुद्दे सुलझाने को लेकर कोई ठोस पहल अमेरिका नहीं की. इसके उलट डोनाल्ड ट्रंप ने अब्राहम एकॉर्ड के तहत फिलिस्तीनी मुद्दा गौण करके संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मोरक्को और सूडान जैसे अरब और मुस्लिम देशों के साथ इजराइल से कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने में लगे रहे. जो बाइडेन भी इसी नीति पर बने हुए हैं. उन्होंने फिलिस्तीनी स्वतंत्रता और उनके रहने की स्थिति और अधिक मामूली सुधार की वकालत की, जिसने इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक में इजराइल को और अधिक अवैध इज़राइली यहूदी बस्ती के निर्माण में इजरायली सरकार को प्रोत्साहित किया है.
फिर से केन्द्र में गाजा-इजरायल संघर्ष
लेकिन 7 अक्टूबर को इज़राइल पर हमास के हमले और जवाब में इज़राइल की ओर से गाजा पर भारी बमबारी के साथ इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष को दरकिनार करने के दीर्घकालिक जोखिम फिर से सामने आ गए है. संयुक्त राज्य अमेरिका के नाराज अरब साझेदार सक्रिय रूप से शामिल होने में अमेरिका की विफलता की ओर इशारा कर रहे हैं, क्योंकि इजरायल-फिलिस्तीनी हिंसा फिर से केंद्र में आ गई है.
खासकर गाजा अस्पताल पर इजरायली हवाई हमले में जो सैकड़ों लोग मारे गए, उसने न सिर्फ अरब जगत बल्कि पूरी इजराइल के खिलाफ भारी नाराज़गी पैदा कर दी है. आम लोग हमले के विरोध में सड़कों पर निकल आए है, जो सहानुभूति हमास के हमले से इजराइल को मिली थी वो सहानुभूति इजराइल अब खोता जा रहा है.
लेबनान स्थित शिया मिलिशिया हिज़्बुल्लाह जिस तरह से इजरायल पर लगातार हमले कर रहा है, इसके जवाब में इजराइल भी लेबनान में हिज़्बुल्लाह के ठिकानों पर हमले कर रहा है. उससे इस आशंका को बल मिलता है कि ये जंग फैलेगी और मध्य पूर्व जल्द ही युद्ध की भट्टी में जल उठेगा. जो बाइडेन के सामने इसे लेकर चुनौतियां कठिन है, जंग बंदी को लेकर नेतन्याहू को समझाने में वो कितना कामयाब होते हैं ये देखने वाली बात होगी.
इस सप्ताह के अंत में काहिरा में, मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी अरब नेताओं में से एक थे, जिन्होंने सचिव एंटनी ब्लिंकन को चेतावनी दी थी. जंग के बढ़ने से संपूर्ण मध्य पूर्व की स्थिरता को खतरा है. बुधवार को इज़राइल की यात्रा के बाद जॉर्डन में जॉर्डन, मिस्र और फिलिस्तीनी प्राधिकरण के नेताओं के साथ अगर बाइडेन की फ़ोन पर भी बातचीत होती है तो उन्हें भी ऐसा ही सुनने की संभावना है.
सिसी, जिन्हें डर है कि इजरायली सैन्य आक्रमण गाजा के 2.3 मिलियन लोगों को सीमा पार से मिस्र में धकेल देगा, उन्होंने कहा कि नेतन्याहू की सरकार और फिलिस्तीनियों पर बातचीत पर लौटने के लिए किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के लगभग गायब होने का खतरा पैदा हो जायेगा. इज़राइल-हमास युद्ध एक बड़ा क्षेत्रीय रूप बन सकता है, इस चिंता के बीच राष्ट्रपति जो बाइडेन अमेरिकी सहयोगी इजराइल को अपना समर्थन दिखाने के लिए इज़राइल की यात्रा कर रहे है.
1973 में, अरब देशों के इज़राइल पर आश्चर्यजनक हमले और उस लड़ाई में इज़राइल के समर्थन के लिए अमेरिका और अन्य देशों पर अरबों के विनाशकारी तेल प्रतिबंध ने अमेरिकी नेताओं को आश्वस्त किया कि फिलिस्तीनी राज्य की मांग का स्थायी समाधान अमेरिका के रणनीतिक हित में था. लेकिन ओस्लो समझौते के बाद फिलिस्तीनी मुद्दे को अमेरिका और इजराइल ने ठंडे बस्ते में डाल दिया था. 2014 के बाद से इजरायल ने फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास से कोई बातचीत नहीं की. हमास ये बात फिलिस्तीनी युवा वर्ग के एक बड़े समूह को ये समझाने में सफल रहा की फिलिस्तीनी मुद्दे का कोई राजनीतिक समाधान नहीं है, ऐसे लड़ कर ही हासिल किया जा सकता है.
वहीं अब ब्लिंकन और अन्य अमेरिकी अधिकारियों ने अमीरीकी प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों की ओर इशारा किया है, उनका कहना है कि लंबे समय से चल रहे संघर्ष के राजनीतिक समाधान पर बातचीत के लिए कोई दबाव डालने से पहले स्थितियों में सुधार करना ज़रूरी है. इसमें तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगभग सभी कटौती के बाद फिलिस्तीनियों को अमेरिकी सहायता बहाल करना और ब्लिंकन की जनवरी में कब्जे वाले वेस्ट बैंक शहर रामल्ला की यात्रा शामिल है, जहां उन्होंने कहा कि बिडेन फिलिस्तीनी राज्य के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध है.
बाइडेन ने उत्साहपूर्वक उस नए रास्ते का अनुसरण किया है जो ट्रम्प ने मध्य पूर्व शांति स्थापित करने के लिए रखा था: अरब देशों के साथ तथाकथित सामान्यीकरण सौदों की पैरवी करना, किसी भी इजरायली-फिलिस्तीनी समझौते को फिलहाल अनुपस्थित बनाए रखना. लेकिन इजरायल और अमेरिका दोनों को फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात की ये बात याद रखनी चाहिए फिलिस्तीनी रेड इंडियन नहीं है, जो म्यूजियम में एक निशानी और यादगार बन कर रह जाएंगे. जब तक फिलिस्तीन को उनका अलग राज्य नहीं मिलता तब तक मध्य पूर्व में स्थाई शांति बहाल होनी वाली नहीं है. आज हमास भले खत्म हो जाए तो भी इस बात की किया गारंटी है कि कल होकर एक और कट्टर इस्लामिक फिलिस्तीनी चरमपंथी हथियारबंद गुट पैदा न हो जाए !
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