UP Assembly Election 2022: यूपी में पिछली बार बीजेपी की जीत का सूरज पश्चिमी उत्तर प्रदेश से से उदय हुआ था. इस बार किसान आंदोलन और जाटों की नाराजगी से उस पर बादल छाए हैं. उन्हें छांटने के लिए बीजेपी ने जिस राष्ट्रीय लोकदल को अपने खेमे में लेने की कोशिश अंतिम समय तक कर रही है, लेकिन आरएलडी अब बहुत आगे निकल गई है. राज की बात ये कि बीजेपी के एक युवा जाट नेता के जरिये जयंत से संपर्क साधा गया, लेकिन उन्होंने दो टूक किसी भी तरह के पुनर्विचार से मना कर दिया. हालांकि राज की बात सिर्फ ये नहीं कि बीजेपी के सारे प्रयास विफल हो गए हैं, बल्कि ये है कि जयंत चौधरी अब जाट नेता के साथ-साथ किसान नेता के कलेवर में छाने के बड़े प्लान पर काम कर रहे हैं.
बीजेपी के खुले न्यौते को नकारकर आरएलडी सुप्रीमो जयंत चौधरी ने समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के साथ मुजफ्फरनगर में संयुक्त प्रेसवार्ता कर एक बड़ा संदेश दिया. ये संदेश था आरएलडी और एसपी का पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता को कि बीजेपी के साथ किसी भी तरह से आरएलडी नहीं जाने वाली. राज की बात ये है कि बुधवार को बीजेपी सांसद प्रवेश साहिब सिंह वर्मा के घर पर गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने जब जाट नेताओं की बैठक की थी, वह सिर्फ सांकेतिक ही नहीं था.
राज की बात ये है कि प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को ही जयंत चौधरी से बातचीत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. दिग्गज जाट नेता और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं प्रवेश वर्मा. राज की बात ये है कि जयंत ने प्रवेश से बात तो की, लेकिन बीजेपी के बारे में सोचने से साफ मना कर दिया. ये बैठक इस बात की कोशिश थी कि 'द जाटलैंड' में ये संदेश जाए कि बीजेपी उनके नेता को बुला रही है, सम्मान दे रही है. इससे जयंत पर दबाव बने और वो कुछ सोच पाएं. अमित शाह के इस प्रयास को आरएलडी सुप्रीमो ने एक सोचा-समझा ट्रैप माना. उनका मानना है कि शाह लगातार न्यौता देकर मुसलिमों के बीच में भ्रम फैलाना चाहते हैं कि चुनाव बाद वो बीजेपी के साथ जा सकते हैं. इससे वोटों के ट्रांसफर पर फर्क पड़ेगा.
बीजेपी ने अपनी तरफ से इसीलिए ये बड़ा पत्ता फेंका और प्रवेश ने जयंत से बात भी की. राज की बात ये कि जयंत ने प्रवेश से साफ कह दिया कि– जहां पर मैं पहुंच चुका हूं, वहां से वापस आना अब संभव नहीं. ये अब उचित भी नहीं है. राज की बात ये कि जयंत चौधरी का साफ मानना है कि बड़ी मुश्किल से वह फिर से आरएलडी को पैरों पर खड़ा कर पा रहे हैं. अब अगर विश्वसनीयता पर संकट हुआ तो दिक्कत हो जाएगी.
राज की बात में आगे बढ़ें, उससे पहले एक बात जो आप सबके लिए जानना जरूरी है. जाट वोटों के नाम पर तत्कालीन आरएलडी सुप्रीमो और जयंत चौधरी के पिता चौधरी अजित सिंह हर सरकार में आ जाते थे. 2014 में बीजेपी का चेहरा जब मोदी बने और यूपी के प्रभारी महासचिव के तौर पर अमित शाह के हाथ कमान आई तो उन्होंने आरएलडी को एनडीए मे जगह ही नहीं दी. यद्यपि, पीएम के तौर पर मोदी चेहरा थे और पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे. दोनों ही चाहते थे कि पश्चिम में चौधरी अजित सिंह से समझौता हो. उस समय आरएलडी को पीछे छोड़कर अकेले जाने का फैसला अमित शाह का था और उन्होंने 2014 से लेकर 17 और 19 के चुनावों में भी जाटलैंड से आरएलडी को हाशिये पर ला दिया.
चौधरी अजित सिंह हारे और दो बार जयंत चौधरी भी. इसके बावजूद अब समय का फेर देखिए. अब अमित शाह खुद जयंत चौधरी को बीजेपी में आने का न्यौता दे रहे हैं. राज की बात ये है कि बीजेपी को भी ये फीडबैक है कि जाट समुदाय से जो युवा पूरी तरह मोदी के दीवाने थे, वे राज्य के चुनाव में जयंत के साथ भी जा रहे हैं. पहले आम धारण ये थी कि चौधरी चरण सिंह की विरासत के नाते बुजुर्ग जाते थे आरएलडी के साथ, लेकिन युवा और महिलाएं बीजेपी का बटन दबा रहे थे. इस दफा बदली हवा का ही रुख था कि शाह ने खुद जयंत को न्यौता दिया. इस बात पर जब जयंत और अखिलेश साथ प्रेसवार्ता के लिए मुजफ्फरनगर आए तो चुटकी भी ली कि (अखिलेश बोले कि देखिये उन्हें न्यौता देना पड़ रहा है.)
बीजेपी का जयंत को लाने का प्रयास विफल क्यों रहा, इसके पीछे भी राज की बड़ी बात है. जयंत चौधरी अब बड़े कैनवास की तरफ देख रहे हैं. दरअसल जयंत अब जाटों के साथ-साथ किसानों का नेता बनने के लिए पूरी तरह हाथ-पैर मार रहे हैं. उनके बयान और रणनीति इसी दिशा में है. राजस्थान में कांग्रेस के साथ आरएलडी है और वहां उनके दो विधायक हैं और सरकार में शामिल हैं. उन्हें अच्छी तवज्जो मिल रही है. इसी तरह हरियाणा से भी अच्छे संकेत जाटों के बीच से उन्हें आए हैं. ऐसे में जो काम उनके पिता चौधरी अजित सिंह नहीं कर पाए कि चौधरी चरण सिंह की जाट-किसान नेता वाली छवि को आगे नहीं ले जा पाए, अब किसान आंदोलन से बनी जमीन को आधार बनाकर जयंत आगे जाना चाहते हैं. मुजफ्फरपुर की प्रेसवार्ता में अखिलेश ने खुद व जयंत को किसान का बेटा बनाकर इसे और आगे भी बढ़ा दिया है.
राजनीति में हाशिये पर जाने के बाद किसान आंदोलन से फिर जयंत चौधरी को ताकत मिली है. इससे पहले लगातार समाजवादी पार्टी के साथ रहकर वह हार रहे थे. फिर भी इस दफा जो माहौल है, उसमें उन्हें लगता है कि आरएलडी फिर से जाटलैंड में ताकतवर होगी. बाकी अभी तो चुनाव हैं तो माहौल के हिसाब से जयंत रणनीति पर अमल कर रहे हैं. नतीजों के बाद जयंत का भविष्य और भविष्य के फैसले भी निर्भर करेंगे, लेकिन अभी पश्चिम में बीजेपी के लिए चुनौतियां तो बड़ी और कड़ी हैं, इसमें कोई दो राय नहीं.
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