Uttar Pradesh Assembly Election 2022: अलीगढ़ की संयुक्त परिवर्तन रैली के बाद राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) कहां गायब हैं? ये सवाल सियासी हलकों में इन दिनों बेहद सरगर्म है. वो जयंत चौधरी, जिन्होंने किसान पंचायतों की झड़ी लगाकर पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश (West UP) में बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने में अहम भूमिका निभाई. वो अब, जब चुनाव प्रचार अपने चरम पर जा रहा है तो पिछले 10 दिनों से कहीं दिख नहीं रहे हैं...आखिर क्यों?
बीते साल की 7 दिसंबर को समाजवादी पार्टी के साथ रालोद के गठबंधन का मेरठ में ऐलान हुआ. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी पहली बार मंच पर एक साथ आए. गठबंधन को लेकर चल रहे सारे कयासों को जमींदोज कर दिया. अखिलेश-जयंत ने एक दूसरे का हाथ थामा और मिलकर बीजेपी सरकार (BJP Government) को हराने का शंखनाद किया. यूपी के दो लड़कों के इस साथ पर जो भीड़ जुटी थी, वो न सिर्फ संख्या में ज्यादा थी, बल्कि जोश भी खूब दिखा. इस भीड़ और गठबंधन से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी को कड़ी टक्कर के संकेत तो साफ दिखाई पड़ने लगे.
इस रैली के बाद से सीटों के बंटवारे को लेकर चर्चाएं और कयासों का बाजार गर्म रहा. कहा जाने लगा कि 36 से 40 सीटें जयंत चौधरी की पार्टी को अखिलेश देंगे, मगर राज की बात ये है कि अखिलेश ने सीटों की संख्या पर अपने पत्ते नहीं खोले. वैसे तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश हमेशा से सपा के लिए कमजोर गढ़ रहा है. यहां सामाजिक समीकरण ऐसे हैं कि सपा को कभी भी बहुत सफलता नहीं मिल सकी थी. जाटलैंड में जाटों की पार्टी रालोद के साथ जाने के बाद इस दफा गणित और इतिहास दोनों बदलने की कोशिश जरूर इस गठबंधन से दिखाई दी.
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राज की बात ये है कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) इस दफा सिर्फ गणित ही नहीं बदलना चाहते, बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश (West UP) में अपना झंडा भी ऊंचा रखने की फिराक में हैं. कांग्रेस (Congress) के दो जाट चेहरों हरेंद्र मलिक (Harendra Malik) और उनके पुत्र पंकज मलिक को जयंत चौधरी के साथ आने से पहले ही वह सपा में ले आए थे. जयंत चौधरी का साथ तो सपा प्रमुख ने लिया है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वह अपरहैंड भी रखने की फिराक में हैं.
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सूत्रों के मुताबिक जयंत चौधरी के बार-बार कहने के बाद एक दर्जन से कुछ ज्यादा सीटों पर तो अखिलेश ने रालोद को टिकटें देने की सहमति दी है, लेकिन इसके आगे वह पत्ते नहीं खोल रहे हैं. 28 से ज्यादा सीटें रालोद को देने का अभी तक सपा अध्यक्ष मन नहीं बना सके हैं. राज की बात है कि इससे जयंत चौधरी बेहद क्षुब्ध हैं. यही कारण है कि 23 दिसंबर के बाद से उन्होंने कोई रैली नहीं की है. मतलब साफ है कि गठबंधन भले ही घोषित हो गया हो, लेकिन अभी सीटों की संख्या को लेकर यूपी के इन दो लड़कों के बीच दांव-पेंच निर्णायक मोड़ पर पहुंच गए हैं.
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