UP Election 2022: 'जाटलैंड' से क्या इस बार भी BJP को मिलेगी सीटों की उतनी बड़ी सौगात?
Uttar Pradesh Election 2022: उत्तर प्रदेश के चुनाव का सारा फोकस 'जाटलैंड' यानी पश्चिमी यूपी पर आ टिका है क्योंकि पहले चरण में 10 फरवरी को यहां की कई सीटों पर मतदान होना है. बीजेपी के दिग्गज नेता अमित शाह ने पूरे चुनाव अभियान की कमान संभालते हुए उसे फिर से उसी हिंदुत्व की तरफ मोड़ दिया है,जिसके जरिये पांच साल पहले पार्टी सत्ता पाने में कामयाब हुई थी.उन्होंने अखिलेश यादव-जयंत चौधरी के गठबंधन के स्थायित्व पर तो सवाल उठाया ही है,साथ ही लोगों को उस डर के प्रति भी आगाह कर दिया है कि अगर गलती से भी इनकी सरकार बन गई, तो जयंत तो बाहर होंगे लेकिन आज़म खान और अतीक अहमद जैसे माफिया फिर उस सरकार का हिस्सा बन जाएंगे.
जाटों के गढ़ मुजफ्फरनगर में आज अमित शाह ने अपनी रैली के जरिये इस चुनाव को हिन्दू बनाम मुसलमान की तरफ मोड़ दिया है. उन्होंने अपने भाषण में लोगों से अपील करते हुए इस बात पर जोर दिया है कि आप सभी लोग लाइन लगाकर वोट डालिये. शाह ने चेतावनी देते हुए कहा कि आप लाइन लगाएं या न लगाएं दूसरी ओर लाइन लगने वाली है, इसलिए वोट जरूर डालें. इसके सियासी मायने समझने होंगे क्योंकि उन्होंने इसके जरिये हिन्दू वोटों को एकजुट करने की कोशिश करते हुए ये संदेश दे दिया है कि मुसलमानों ने तो लाइन लगाकर सपा को एकतरफा वोट देने हैं. इसलिये अगर वोट देने में गलती की तो दंगों की सरकार लखनऊ की गद्दी पर बैठ जाएगी. यूपी में आपका एक वोट ही माफिया राज ला सकता है और वही आपको इससे मुक्ति भी दिला सकता है. इसका मतलब साफ है कि बीजेपी इस जाटलैंड पर 2017 वाले हिंदुत्व के प्रयोग को ही इस बार भी दोहरा रही है.
इसलिये बीजेपी अपने प्रचार में साल 2013 में हुए मुजफ्फरनगर के दंगों की याद दिलाना नहीं भूल रही है, ताकि जाटों और मुस्लिमों के बीच पैदा हुई खाई को अखिलेश-जयंत का गठबंधन कहीं पाट न दे. इसलिये शाह भी अपने भाषणों में उन दंगों का जिक्र करने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं. इसलिये शाह आज भी लोगों को ये याद दिलाना नहीं भूले कि अखिलेश सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगे के समय किस तरह से पीड़ितों को आरोपी और आरोपियों को पीड़ित बना दिया था. अखिलेश राज चुनने से पहले दंगों को याद कर लीजिएगा. उन्होंने कहा कि पहले यहां अपराध का बोलबाला था. योगी सरकार बनने के बाद सब गुंडे या तो बाहर चले गए या फिर जेल की सलाखों के पीछे हैं.
सपा-आरएलडी के गठबंधन के स्थायित्व पर सवाल उठाते हुए शाह ने साफ कर दिया है कि ये लंबा नहीं चलने वाला है. 'चुनाव आ गए हैं ऐसे में आज कल अखिलेश यादव और जयंत चौधरी साथ-साथ दिख रहे हैं. लेकिन ये सिर्फ वोटिंग तक का साथ है, अगर गलती से भी इनकी सरकार बन गयी तो जयंती चौधरी जी फिर कहीं नहीं दिखेंगे, फिर से आजम खान और अतीक अहमद सामने आ जायेंगे. और ये इनके टिकट बांटने से ही सबको साफ-साफ समझ आ गया है.'
दरअसल, इस चुनाव में बीजेपी के लिए वेस्ट यूपी सबसे अहम इसलिये भी बन हाय है कि जाटों की नाराजगी अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है और अखिलेश-जयंत का गठबंधन ओसे अपने पक्ष में भुनाने के लिए पूरी ताकत लगा रहा है. यही वजह थी कि अमित शाह ने 26 जनवरी को दिल्ली में वेस्ट यूपी के सौ से भी ज्यादा जाट नेताओं से बैठक करके उनकी नाराजगी दूर करने के लिए तमाम तरह के वादे करने पड़े. हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी अमित शाह ने ऐसी बैठक की थी. लेकिन तब हालात बीजेपी के अनुकूल थे लेकिन किसान आंदोलन के बाद अब माहौल बीजेपी के लिए एकतरफा नहीं कहा जा सकता. तब भी जाट वोटों पर विशेष ध्यान दिया गया था. नतीजा ये निकला कि बीजेपी ने 143 में से 108 सीटें अपने नाम कर ली थीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी के पक्ष में ही जाट वोट पड़ें और 29 सीटों में से 21 पर उसने जीत दर्ज की थी.लेकिन अब बीजेपी दावे के साथ ये कहने की स्थिति में नहीं है कि पांच साल पहले वाला प्रदर्शन ही इस बार भी दोहराया जायेगा.
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