यूपी के चुनावी नतीजों का जो जातिवार विश्लेषण सामने आया है, उसके आंकड़े बेहद दिलचस्प होने के साथ ही थोड़े चौंकाने वाले भी हैं. 'लड़की हूं, लड़ सकती हूं' का नारा देने वाली प्रियंका गांधी की कांग्रेस को राज्य की महिलाओं ने पूरी तरह से नकार दिया और उनकी पहली पसंद बीजेपी ही रही. लेकिन हैरानी की बात ये भी है कि बड़े पैमाने पर वोटों का ध्रुवीकरण होने के बावजूद 9 फीसदी मुस्लिम महिलाओं ने भी बीजेपी को वोट दिया, जिसका मतलब है कि तीन तलाक खत्म करने के मोदी सरकार के फ़ैसले का असर अब भी बरकरार है. लेकिन यूपी विधानसभा की तस्वीर इस बार थोड़ी बदली हुई दिखाई देगी क्योंकि मुस्लिम विधायकों की नुमाइंदगी बढ़ गई है और अब उनकी संख्या 24 के मुकाबले 34 हो गई है.
वैसे अखिलेश यादव भले ही सत्ता के करीब नहीं पहुंच सके, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि सपा ने छोटे दलों से गठबंधन करने के अलावा एम जे यानी मुस्लिम-जाट का जो गठजोड़ बनाया था, उसमें वह कामयाब रही और उसकी बदौलत ही उसकी सीटों में इतनी बढ़ोतरी हुई. सपा गठबंधन को 82 फीसदी मुस्लिम पुरुषों ने जबकि 84 फीसदी मुस्लिम महिलाओं ने वोट किया. पश्चिमी यूपी के जाट समुदाय की बात करें तो 50 फीसदी पुरुष और 38 फीसदी महिलाओं ने सपा गठबंधन को वोट दिया. ज़ाहिर है कि इसके दम पर ही जयंत चौधरी के रालोद उम्मीदवारों को इतनी जीत मिली. हालांकि यादव समुदाय को सपा का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है, लिहाज़ा उसे इस समुदाय से सबसे अधिक वोट मिला. 85 फीसदी पुरुष और 88 फीसदी महिलाओं ने सपा गठबंधन को वोट दिया.
दरअसल, ये विश्लेषण 'एक्सिस माय इंडिया' ने किया है और उसके आंकड़ों के मुताबिक पुरुषों के मुकाबले चार फीसदी ज्यादा महिलाओं की पहली पसंद बीजेपी रही. शायद इसकी एक बड़ी वजह योगी राज में माफियाओं का खात्मा और अपराधों पर अंकुश लगाना रहा है, जिसके चलते पिछले पांच सालों में प्रदेश की महिलाओं ने पहले के मुकाबले खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस किया और 48 फीसदी महिलाओं ने कमल का बटन दबाकर दोबारा योगी सरकार की वापसी पर अपनी मुहर लगा दी. राज्य के 44 फीसदी पुरुषों ने बीजेपी वोट किया है. जबकि समाजवादी पार्टी की बात करें तो उसे 40 फीसदी पुरुषों ने और 32 फीसदी महिलाओं ने वोट किया. इसी तरह सिर्फ एक सीट पर सिमटी मायावती की बहुजन समाज पार्टी को सिर्फ 10 फीसदी पुरुषों ने और 14 फीसदी महिलाओं ने वोट किया.
हालांकि कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुकसान झेलना पड़ा, जिसने इस बार बड़ी संख्या में महिला उम्मीदवारों को चुनाव-मैदान में उतारा था. प्रियंका गांधी ने खूब रैलियां की और वे लगातार महिला सशक्तिकरण का वादा करते हुए कई दावे कर रही थीं, लेकिन महिलाओं पर उनका जादू फिर भी नहीं चल पाया. वोटों के लिहाज़ से देखें, तो उसे इस नारे का कोई खास फायदा नहीं मिला. कांग्रेस को 3 फीसदी पुरुषों ने वोट किया, जबकि उसे वोट देने वाली महिलाएं भी तीन फीसदी ही रहीं. इसी तरह अन्य के खाते में 3 फीसदी पुरुषों ने और 3 फीसदी महिलाओं ने वोट किया.
चुनाव के दौरान विपक्ष ने ये हवा बनाने की भरपूर कोशिश की थी कि प्रदेश का ब्राह्मण वर्ग सीएम योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से नाराज है और वो बीजेपी के ख़िलाग वोट करेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और 68 फीसदी ब्रह्मण पुरुषों ने तो 72 फीसदी ब्रह्मण महिलाओं ने बीजेपी के पक्ष में अपना वोट किया. खुद योगी जिस समुदाय से हैं, उस राजपूत समुदाय की बात करें तो 69 फीसदी पुरुष और 75 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी को वोट दिया. अगड़ी जातियों के 68 फीसदी पुरुष तो 74 फीसदी महिलाओं की पसंद भी बीजेपी ही रही.
सिर्फ यादव और एससी जाटव समुदाय ही ऐसे थे, जहां से बीजेपी को कम वोट मिला, अन्यथा हर वर्ग ने दरियादिली से वोट देकर राज्य में फिर से भगवा लहरा दिया. 22 फीसदी पुरुष और 20 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी के पक्ष में वोट किया. लेकिन एक बड़ी बात ये भी है कि पिछले पांच साल में बीजेपी ने ओबीसी के बीच अपनी पकड़ पहले से अधिक मजबूत की है. इसकी एक वजह अपना दल और निषाद पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों से उसका गठबंधन भी है. ओबीसी समुदाय के 63 फीसदी पुरुष और 71 फीसदी महिलाओं ने बीजेपी के पक्ष में अपना मत दिया. तो वहीं कुर्मी समुदाय के 57 फीसदी पुरुष और 62 फीसदी महिलाओं ने भगवा पार्टी के पक्ष में वोट किया.
इस विश्लेषण से एक अहम बात ये भी निकली है कि विपक्ष ने भले ही बेरोजगारी व महंगाई को एक बड़ा मुद्दा बनाने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और महज़ 6 फीसदी लोगों ने ही इस मुद्दे के नाम पर अपना वोट डाला. जबकि इसके उलट पीएम मोदी ने पूरे प्रचार के दौरान योगी सरकार के विकास कार्यों और केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं पर ही अपना सारा फोकस किया था. नतीजा ये हुआ कि राज्य के विकास के नाम पर 22 फीसदी लोगों ने अपना वोट किया और यही बीजेपी के लिए सबसे बड़ा गेम चेंजर साबित हुआ.
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