Uttar Pradesh Election 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान होने में महज़ चार दिन बचे हैं, उससे पहले समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने ये तरकीब बताई है कि गोरखपुर की जनता किस तरह से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हराने वाली है. हालांकि गोरखपुर के लोग अखिलेश की इस तरकीब पर कितना अमल करते हैं, ये तो 10 मार्च को ही पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि बीजेपी के नेता अखिलेश के इस दावे को 'दिन में तारे' देखने जैसा ही करार देंगे. 


चूंकि लोकतंत्र में विपक्ष को अपनी बात कहने का पूरा हक है और निष्पक्ष मीडिया उसे भी पूरी तवज्जो देते हुए अपना फर्ज़ निभाता है, लेकिन कल्पना कीजिये कि अपनी ही कर्मभूमि से अगर योगी आदित्यनाथ चुनाव हार जाते हैं, तो इसे यूपी की राजनीति का सबसे बड़ा चमत्कार ही समझा जायेगा. इसलिये अखिलेश के दावे पर कोई यकीन नहीं करेगा कि उसी गोरखपुर से योगी पांच बार लोकसभा के सांसद बन चुके हैं और जिस गोरक्षापीठ की गद्दी पर वे आसीन हैं, उसका पूरे पूर्वांचल के लोगों खासकर दलितों व पिछड़े वर्ग पर खासा असर है. लेकिन कहते हैं कि चुनावी राजनीति में किसी रुतबे से नहीं बल्कि वोटों के गणित से ही फैसला होता है. 


हालांकि चुनावी राजनीति में पहले भी बड़े उलटफेर होते रहे हैं और सिटिंग मुख्यमंत्री को भी हार का मुंह देखना पड़ा है. पिछले एक दशक में ताजा मामला दिल्ली का ही है. लगातार तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को साल 2013 के चुनाव में राजनीति में पहली बार उतरी नौसिखिया आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल ने हराकर नया इतिहास रच दिया था. तब उन्होंने नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित को 22 हजार वोटों से हराकर ये साबित कर दिया था कि अगर नीयत साफ हो और लोग आपके साथ हों, तो राजनीति में सबसे बड़े दिग्गज नेता को भी हराया जा सकता है. लेकिन यूपी में अखिलेश को जनता का वैसा समर्थन प्राप्त नहीं है, जो 2013 में केजरीवाल को दिल्ली में मिला था. इसलिये योगी को पटखनी देने के उनके दावे को तो फिलहाल हवा-हवाई ही समझा जाना चाहिए.


दरअसल, अखिलेश यादव ने आज एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में सीएम योगी को हराने की तरकीब बताने वाला शिगूफा छोड़ा है. गोरखपुर से सीएम योगी के नामांकन दाखिल करने के बाद इस बारे में जब उनकी राय पूछी गई, तो अखिलेश ने कहा, "गोरखपुर की जनता, जिस समय अपनी दिक्कतों को लेकर वोट करेगी, हमारे योगी मुख्यमंत्री जी चुनाव हारेंगे. वहां के नौजवान नौकरी और रोज़गार की बात पूछेंगे. किसान अपनी आय दोगुनी हुई कि नहीं हुई वो पूछेंगे. इन्होंने कहा था कि गोरखपुर में मेट्रो चलेगी, लेकिन लोगों को बारिश में नांव में चलना पड़ा."


अखिलेश यादव ने ये भी कहा, "बिजली महंगी है. अगर गोरखपुर के लोगों को हम ये समझा ले गये कि उनकी बिजली 300 यूनिट फ्री होगी, तब भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री हार जाएंगे.." अखिलेश यादव ने कहा, "भारतीय जनता पार्टी इस बहस को बदलना चाहती है. सवाल गर्मी का नहीं है. सवाल ये है कि नौजवानों के लिए रोज़गार और नौकरियां निकलेंगी या नहीं. सवाल ये है कि नौजवानों को रोज़गार मिलेगा या नहीं. अगर वक्त पर नौकरी मिल जाए तो नौजवानों की ऊर्जा का सही इस्तेमाल होगा." 


हालांकि अखिलेश ने इस बातचीत में सूबे में बढ़ती हुई बेरोजगारी का अहम मुद्दा उठाया है. उनका कहना है कि "सबसे बड़ा सवाल ये है कि इस वक्त की नौजवानों के पास नौकरी नहीं है इस. रोज़गार की व्यवस्था आखिर कौन बनाएगा. उन्हें (बीजेपी को) व्यवस्था बनानी नहीं. पहले पांच साल नहीं बनाई. इसलिए मुद्दे को भटकाने के लिए वे इस तरह की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं." 


वैसे अखिलेश अपने चुनाव अभियान में भी इसे एक बड़ा मुद्दा बनाने के लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं लेकिन मंदिर-मस्जिद, श्मशान-कब्रिस्तान और हिंदू-मुसलमान जैसे मुद्दे ही जहां चुनाव की तकदीर का फैसला करते हों, वहां बेरोजगारी का मुद्दा हाशिये पर नहीं तो और कहां जायेगा?


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