(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और सपा का गठबंधन टिकाऊ, जयंत भी चलेंगे उनकी ही राह, बीजेपी के लिए खड़ी हो सकती है मुश्किलें
यूपी के बारे में कहा जाता है कि देश की सत्ता की चाबी यहीं मिलती है. सबसे अधिक लोकसभा सीटों की वजह से ये बात ठीक भी है. भाजपानीत एनडीए हो या कांग्रेस नीत I.N.D.I.A. गठबंधन, दोनों ही अपने -अपने पत्ते सावधानी से बिछा रहे हैं. उधर जयंत चौधरी और मायावती के ऊपर सबसे अधिक निगाहें हैं कि कहीं वे अब तक का अपना स्टैंड आखिरी वक्त में बदल तो नहीं लेंगे, यानी मायावती किसी गठबंधन का हिस्सा बन जाएंगी और जयंत सपा से अपना दामन छुड़ा लेंगे. चुनाव में अब अधिक दिन नहीं हैं, इसलिए शोर भी लगातार बढ़ता जा रहा है.
जयंत का दावा, रहेंगे गठबंधन में
उत्तर प्रदेश में राजनीतिक घटनाक्रम लगातार बदला है, लेकिन इस दौरान जयंत चौधरी के खेमे से लगातार सफाई भी दी जा रही है. जब वह बेंगलुरू जा रहे थे, तो पल-पल की रिपोर्टिंग, यहां तक कि अपने आईकार्ड की तस्वीर भी उन्होंने ट्वीट की थी. उसके बाद बैठक के दौरान और बाद में भी अखिलेश व अन्य नेताओं के साथ फोटो भी साझा की थी. हालांकि, उसके बावजूद गाहे-बगाहे इस तरह की बातें हो रही हैं, जहां उनके केंद्र में मंत्री बनने की संभावना भी व्यक्त कर दी जा रही है. हालांकि, खुद जयंत चौधरी ने अपने लोगों के साथ बात करते हुए यह सीधा आरोप भाजपा खेमे पर लगा दिया कि वही उनके जाने की बातें कर रही है, ताकि विपक्षी खेमे में भगदड़ हो. तो, जयंत चौधरी का खेमा लगातार कहा जा रहा है कि वह विपक्षी गठबंधन का हिस्सा हैं. इसके बाद जयंत ने एकाध कड़े बयान भी दिए. हालांकि, विपक्ष में कुछ दल ऐसे हैं जहां कुछ चल रहा है. जैसे, बसपा को लीजिए.
बसपा ने पहले तो घोषणा कर दी कि वह किसी भी राष्ट्रीय दल के साथ गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगे, फिर, जब राज्यों के चुनाव यानी छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान आदि के चुनाव नजदीक आए, तो बसपा ने बयान दिया कि अगर सत्ता की कुंजी बसपा के पास रहती है तो वह किसी गठबंधन को भी समर्थन देंगे. बसपा के लिए यह बड़ी बात है. यूपी को छोड़कर किसी भी राज्य में बसपा गठबंधन का हिस्सा नहीं है. उसी वक्त से ये चर्चा शुरू हुई कि मायावती अब किसी एक के साथ जाने को तैयार हैं. आखिर, राज्यों में कांग्रेस या भाजपा की ही सरकार बनेगी. किसी और का वहां कोई विकल्प नहीं है.
कांग्रेस केवल चाहती है छाप छोड़ना
वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपना प्रदेश अध्यक्ष यूपी में बदला है. जो बृजलाल खाबरी बदले गए हैं, रातोंरात उनको हटाया गया है, वह मायावती को छोड़कर आए हैं. नसीमुद्दीन और नकुल के खेमे के. हालांकि, खाबरी ने अपनी नाखुशी भी जाहिर की, लेकिन उनको हटाकर अजय राय को लाया गया है. इस तरह, पार्टी के लिहाज से भी और वैसे भी कांग्रेस ने दलित और ओबीसी को लीडरशिप से दूर जान बूझ कर रखा है. अपर कास्ट के भीतर बीजेपी को चुनौती देने के लिए ही अजय राय को लाया गया है. इसी कड़ी में यह भी माना जा रहा है कि कांग्रेस ने यह जान-बूझकर किया है. कांग्रेस ने जहां ओबीसी के लिए सपा और जयंत चौधरी पर भरोसा किया है, जबकि दलितों के लिए मायावती हेतु स्पेस छोड़ दी है. इसी क्रम में अखिलेश यादव का नया बयान भी जोड़ दीजिए. उन्होंने कहा है कि वह पहले भी गठबंधन में रहे हैं और बड़े दिल के साथ रहे हैं. लड़ाई के लिए सबको अपना दिल बड़ा करना पड़ेगा. वह इशारा कर रहे हैं कि गठबंधन में वह रहेंगे और अगर थोड़ी बहुत ऊंचनीत हुई तो भी चलेगा. अजय राय पांच बार विधायक रहे हैं और दो बार नरेंद्र मोदी के सामने लड़ चुके हैं. पहली बार उनको वोट 75 हजार मिले थे, दूसरी बार 1 लाख से कुछ अधिक. तो, अगर कोई स्थानीय नेता नरेंद्र मोदी के खिलाफ दो बार चुनाव लड़ता है और इतना ठीक प्रदर्शन करता है, तो फिर ठीक ही है. अजय राय दबंग हैं और उनकी यात्रा बीजेपी से ही शुरू हुई थी. उसके बाद सांसदी के सवाल पर वह सपा में आए, फिर कांग्रेस में और उसके बाद वह राहुल-प्रियंका के खास माने जाते हैं. उनकी पूरी पहचान ही दबंग राजनीति की है. अजय राय ने बनारस एयरपोर्ट पर जब अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार जनता से संवाद किया, तो पूरी भीड़ के साथ. 24 तारीख को जब वह लखनऊ आ रहे हैं, तो जनता को संदेश है कि सारे कार्यकर्ता आएं, पूर्व विधायक आएं. यह शक्ति प्रदर्शन करना चाह रहे हैं. अब चुनाव करीब आने के साथ उनकी दबंग शैली कितना फायदा कांग्रेस को पहुंचाएगी, वह तो वक्त ही बताएगा.
यूपी में विपक्ष को मुश्किल नहीं
लखनऊ के स्तर पर देखें तो विपक्षी गठबंधन में एक सहमति तो बनी हुई है. उत्तर प्रदेश और दूसरे प्रदेशों में अंतर भी है. यहां कांग्रेस की स्थिति भी अलग है. कांग्रेस को यहां लोकसभा की केवल एक सीट है, विधानसभा में दो सीटें मिली हैं. पिछला चुनाव राहुल गांधी हार चुके हैं. ऐसे में जो स्थितियां हैं, कांग्रेस बिल्कुल नहीं चाहेगी कि वह गठबंधन में खटास की वजह बने. भले ही वह राजस्थान, छग और मध्य प्रदेश में भले वह अच्छा प्रदर्शन करे, जीत भी जाए, लेकिन यूपी में तो वह बड़ा भाई नहीं बनेगी. उसको पता है कि छह महीने में उसकी हालत में आमूलचूल परिवर्तन नहीं आएगा. ऐसा नहीं है कि पूरे प्रदेश में उसके पास नेता हो जाएं, उसका संगठन खड़ा हो जाए, हां वह चाहेगी कि 15 से 20 सीटों पर कांग्रेस का प्रभाव कम से कम दिखे. अब सवाल केवल यह है कि तीन राज्यों के चुनाव के बाद मायावती क्या स्टैंड लेती हैं. यह बात तो तय है कि तीसरा खेमा नहीं रहेगा. यह बात तो ममता बनर्जी को भी समझ में आ गया है. पिछली बार हमने मायावती का हाल देख लिया है. सबसे बुरी हालत उनकी हुई. हाल ही में कर्नाटक को देखिए तो वहां जद (एस) का क्या हुआ है. इसलिए, मायावती के लिए भी अंदरखाने बेचैनी है. अगर वह अकेले लड़ती हैं तो उन पर बीजेपी की मदद का आरोप लगेगा. अगर उन्होंने अधिक मुस्लिम कैंडिडेट्स को टिकट दिए तो यह आरोप और पुख्ता होंगे. इसलिए, सीटों के बंटवारे की बात अभी प्रीमैच्योर है. मुंबई में तो यह नहीं होगा. वह इन राज्यों के चुनाव के बाद ही होगा, इतना तय है.
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