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देवभूमि पर दोबारा भगवा लहराने के लिए क्या बीजेपी काटेगी 28 विधायकों के टिकट ?

21 बरस पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने देवभूमि कहलाने वाले जिस उत्तराखंड को अलग राज्य बनाकर एक नई पहचान दी थी, वहां भी अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव हैं और बीजेपी अगले पांच साल तक फिर से वहां भगवा ध्वज लहराने की ताक में जुटी है. इस पर्वतीय प्रदेश का अब तक का राजनीतिक इतिहास बताता है कि एक बार सत्ता में आई पार्टी को जनता दोबारा मौका नहीं देती और उसे विपक्ष में बैठना पड़ता है. हालांकि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आज देहरादून की रैली से चुनाव-प्रचार का आगाज़ करते हुए ये ऐलान किया है कि अटलजी के बनाये राज्य को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद तरीके से संवारने के काम किया है, लिहाज इस बार ये मिथ टूटेगा और बीजेपी दोबारा सरकार बनायेगी.

लेकिन सवाल उठता है कि साढ़े चार साल में तीन मुख्यमंत्री बदलने वाली बीजेपी के लिए दोबारा सत्ता पाना, क्या इतना आसान होगा? 70 सीटों वाली विधानसभा में फिलहाल बीजेपी के 56 विधायक हैं, लेकिन करीब दो महीने पहले संघ व पार्टी के अंदरुनी सर्वे में पार्टी की हालत कमजोर बताई गई थी. इसमें कहा गया था कि अगर बीजेपी को अपना किला बचाना है, तो उसे तकरीबन आधे यानी 28 मौजूदा विधायकों के टिकट काटकर नये चेहरों को मैदान में उतारना होगा. ये ऐसे विधायक हैं जिन्होंने चुनाव जीतने के बाद न तो अपने क्षेत्र में विकास-कार्य करवाने की परवाह की और न ही जनता से सीधा संवाद स्थापित करना ही जरूरी समझा.

चूंकि उत्तराखंड में अब तक बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला होता आया है, लेकिन इस बार अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी वहां ताल ठोंक दी है. आप सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है और उसने कर्नल कोठियाल को अपना मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भी घोषित कर दिया है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि केजरीवाल की पार्टी जिस तरह से पंजाब में तीसरी ताकत बनकर उभरी है, कुछ वैसा ही हाल उत्तराखंड में भी होने की उम्मीद है क्योंकि वहां भी लोग दोनों पार्टियों को आज़मा चुके हैं. ऐसे में,एक बड़ा तबका ऐसा होता है जिन्हें हम न्यूट्रल या साइलेंट वोटर कहते हैं, जो दोनों बड़ी पार्टियों के कामकाज से नाराज होने के बाद तीसरे विकल्प को तलाशता है. केजरीवाल ने चुनावी-मैदान में कूदकर ऐसे लोगों की तलाश पूरी कर दी है. भले ही आम आदमी पार्टी ज्यादा सीटें न ला पाये लेकिन वो दोनों पार्टियों का खेल बिगाड़ सकती है. कुछ सीटों पर बीजेपी के लिए वो नुकसानदायक साबित हो सकती है, तो कुछ पर कांग्रेस के लिए. ऐसे में, फिलहाल तो कोई भी ये दावा नहीं कर सकता कि इस पहाड़ी सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बिल्कुल सीधा-सरल है.

ऐसा माना जा रहा है कि केजरीवाल की आप कांग्रेस से अधिक बीजेपी के लिए खतरा बन सकती है क्योंकि उसे कुछ प्रतिशत तक तो सत्ता विरोधी प्रभाव झेलना ही पड़ेगा और वही नाराज वोटर तीसरे विकल्प की तरफ शिफ्ट हो सकता है. यही कारण है कि बीजेपी भी आम आदमी पार्टी को खुद के लिए एक चुनौती मानते हुए उसे हल्के में नहीं ले रही है.

अंदरुनी सर्वे की रिपोर्ट मिलने के बाद पार्टी आलाकमान के भी कान खड़े हो गए और बीते अगस्त के आखिरी हफ्ते में पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा ने दो दिन तक उत्तराखंड में रहकर पार्टी की जमीनी हालात को समझने की कोशिश की. उन्होंने विधायकों के प्रदर्शन पर जो फीडबैक लिया, उसमें भी 28 विधायकों का प्रदर्शन औसत से भी कम या खराब ही माना गया. उन्होंने प्रदेश के नेताओं के साथ कोर कमेटी की जो बैठक ली, उसमें मोटे रूप से यही बात उभरी कि इन 28 विधायकों ने पिछला चुनाव जीतने के बाद न तो जनता से कोई संपर्क साधा और न ही अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में रहे, जिसके चलते लोगों में बेहद गुस्सा है. हालांकि नड्डा ने प्रदेश इकाई से ये भी कहा कि अगर कोई विधायक उम्रदराज भी है, लेकिन उसके दोबारा जीतने की अगर पूरी संभावना है, तो उसे दोबारा टिकट देने के लिए उसका नाम केंद्रीय नेतृत्व को भेजा जाए.

लेकिन तब भी एक अहम मसले पर नड्डा पार्टी की प्रदेश कमेटी के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर करने से खुद को रोक नहीं पाए थे. उन्हें शिकायत मिली थी कि राज्य सरकार के कैबिनेट मंत्री सहित अधिकांश विधायक रात्रि प्रवास पर नहीं रहते. लिहाज़ा, उन्होंने प्रदेश कमेटी को सख्त हिदायत दी थी कि कैबिनेट मंत्रियों सहित सभी विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में रात्रि प्रवास को गंभीरता से लें और वहीं पर विश्राम करें, ताकि मौके पर ही ग्रामीणों की समस्या का हल निकाला जा सके. उन्होंने सबको ये भी निर्देश दिया था कि रात्रि प्रवास की फोटो और वीडियो उनके साथ जरूर शेयर करें. हालांकि उनकी इस हिदायत का कितना असर हुआ और पार्टी को उसका कितना लाभ मिलेगा,ये तो चुनाव-नतीजे ही बताएंगे.

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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