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वैलेंटाइन्स डे स्पेशल: कासाब्लांका एक अनोखी लव स्टोरी

1942 में रिलीज हुई ये फिल्म फ्रेंच मोरक्को के कासाब्लांका शहर में फिल्माई गई थी. ये फिल्म प्यार की एक अनोखी कहानी है. वैलेंटाइन्स डे पर ये फिल्म जरूर देखें.

वैलेंटाइन्स डे स्पेशल: कासाब्लांका अनोखी लव स्टोरी है. इसमें इमोशन है, इसमें जुदाई का गम है, इसमें बिछड़ने की टीस है, फिर से मिलने पर एक अजीब अनमनापन है और फिर ऑल इज वेल भी. चूंकि इसमें प्यार के कई रूप हैं, इसलिए वैलेंटाइन्स डे पर प्यार के सारे शेड्स से रूबरू होने के लिए हॉलीवुड की इस ऑल टाइम क्लासिक फिल्म को देखना तो बनता ही है.

1942 में रिलीज हुई कासाब्लांका

1942 में रिलीज हुई ये फिल्म फ्रेंच मोरक्को के कासाब्लांका शहर में फिल्माई गई. शहर पर नाजियों का कब्जा फिलहाल नहीं था और पूरी दुनिया के शरणार्थी यहां जमा हुए थे. इनमें से कुछ के पास ऑप्शन था कि वो लेटर ऑफ ट्रांसिट पाकर फिर से किसी आजाद मुल्क में जा सकते हैं.

कासाब्लांका में एक कैफे है जिसके मालिक रिक हैं. यहां जमकर जुआ खेला जाता है और इस कैफे की चर्चा पूरे शहर में है. रिक के पास जादुई लेटर ऑफ ट्रांजिट भी है. जिसे पाकर किसी की किस्मत बदल सकती है. एक शाम को रिक के कैफे में एक फरमाइशी गाना बजता है. जो उसे अपने खोये प्यार की याद दिलाता है. हैरानी की बात है कि उस गाने की फरमाइश करने वाली कोई और नहीं उनकी बिछड़ी प्रेमिका इल्सा होती है. इल्सा अपने पति विक्टर के साथ कैफे में बैठी होती हैं. मिलन, जुदाई और फिर से मिलन

कासाब्लांका आने से पहले रिक पेरिस में रहते थे. वहां उनकी मुलाकात एक खूबसूरत लड़की इल्सा से हुई थी. दोनों में प्यार भी हो जाता है. इसी दौरान खबर आती है कि पेरिस पर नाजियों का कब्जा होने वाला है. उसी शाम की मुलाकात में दोनों एक दूसरे से टूटकर प्यार करते हैं. ऐसी मोहब्बत जैसे कि दोनों की ये आखिरी मुलाकात हो और वो आखिरी मुलाकात जैसी ही साबित होती है. तब तक के लिए जब तक जिंदगी में नया ट्विस्ट ना हो जाए.

इसी बीच इल्सा को अपने पति के लिए ट्रांजिट लेटर की जरूरत होती है. पति-पत्नी बारी-बारी से रिक से इसकी मांग करते हैं लेकिन रिक नहीं मानता है. फिर पूरी कहानी सामने आती है. इल्सा बताती है कि पेरिस में उसे जानकारी मिलती है कि उसका पति नाजियों के कंसन्ट्रेशन कैंप से छूट चुका है, लेकिन वो काफी बीमार है. उसे अपनी बीमार पति की देखभाल करनी है. इसलिए वो रिक से विदा पाती है. आखिर में ऑल इज वेल वाली फीलिंग भी आती है जब रिक, पति-पत्नी मतलब इल्सा-विक्टर को हमेशा के लिए एक साथ रहने की इच्छा जाहिर करता है, चाहे इसके लिए अपने प्यार की कुर्बानी ही देनी पड़े.

ये कोई आम लव स्टोरी नहीं है

हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि ये आम लव स्टोरी नहीं है. शादी के बाहर का प्यार हमेशा मुसीबत और अनिश्चितता ही लाता है. रिक के साथ भी वैसा ही हुआ. वैसे उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि वो एक शादीशुदा महिला को दिल दे बैठा है. इसलिए बिछड़ने के गम में वो काफी विचलित हो जाता है. यहां तक कि काफी कड़वाहट भी पैदा हो जाती है और अच्छे-बुरे के भेद को भी भूल जाता है.

प्यार तो देने का नाम है, पकड़कर रखने का नहीं

इल्सा के कैरेक्टर को ऐसे कैसे देखेंगे. ऐसी शादी जिसमें लगा कि पति हमेशा के लिए खो गया है. ऐसे में दूसरे साथी की तलाश गैरवाजिब है क्या? लेकिन जैसे ही पता चला कि पति जिंदा है और उसे उसकी जरूरत है वो इसके लिए अपना सबकुछ छोड़ देती है और आखिर तक पति के लिए लेटर ऑफ ट्रांजिट की मांग करती रहती है.

रिक को समय का मारा कह सकते हैं. मनचाहा प्यार मिला, फिर उसे विश्व युद्ध के हालात की वजह से खोना पड़ा. और जब फिर से मुलाकात हुई तो पूरा मामला उलझ गया था. लेकिन इसके बावजूद उसके अंदर कड़वाहट की कोई गुंजाइश नहीं रहनी चाहिए थी. प्यार तो देने का नाम है, अपने हक को पकड़ कर रखने का बिल्कुल नहीं. और यही विक्टर ने किया. वो सबसे लाचार था. पत्नी उसके साथ थी लेकिन उसे लग रहा था कि वो पत्नी पर बोझ बन गया है.

मेरी गुजारिश है कि इस क्लासिक फिल्म से हम सब ये सबक लें कि प्यार बांधने वाली नहीं बल्कि आजादी वाली फीलिंग है. इसके डोर को आप जितना पकड़कर रखेंगे उतनी ही इनसिक्योरिटी बढ़ेगी. बेहतर तो ये होगा कि जैसी जिंदगी आप चाहते हैं अपने पार्टनर को भी ऐसी जिंदगी जीने में मदद करें. कोई इनसिक्योरिटी नहीं होगी. उल्टा प्यार और मजबूत होगा. इस फिल्म को देखें और वैलेंटाइन डे पर प्यार का सही सबक लें.

(नोट- लेखक युवा हैं और उनको फिल्मों का शौक है और उसी के जरिए वो जिंदगी के मायने तलाशने में जुटे हैं.)

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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