योगी बनाम त्रिवेंद्र की होड़ से उत्तराखंड दौड़ेगा!
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सरकार बदलने में उत्तराखंड के इलाकों में ज्यादा चर्चा यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हो रही है. इसकी वजह केवल यह नहीं कि योगी आदित्यनाथ भी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की तरह यहां के पौडी जिले के रहने वाले हैं. चर्चा केवल इसलिए भी नहीं कि उत्तराखंड की जनता यूपी मं बीजेपी के परचम फहरने से अभिभूत है.
दरअसल एक ही समय में जिस तरह योगी आदित्यनाथ अपने रोमियों पकड़ दस्ते और अवैध बूचडखानों पर रोक लगाने के फैसले के साथ एकदम एक्शन में आते दिखे हैं, उसने एकाएक ही दोनों राज्यों में नेतृत्व करने वालो में तुलना का अवसर दे दिया है. हालाकि दोनों राज्यों में परिस्थितियां अलग हैं और हालातों से निपटने की कसौटी भी अलग-अलग है. इससे सीधे तुलना नहीं हो सकती. लेकिन पिछले सोलह साल में उत्तराखंड जिस माहौल में पला बढा है, उसमें यह अपेक्षा सहज है कि क्या बदले हालात में नई सरकार अपने किसी एक्शन के साथ होगी.
प्रकृति और शैली में योगी आदित्यनाथ से अलग तिवेंद्र राज्य की दशा बदलने का हौसला रखेगे. रोमियो दस्ता हो या अवैध बूचड़खाने पर रोक या लडकी के फोन पर पुलिस का मदद तीनों घटनाओं ने उत्तराखंड के लिए ये हालात बना दिए हैं कि उसे किसी न किसी तरह एक्शन मोड पर दिखना ही होगा. क्योंकि योगी आदित्यनाथ के किसी फैसले पर आप सहमत या असहमत हो सकते हैं, लेकिन यह तय है कि वह रुकने या धीमें चलने वाले नेता नहीं है. और जब-जब शासकीय स्तर पर कोई हलचल यूपी में होगी कोई बड़ा फैसला होगा उसे उत्तराखंड के लोग अपनी सरकार के कामकाज के दायरे में तोलेंगे. खासकर तब जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनो ही प्रदेश में स्वच्छ प्रशासन और विकास का आश्वासन दे चुके हैं. और वोट भी उनके ही नाम पर मिले हैं.
योगी आदित्यनाथ की छवि मुखर राजनेता के तौर पर रही है. उनकी कार्यशैली और तत्परता उन्हें हमेशा सुर्खियो में रखती आई है. भले ही विवादों में भी रहे हैं. पौड़ी जिले के अनजाने से गांव पंचूर से एक युवक निकला तो फिर गांव में अपनी याद ही छोड गया. तमाम जद्दोजहद और संघर्ष के साथ उसने गौरखनाथ की माटी में अपनी पदवी को पाया. गोरखपुर ने उन्हें इस तरह अपनाया कि उनका जीवन संस्कृति शैली सब वही की आबोहवा में रच बस गया. लोग भूल गए कि उसका नाम अजयमोहन बिष्ट है. वह योगी आदित्यनाथ कहलाया. बीजेपी की सियासत उन्हें संसद तक ले गई. 21 साल ससद में रहते हुए अपनी पार्टी के लिए उनकी वाणी गूंजी. वे जिद्दी कहे गए. विवादों में भी रहे. लेकिन जब बीजेपी अब तक के अपने सबसे बड़े आकड़े के साथ स्पष्ट बहुमत लेकर सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ही बनाए गए. किन कारणों से इसकी विवेचना अलग लेकिन उनके सपथ लेते ही उत्तराखंड में उसकी प्रतिध्वनि साफ देखी गई.
इसके विपरीत उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत की छवि मुखर नहीं रही है. पौडी जिले के ही खैरासैंण गांव में जन्मे 1979 में आरएसएस से जुडे हैं. संगठन के विभिन्न पदों पर रहने के बाद ववह नए राज्य में विधायक भी बने और अगली बार मंत्री भी. झारखंड के चुनाव में पार्टी प्रभारी रहते बीजेपी को जीत दिलाने का श्रेय उन्हें भी मिला. योगी आदित्यनाथ के सामने ज्यादा बडी चुनौतियां हैं. उन्हें जहां विकास के लिए सरकार को नया आयाम देना है. वहीं इतने बडे प्रदेश को अपने स्तर पर साधना है. यूपी में कानून व्यवस्था, सामाजिक संतुलन के साथ साथ कई ऐसे सवाल हमेशा फिंजा में गूंजते रहते हैं जो किसी सरकार को चैन नहीं लेने देते.
बेशक यूपी सरकार के पास तीन सौ से ऊपर का बहुमत हो लेकिन कई चीजों के अवरोध भी है. जिनसे निपटते हुए योगी आदित्यनाथ को तेजी से विकास करना होगा. प्रदेश के 32 मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेते हुए उन्हें अगर कोई संतोष होगा तो यही कि वह स्वतंत्र रप से अपने कुछ कड़े कदम उठा सकते हैं. सियासी अको की कोई दिक्कत उनके सामने नहीं है. इससे भी ज्यादा अनुकूल स्थितियों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने तिवेंद्र के ऊपर अपना हाथ रखा है.
यूपी की तुलना में उत्तराखंड में कानून व्यवस्था जातीय संघर्ष और धर्म के नारे पर सड़कों को जाम करने का प्रसंग शायद नहीं होंगे. लेकिन उत्तराखंड जिन हालातों से बिगड़ा है उसे समझने की जरूरत है. उत्तराखंड अपनी स्थापना से ही सही चाल नहीं चला. यह एक राज्य तो बन गया लेकिन इसे यूपी के ढरें पर ही चलाया जा रहा है. इस राज्य के बनते ही यहां दलालों माफियों ने यहां की सियासत और नौकरशाही को अपने प्रभाव में रखा. देहरादून में ही मीडिया के दो हजार पत्रकार (ज्यादातर मान्यता प्राप्त) का होना साबित करता है कि राज्य किस तरह चला है. खनन माफिया और भ्रष्टाचार में डूबे राज्य को इससे बाहर निकालना किसी भी मुख्यमंत्री के लिए इस राज्य में पहली चुनौती होती. और की भी मुखयमंत्री इस परिपाटी को तोड नहीं पाया. अब जब नरेंद्र मोदी ने अपनी सभाओं में इस राज्य की दशा बदलने का भरोसा दिलाया तो नए मुख्यमंत्री से अपेक्षा बढी है. इसीलिए जैसे ही यूपी में योगी आदित्यनाथ ने कुछ ताबड़तोड़ फैसले लिए, उत्तराखड के इलाकों में यह स्वर गूंजने लगा कि यहां अभी कोई एक्शन नहीं. यह एक सकारात्मक संकेत भी है कि लोग तेजी से बदलाव चाहते हैं और काम चाहते हैं.
योगी आदित्यनाथ एक तेजतर्रार नेता रहे हैं और उनकी छवि एक जिद्दी व्यक्तित्व के तौर पर भी देखी जाती है. लेकिन त्रिवेंद्र सिंह ने बड़े नेताओं का विश्वास तो जीता है लेकिन वह अग्रणी रहने वाले या मुखर नेताओं के तौर पर नहीं जाने गए. लेकिन पार्टी के अंदर उन्होंने अपने संबंधों को हमेशा उच्च स्तर पर प्रगाढ किया. शायद इसीलिए काफी अनुकूल स्थितियों में उन्हें ही सरकार का दायित्व सौंपा गया. अनुकूल इस मायने में कि अभी कांग्रेस साइलेंट जोन ही रहेगी, पार्टी के अदर अंसंतोष की फिलहाल गुजांइश नहीं है.
कांग्रेस से आए दिग्गज सतपाल रावत विजय बहुगुणा, डॉ हरक सिंह, यशपाल आर्य, सुबोध उनियाल और पार्टी में डॉ रमेश पोखरियाल निशंक, भगत सिंह कोश्यारी जैसे तमाम नेताओं के बावजूद उन्हें जो नेतृत्व मिला है, वह अभी उनके लिए अनुकूल स्थिति का ही कहा जाएगा. क्योंकि इन नेताओं के होते उन्हें नेतृत्व करने की इससे बेहतर और अनुकूल स्थिति और क्या होती. बीजेपी में तमाम बडे नेता है लेकिन अभी फर्श पर फिसलता पाउडर कोई नहीं छिडकेगा. इसी अवधि में तिवेंद्र के पास अपने को साबित करने का बेहतर मौका हो सकता है और शायद लोगों ने भी यही चाहा है इसलिए वह एक्शन की तुलना करने लगे हैं.
उत्तराखंड में पलायन को रोकना, रोजगर के लिए अवसर जुटाना तो अहम सवाल है ही पर्यटन के बधे बंधाए खांचे से निकलकर नई दिशा तलाशना होगी. जब बदले हालात में यूपी में योगी को यूपी को मोदी कहा जाने लगा हो तब तिवेंद्र रावत के अगले कुछ कदम तय करेंगे कि उनकी छवि किस तरह गढ रही है. बेशक हर चीज की तुलना नहीं हो सकती लेकिन राज्य किस तरह चलने लगा है या कुछ बदलने लगा है इस पर लोगों की पैनी निगाह होगी. वह एक-एक फैसले एक- एक चीज को कसौटी पर कसेंगे. साथ ही जब यूपी उत्तराखंड में बीजेपी का सरकार हों, और केंद्र में मोदी का नेतृत्व हो तो दोनों राज्यों के अपने परिसंपत्तियों के विवाद भी सुलझ सकते हैं. खासकर तब जबकि दोनों राज्यों में सियासत के स्तर पर दिक्कते रही हैं लोगों के आपसी संबंधों में कहीं मनमुटाव नहीं है. अपेक्षा यह भी है कि गंगा यमुना की स्वच्छता के लिए राज्यों के बीच विभिन्न दलों की सरकारों के बीच जो अड़चने आ रही थी उससे पलट अब इस मामले मे तेजी से काम हो सकता है. गंगा यमुना की स्वच्छता के लिए उत्तराखंड नहीं यूपी क शहर ज्यादा दिक्कतें पैदा करते रहे हैं. लेकिन अभियान को उत्तराखड के पर्वतीय इलाकों से भी जोडा गया है. दोनों राज्यों को आगे बढाने में इच्छाशक्ति ही अहम है. दोनों के विकास की अपनी कसौटियां हैं. ऐसे में अगर तुलना भी होने लगी है तो यह उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य के हित में होगा. जिस अस्थिरता और लुंजपुंज हालत में यह राज्य घिसटता रहा उसे अब हौड़ के चलते ही सही वह दौड़ने की कोशिश कर सकता है. कभी कभी होड़ अच्छे नतीजे देती है. सोलह साल में पहली बार सत्ता सभालने के एक हफ्ते के अंदर ही होड़ एक्शन जैसे शब्द कुछ अपेक्षाएं जगाते हैं बाकी आगे के वक्त पर.
हां इतना जरूर है कि हिंदुत्व या बीजेपी के राश्ट्रीयवाद का चेहरा योगी आदित्यनाथ ही बनेंगे. बीजेपी के लिए त्रिवेंद्र रावत की सफलता और प्राथमिकता उनके विकास कामों और राज्य के अच्छे संचालन में ही गौर करेंगी. खासकर ऐसे समय जब सत्ता संभालते ही योगी को यूपी का मोदी कहा जाने लगा हो तब त्रिवेंद्र रावत अपना परिचय किस रूप में देते हैं यह समय बताएगा.
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आकड़ें लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.