एक्सप्लोरर

क्या शाकाहार है समस्या का समाधान?

लंबे वक्त तक यह माना जाता रहा कि गुफा में रहने वाले मानव सिर्फ मांस खाते थे. लेकिन अब यह भ्रम सिद्ध हुआ है. वैज्ञानिकों का कहना है कि आदिम युग के इंसान फल, फलों के गूदे, कंद-मूल और मांस खाते थे. मनुष्य जानवरों से खुद की रक्षा करने हेतु पत्थर के हथियार बनाये. धीरे धीरे पेट भरने के लिए उनका शिकार करना सिखा, फिर कुछ को पालतू बनाया और धीरे धीरे मानव सभ्यता की गाड़ी चल निकली. यूनीलीवर कंपनी के लिए शोध कर रहे वैज्ञानिक डॉक्टर मार्क बेरी कहते हैं कि "पाषाण युग के आहार में कई तरह के पौधे शामिल थे. आज हम एक दिन ज्यादा से ज्यादा एक सब्जी या पांच फल खा लेते हैं, वे लोग एक दिन में 20 से 25 प्रकार के पेड़ पौधों यानी साग सब्जी खाया करते थे."

आज जबकि मानव जाति ने मांसाहार को आत्मसात कर लिया है तब आँकड़ों पर नज़र डालने पर गौरतलब है कि भारत में साल में प्रति व्यक्ति मांस की औसत खपत 3 किलो है, वही रूस में एक आदमी सालाना औसतन 76 किलो मांस खा जाता है. जर्मनी में यह आंकड़ा 87 किलो के आसपास है वहीं अमेरिका में प्रति व्यक्ति प्रति साल मांस की खपत है 127 किलो. यह आंकड़े साफ करते हैं कि पश्चिमी देशों में मांस भोजन का आधार है. आज अपनी प्रोटीन की जरूरतों को देखते हुए मनुष्य ने ज्यादा से ज्यादा  मांसाहार को अपना लिया है फिर भी आँकडो से स्पष्ट है कि भारत दुनिया के सबसे कम मांस खाये जाने वाले देशो में शामिल है. यहाँ तक कि आदिम महादेश माने जाने वाले अफ्रीका में भी मांस की प्रति व्यक्ति सालाना खपत पश्चिमी देशो के मुकाबले बहुत कम मात्र 17 किलो ही है. जाने-अनजाने में  मांस की कम खपत पृथ्वी के स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छी बात है, क्योंकि आज संपूर्ण  विश्व जिस नाजुक पड़ाव पर आ पहुँचा है वहां दुनिया को भारत से सीखने की जरूरत है कि शाकाहारी खाने को अपनाकर हम अपनी पृथ्वी और अपने पर्यावरण को बचा सकते हैं.

कुछेक क्षेत्रों को छोड़ सभ्यता के विकासक्रम में दुनिया भर में मांस खाने को स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक माना गया और जैसे-जैसे दुनिया की आबादी और आर्थिक विकास बढ़ता गया दुनिया में मांस की मांग भी तेजी से बढ़ती गई.  1968 में तीन अरब आबादी वाली दुनिया में मांस  की सालाना खपत सात करोड़ मीट्रिक टन थी यानि प्रति व्यक्ति सालाना औसतन 23 किलो मांस खाता  था वही 2018 आते-आते जब दुनिया की आबादी बढ़ कर 7.6 अरब हो गयी और मांस की सालाना खपत पांच गुणा बढ़कर 35 करोड़ मीट्रिक टन हो गयी.  इस हिसाब से प्रति व्यक्ति मांस का सालाना खपत 40 किलो का औसत बैठता है, यानि मांस की खपत बढ़ते जनसँख्या के साथ लगभग दो गुणा बढ़ी.

मांस की जितनी मांग बढ़ेगी उतने ही ज्यादा खाने लायक जानवरों की जरूरत होगी, जिन्हें  पालने के लिए बहुत सारी जमीन, ढेर सारा चारा, उसी हिसाब से पानी चाहिए. यानि मवेशी पालन का सीधा असर कृषि लायक जमीन और पानी पर हो रहा है. जर्मन पर्यावरण एजेंसी का कहना है कि दुनिया में खेती के लायक जितनी भी जमीन है उसका 71 प्रतिशत हिस्सा या तो मवेशियों का चारा उगाने या फिर बिना किसी इस्तेमाल के है. खाद्य उत्पादन के लिए 18%, 7% पर कॉटन जैसा कच्चा माल देने वाली फसलें और बाकी बचे 4% ज़मीन पर बायोगैस बनाने के लिए मक्का जैसी एनर्जी क्रॉप की खेती हो रही है. 

क्योंकि मांस की मांग और मांसाहार की प्रवृति बढ़ रही है तो कृषि योग्य जमीन पर भी दबाव बढ़ रहा है ऐसे में ब्राजील जैसे देशों में बड़े-बड़े जंगलो को साफ किया जा रहा है ताकि जानवरों के लिए चारा उगाया जा सके, जंगल काटे जाने से बहुत सारे वन्य जीवों  के बसेरे खत्म हो रहे हैं और वे फिर इंसानी बस्तियों की तरफ रुख करने लगते हैं, इससे जानवरों और इंसानों का टकराव बढ़ता है. यानि मांसाहार ना सिर्फ खेती बाड़ी, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र में विघटन का वायस बन रहा है.  मांसाहार के प्रति बढती आसक्ति से इंसानों की सेहत के लिए भी कई तरह के खतरे पैदा हो रहे हैं जैसे जानवरों में पाए जाने वाले वायरस इंसानों तक पंहुच कोरोना जैसे महामारी का रूप ले रहे है.  ऐसे में दुनिया की आबादी का पेट भरना और पृथ्वी और पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को भी बचाए रखना एक बड़ी चुनौती है.  खान-पान के जानकार ऐसा  भोजन अपनाने की सलाह देते हैं जिसमें मांस  कम हो और पेड़-पौधों से मिलने वाला भोजन ज्यादा यानी  हमारे खाने में फल-सब्जियां अनाज और दालों की  प्रचुरता में होनी चाहिए.

मांसाहार पर पानी के खपत के आँकड़े को देखने पर यह चौकाने वाली बात सामने आती है कि  एक किलो भैस का मांस तैयार करने में 15415 लीटर पानी खर्च होता है, एक किलो मटन पर 10,412 लीटर और चिकन पर 4325 लीटर से ज्यादा पानी की खपत होती है.  दूसरी तरफ 1 किलो गेहू और चावल उगाने पर क्रमशः 1608 और 2497 लीटर पानी की खपत आती है.  जब व्यापक पैमाने पर करोड़ों टन बीफ का उत्पादन करना हो तो आप समझ सकते हैं कि कितने पानी की जरूरत होगी, यह पानी हमारी नदियों झीलों और जमीन के नीचे मौजूद स्रोतों से ही उपलब्ध होता है, जो अनाज के लिए जरुरी सिंचाई को भी प्रभावित करेगा. आज दुनिया भर में सालाना मांस  के लिए 70 अरब से भी ज्यादा जानवर मारे जा रहे है.  इनमें से ज्यादातर जानवर और औद्योगिक देशों खासकर एक-तिहाई से ज्यादा चीन के बुचखानों में काटे जा रहे है. 

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में इंसानों के लिए जिस तरह से खाने के व्यवहार में परिवर्तन हो रहा है उसकी वजह से 24 हजार से लेकर 28,000 पौधों और जीवों की प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. आजकल डायबिटीज और हृदय रोगियों की बढ़ती संख्या देख यह बात साफ होने लगी है कि खाने पीने की इन बदली आदतों ने कई नई और घातक बीमारियों को भी जन्म दिया है. आज का इंसान अपने पूर्वजों की तुलना में शारीरिक रुप से कमजोर हो चुका है. वैसे सोचने वाली बात यह भी है कि जिस खाने को उगाने में इतने प्राकृतिक संसाधन और इतनी मेहनत कि जरूरत होती है उसका भी पूरी तरह इस्तेमाल नहीं होता है दुनिया भर में पैदा होने वाले कुल खाने का एक -तिहाई हिस्सा कूड़े के ढेर में जाता है.

इसका मतलब साफ है कि हमें अपने खाने और खाने से जुड़ी पसंद में बदलाव करने की जरूरत है. यानी मांस की खपत को कम करना ही होगा और इसके लिए भारतीय खान पान की प्रवृति जिसमे मांस का उपयोग ना पुर्णतः वर्जित और रोज रोज ना होकर व्याहारिक रूप में होता है. इसके उलट पश्चिमी देशो में मांस ना सिर्फ रोज रोज खाया जाता है बल्कि दिन के हर खाने में होता है. शाकाहार और मांसाहार से इतर मांस का अति उपयोग पृथ्वी और मानव के स्वास्थ्य से सीधा जुड़ा मामला है जिसे अब नज़रन्दाज नहीं किया जा सकता !

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

और देखें

ओपिनियन

Advertisement
Advertisement
Sun Apr 20, 3:27 pm
नई दिल्ली
33.2°
बारिश: 0 mm    ह्यूमिडिटी: 31%   हवा: ESE 9.6 km/h
Advertisement

टॉप हेडलाइंस

'एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान से मिटेगा जातिवाद', बोले मोहन भागवत
'एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान से मिटेगा जातिवाद', बोले मोहन भागवत
Bihar Politics: 'इनकी जोड़ी सिर्फ कुर्सी के लिए', बिहार में PM मोदी और CM नीतीश पर गरजे मल्लिकार्जुन खरगे
'इनकी जोड़ी सिर्फ कुर्सी के लिए', बिहार में PM मोदी और CM नीतीश पर गरजे मल्लिकार्जुन खरगे
'सितारे जमीन पर' में गुलशन बनकर सबसे भिड़ेंगे आमिर खान, बोले- 'प्रीक्वल ने रुलाया था पर ये फिल्म हंसाएगी'
'सितारे जमीन पर' में गुलशन बनकर सबसे भिड़ेंगे आमिर खान, बताया कैसा होगा रोल
कल वैभव आज आयुष म्हात्रे, CSK ने इस बच्चे को दिया डेब्यू का मौका; किस्मत से IPL 2025 में मिली थी एंट्री
कल वैभव आज आयुष म्हात्रे, CSK ने इस बच्चे को दिया डेब्यू का मौका; किस्मत से IPL 2025 में मिली थी एंट्री
ABP Premium

वीडियोज

निशिकांत का विवादित बयान...सुप्रीम कोर्ट का सीधा अपमान?रामबन में तेज बारिश और बादल फटा, चारों तरफ पानी ही पानीचुनाव है इसलिए वक़्फ़ पर तनाव है?Khauf Review: Hostel की कहानी इतनी खौफनाक, गजब की एक्टिंग, Horror Lovers के लिए Worth Watch

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
'एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान से मिटेगा जातिवाद', बोले मोहन भागवत
'एक मंदिर, एक कुआं, एक श्मशान से मिटेगा जातिवाद', बोले मोहन भागवत
Bihar Politics: 'इनकी जोड़ी सिर्फ कुर्सी के लिए', बिहार में PM मोदी और CM नीतीश पर गरजे मल्लिकार्जुन खरगे
'इनकी जोड़ी सिर्फ कुर्सी के लिए', बिहार में PM मोदी और CM नीतीश पर गरजे मल्लिकार्जुन खरगे
'सितारे जमीन पर' में गुलशन बनकर सबसे भिड़ेंगे आमिर खान, बोले- 'प्रीक्वल ने रुलाया था पर ये फिल्म हंसाएगी'
'सितारे जमीन पर' में गुलशन बनकर सबसे भिड़ेंगे आमिर खान, बताया कैसा होगा रोल
कल वैभव आज आयुष म्हात्रे, CSK ने इस बच्चे को दिया डेब्यू का मौका; किस्मत से IPL 2025 में मिली थी एंट्री
कल वैभव आज आयुष म्हात्रे, CSK ने इस बच्चे को दिया डेब्यू का मौका; किस्मत से IPL 2025 में मिली थी एंट्री
ये जेल नहीं स्वर्ग है! दुनिया की इन जेलों में मिलती हैं फाइव स्टार होटल के बराबर सुविधाएं
ये जेल नहीं स्वर्ग है! दुनिया की इन जेलों में मिलती हैं फाइव स्टार होटल के बराबर सुविधाएं
3 महीने से धूल फांक रहे सेना के ये खास हेलीकॉप्टर, भारतीय सेना के ऑपरेशंस को लग रहा बड़ा झटका
3 महीने से धूल फांक रहे सेना के ये खास हेलीकॉप्टर, भारतीय सेना के ऑपरेशंस को लग रहा बड़ा झटका
शेयर मार्केट में निवेश से पहले इन बातों का रखें ध्यान, ट्रेड वॉर में बचा सकते हैं पैसा
शेयर मार्केट में निवेश से पहले इन बातों का रखें ध्यान, ट्रेड वॉर में बचा सकते हैं पैसा
शरीर में दिख रहे हैं ये बदलाव तो समझ लें हो गया है कैंसर, खुद से कर सकते हैं चेक
शरीर में दिख रहे हैं ये बदलाव तो समझ लें हो गया है कैंसर, खुद से कर सकते हैं चेक
Embed widget