बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री के बयान के बाद से भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग एक बार फिर से जोर पकड़ने लगी है. हालांकि, RSS ने कहा कि भारत तो पहले से हिन्दू राष्ट्र है.  राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय हसबोले ने कहा कि भारत पहले से हिन्दू राष्ट्र है. जो एक सांस्कृतिक अवधारण है और इसे संविधान द्वारा स्थापित करने की आवश्यकता नहीं है. 


लेकिन, जहां तक इसको लेकर विश्व हिन्दू परिषद की राय की बात है तो हिन्दू राष्ट्र का मतलब है: सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय. वसुधैव कुटुम्बकम. सर्वे भवन्तु सुखना, सर्वे सन्तु निरामयाम. इन सिद्धांतों पर चलने वाला समाज हिन्दू कहलाता है. जो भी लोग भारतवर्ष में रहते हैं, इन सिद्धांतों पर चलते हैं वे हिन्दू राष्ट्र के फॉलोअर्स और अनुगामी है.


जो लोग अपनी ऐतिहासिक धरोहर अपने महापुरुषों, अपने स्वसंस्कृति और अपने ग्रंथ, महंत, पौराणिक परंपराएं और ऐतिहासिक मान्यताएं व जीवनशैली, संस्कृति का पालन करते हुए उन पर गर्व महसूस करें. ऐसा सभी समाज हिन्दू समाज है. वो जाति, मतपंथ, सम्प्रदाय से कुछ भी हो सकता है. वो पूजा पद्धति से भिन्न हो सकता है. वो कर्मकांड में विपरीत हो सकता है और उनका विरोधी भी हो सकता है.



वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत पर आधारित हिन्दू राष्ट्र


लेकिन, उसके अंदर यही बातें कि हिन्दू के लिए जो सर्वजन सुखाय, सर्वजन हिताय की बात करता हो, सबके लिए सुख की कामना करता हो और वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करता हो, श्रृष्टि के साधनों को उपभोग करते हुए भी उसका उपयोग तो करे लेकिन दोहन न करे. प्रकृति के द्वारा प्रदत्त जो चीजें दी गई हैं, वो चाहे मिनरल्स है या खाद्यान्न है, फल इत्यादि, उन सभी की जितनी आवश्यकता है, शरीर के लिए उतना इस्तेमाल करे और बाकियों को बांट दे. जितना कमाता है उसका एक हिस्सा जो उपेक्षित लोग हैं, जिनको आवश्यकता है, उनके बीच में बांट दे. ये भाव है हिन्दुत्व का और ये अवधारण है हिन्दू राष्ट्र का.


हिन्दू राष्ट्र पर विरोधाभासी बयान क्यों?


हिन्दू राष्ट्र को लेकर आरएसएस के सरकार्यवाह दत्तात्रेय हसबोले की राय और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान में किसी तरह का विरोधाभास नहीं है. हम एक विचार के लोग हैं. शुरू से ये कहते चले आ रहे हैं और हिन्दू परिवार का प्रत्येक व्यक्ति ये कहता आ रहा है कि भारत हिन्दू राष्ट्र था, है और रहेगा. इसमें किसी तरह की कोई शंका नहीं है. 


लेकिन, बागेश्वर धाम के आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री ने जो कुछ भी कहा कि हम हिन्दू राष्ट्र बनाएंगे, इसके पीछे जो मैंने समझा है वो ये हो सकता है कि देश के अंदर जो कुछ गतिविधियां चलती हैं, कुछ लोग अपने आपको हिन्दुत्व से दूर रखना चाहते हैं, राष्ट्रीय मूल्यों से इतर अलग रखना चाहते हैं और भारतीय जीवन पद्धतियों का, उनके गौरवशाली महापुरुषों और परंपराओं का अनुसरण न करते हुए उनका उपहास उड़ाते हैं, या प्रत्यक्ष-परोक्ष रुप से हमले की कोशिश करते हैं, ऐसे लोगों को मुख्य धारा की तरफ लाने का अर्थ है भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना.


हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना कोई कानूनी तौर पर या डेमोग्राफिक तौर पर इसकी परिकल्पना नहीं की गई है. वो एक तरह से मानसिक और सांस्कृतिक परिकल्पना है. एक संस्कृति को मानने वाले लोग और इसके समूह वो हिन्दू है, वो चाहे अमेरिका में रहता हो या फिर पाकिस्तान में रहता हो. लेकिन सवाल ये है कि जो लोग इन सभी मूल्यों के साथ जीतें है और इन लोगों के खिलाफ काम कर रहे लोगों को मूल धारा में लाने के लिए प्रेरित करते हैं, वे सभी हिन्दू हैं.


हिन्दू राष्ट्र तभी बनेगा जहां पर इन मान्यताओं को मानने वाले लोग होंगे. हो सकता है कि उसकी आस्था वेटिकन सिटी की तरफ होगी. कुछ लोगों की आस्था हो सकता है कि मक्का-मदीना की तरफ होगी. कुछ लोग चर्च, कुछ मंदिर और कुछ मस्जिदों में जाते हैं. हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन, अपने मूल को उन्होंने नहीं छोड़ना है. पूर्वज हमारे सबके एक हैं. इस बात को समझना पड़ेगा. हम कोई विदेशी आयातित लोगों की संतान नहीं है. ये बात भी माननी पड़ेगी. हम कई अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक नहीं हैं, ये भी समझना होगा. 


कई धड़ों में बांटने की कोशिश हुई


जातिगत आधार पर जिस तरह से विभेद पहले मुगलों ने फिर अंग्रेजों ने किया और स्वाधीनता संग्राम के बाद तत्कालीन कुछ पार्टियों ने किया, समाज को बांटने-छांटने का प्रयास किया, और विदेश फंडिंग के जरिए जिस तरह के षडयंत्र चल रहे हैं, उसने कई धड़ों में इस देश को बांटने की कोशिश की. इसीलिए, भारत के विभाजन भी हुए. उन मान्यताओं के आधार पर, जो कि खोखली थी, आज जो लोग भारत से अलग हो गए आज देखिए उनकी क्या स्थिति है और भारत की क्या स्थिति है.


ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अपने मूल परंपराओं पर जीता है. भारत अपनी मूल मान्यताओं के अनुसार करता है. भारत के अंदर रहने वाले लोग भारतीयता से ओत-प्रोत होते हैं और राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर काम करते हैं. आज अगर कोई मुझसे पूछे कि हिन्दू और भारत में आप सबसे पहले किसे प्राथमिकता देंगे, तो मैं गर्व से कहता हूं कि भारत मेरा राष्ट्र है और राष्ट्र ही सर्वोपरि है, ये हमारा सिद्धांत है. लेकिन, इसी सवाल को आप किसी और से पूछ लेंगे तो उसका मन कहीं और भटक जाता है. कभी-कभी कुछ लोग अपने पूर्वज को बाबर और हुमायूं से जोड़ने लग जाते हैं. ये जानते हुए कि वे उनके पूर्वज नहीं है. इसी मानसिकता को बराबर करना है. उसको ठीक कर भारतीय मानसिकता से जीना है. शायद यही परिल्पना है कि भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाना है.


क्या होगी दलितों-मुसलमानों की भूमिका


हमारे हिन्दू राष्ट्र कि परिकल्पना में कोई दलित नहीं, कोई सवर्ण नहीं है और कोई अछूत नहीं है, न कोई जेहादी नहीं है. इन सब विकृत मानसिकताओं को खत्म कर ही हिन्दू राष्ट्र का साकार किया जा सकता है. इस देश को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक से निकलना होगा. देश में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के नाम पर जो बांटने-छांटने की नीति राजनीतिक पार्टियां चल रही है, अब उसे खत्म करने की आवश्यकता है. अल्पसंख्यक मंत्रालय, अल्पसंख्यक स्कीम समाप्त कर सभी योजनाएं सभी के लिए चलाई जानी चाहिए. दुर्भाग्यवश जो सुविधाओं से वंचित रह गए, उन्हें वो मिलनी ही चाहिए.




[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये आर्टिकल VHP के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल से बातचीत पर आधारित है.]