गुजरात विधानसभा चुनाव का सबसे बड़ा सस्पेंस खुल गया है. इसके साथ ही एक और बड़ा सस्पेंस शुरू भी हो गया. पाटीदारों को आरक्षण देने की मांग कर रहे हार्दिक पटेल ने आखिरकार कांग्रेस के आरक्षण फार्मूले पर यकीन कर लिया. अब वह बीजेपी के खिलाफ होंगे यानि कांग्रेस के पक्ष में होंगे. हार्दिक पटेल का दावा है कि पटेलों का साथ मिलने से ही दो साल पहले कांग्रेस को गुजरात के पंचायत चुनावों में भारी सफलता मिली और विधानसभा चुनावों में भी ऐसा ही होगा. हार्दिक कह रहे हैं कि चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस पाटीदारों को आरक्षण देने के लिए सर्वे करवाएगी. यानि मामला पिछड़ा वर्ग आयोग को सौंपा जाएगा जो तय करेगा कि गुजरात के पटेल क्या सामाजिक और शैक्षणिक रुप से इतने पिछड़े हैं कि उन्हें ओबीसी में शामिल किया जा सकता है. हार्दिक साथ में यह भी कह रहे हैं कि 50 फीसद के तहत ही पटेलों को ओबीसी जैसा आरक्षण दिया जा सकता है. हार्दिक का कहना है कि सर्वे करवाने के लिए बीजेपी कभी सहमत नहीं होती थी लेकिन कांग्रेस इस पर तैयार हो गयी है.


कुल मिलाकर हार्दिक ने कांग्रेस के जिस आरक्षण फार्मूले को स्वीकारा है वह इस तरह है. एससी एसटी और ओबीसी को मिलने वाले 49 फीसदी आरक्षण में बिना बदलाव किए कांग्रेस पाटीदारों को आरक्षण देगी. कांग्रेस की सरकार आने पर संविधान के अनुच्छेद 31 सी और 46 के प्रावधानों पर आधारित बिल विधानसभा में पारित करवाया जाएगा. इस बिल के तहत जिस समाज का अनुच्छेद 46 में जिक्र है और जिन्हें 15(4) और 16(4) के तहत आरक्षण का लाभ नही मिला है उनको शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए स्पेशल कैटगरी बनाई जाएगी ताकि उन्हें ओबीसी वाली सुविधा मिल सके.


इस कानून के तहत स्पेशल कैटगरी में जिनको शामिल करना है उसके लिए कमीशन बनेगा और वही सभी पक्षों से बात करेगा. यह सारा मसौदा कांग्रेस के घोषणापत्र का हिस्सा रहेगा.


अब आरक्षण के विधि पक्ष को समझने वाले जानकार ही बता सकते हैं कि क्या कांग्रेस के फॉर्मूले के तहत पाटीदार गुजरात में आरक्षण का लाभ उठा सकते हैं. लेकिन इतना तय है कि जब तक कि पटेलों को गुजरात का पिछड़ा वर्ग आयोग शैक्षणिक और सामाजिक रुप से पिछड़ा हुआ नहीं मानता तब तक उन्हें किसी भी कीमत पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. रही बात संविधान के अनुच्छेदों की तो यह सब तब चर्चा में आएंगे जब पटेल ओबीसी लायक घोषित किए जाएंगे. जो पटेल गुजरात में बीजेपी की सरकार बनवाने का दावा करते रहे हैं और कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने का दम ठोंकते रहे हैं वह ओबीसी में किस तरह शरीक हो पाएंगे यह देखना दिलचस्प रहेगा. लेकिन यहां कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए. राजस्थान में जब 1999 में जाटों को ओबीसी में आरक्षण दिया गया था तब उन्हें भी आर्थिक , सामाजिक और शैक्षणिक रुप से मजबूत माना जाता था. तब जाट खुद दावा करते थे कि विधानसभा की 200 में से चालीस सीटों पर उनका कब्जा रहता है , लोकसभा की 25 में से 8 सीटें जाट जीतते हैं. जब राजस्थान में जाट ओबीसी में आ सकते हैं तो गुजरात में पटेल भी आ सकते हैं.


सवाल उठता है कि ऐसे में क्या कल्पेश ठाकौर जैसे ओबीसी नेता मान जाएंगे. क्या गुजरात की चालीस फीसद ओबीसी आबादी पटेलों को अपने कोटे में से हिस्सा देने को तैयार हो जाएगी. क्या कोई बीच का रास्ता संभव है. यहां हम फिर राजस्थान की बात करते हैं. जाटों को ओबीसी में शामिल करने पर ओबीसी में शामिल गुर्जर नाराज हो गए थे. उनका कहना था कि जाट सारी मलाई खा जाएंगे और गुर्जर मुंह ताकते रहे जाएंगे लिहाजा गुर्जरों ने खुद को अनुसूचित जन जाति में शामिल करने की मांग की. उनकी इस मांग पर अनुसूचित जनजाति ( एसटी ) में शामिल मार्शल कौम मीणा जाति नाराज हो गयी. उसने साफ मना कर दिया कि गुर्जरों को एसटी में डाला गया तो खूनखराबा होगा. कुल मिलाकर गुर्जरों और मीणाओं का सदियों का सामाजिक ताना बाना उखड़ गया. अब गुजरात भी क्या उस जातीय संघर्ष की तरफ बढ़ रहा है.


वैसे हार्दिक पटेल के बयान के बाद बीजेपी को एक सच स्वीकारना पड़ेगा. बीजेपी नेता नितिन पटेल ने कहा कि जब तय है कि संविधान के तहत पचास फीसद से ज्यादा आरक्षण किसी भी कीमत पर नहीं दिया जा सकता और ऐसे में कांग्रेस सिर्फ मूर्ख बना रही है. नितिन पटेल ने भी राजस्थान का उदाहरण दिया जहां गुर्जर समेत पांच जातियों को स्पेशल बैकवर्ड क्लास के तहत पांच फीसद आरक्षण दिया गया जिसके कारण सीमा पचास फीसद पार कर गयी और सुप्रीम कोर्ट ने उसपर रोक लगा दी. अब किसी को नितिन पटेल से पूछना चाहिए था कि गुजरात में जब उनकी ही बीजेपी सरकार ने पटेल समेत अन्य जातियों को दस फीसद आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का बिल विधानसभा पारित करवाया था तब क्या उन्हें यह पता नहीं था कि पचास फीसद से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता. नितिन पटेल से पूछा जाना चाहिए कि तब क्या बीजेपी ने पटेलों को गुमराह करने की कोशिश नहीं की जैसी कोशिश उनके अनुसार इस समय कांग्रेस कर रही है. बीजेपी गुजरात में है , बीजेपी केन्द्र में है. होना तो यह चाहिए था कि गुजरात सरकार केन्द्र से पटेलों को आरक्षण देने के बिल को संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल करने को कहती. ऐसा होने पर बिल अदालत में चुनौती देने से बच जाता. लेकिन पटेलों को लेकर न तो गुजरात सरकार ने ऐसा अनुरोध किया , गुर्जरों को लेकर राजस्थान सरकार ने ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया , जाटों को लेकर हरियाणा सरकार ने ऐसा अनुरोध नहीं किया , मराठों को लेकर महाराष्ट्र सरकार ने ऐसा कोई अनुरोध नहीं किया. नतीजतन आरक्षण के सारे बिल हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाकर अटक गये.


कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि पटेलों को फिर झुनझुना थमाया जा रहा है. अंतर सिर्फ इतना है कि इस बार बीजेपी की जगह कांग्रेस यह काम कर रही है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)