यूपी में आखिरी चरण में पीएम मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में भी वोट डाले जाने हैं. बीजेपी और संघ ने यहां की सभी सीटें जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. दर्जन भर मंत्री जहां शहर में डेरा डाले हुए हैं वहीं खुद मोदी तीन दिन वाराणसी में गुजार रहे हैं. वाराणसी में शत प्रतिशत सफलता मोदी की सियासी प्रतिष्ठा का सवाल बन गयी है. पिछले ढाई सालों में मोदी वाराणसी को बदल देने की बात लगातार करते रहे हैं.


ऐसे में शहर की कम से कम पांचों सीटों पर बीजेपी का परचम लहराना ही चाहिए. यहां आखिरी चरण यानि 8 मार्च को वोट डाले जाएंगे. पिछली बार यहां की आठ सीटों में से तीन बीजेपी के पास थी. जाहिर है कि इस बार आठों की आठों सीटे जीतना मोदी का लक्ष्य होगा. लेकिन क्या ऐसा हो सकेगा. क्या मोदी का काम सर चढ़ कर बोलेगा. दो दिन वाराणसी शहर में गुजारने के बाद निचोड़ यही है कि भले ही वहां के लोग मोदी के विकास कामों के प्रति बहुत ज्यादा संतुष्ट नहीं हो लेकिन मौटे तौर पर अभी भी मोदी के साथ हैं. लेकिन जब वोट देने की बात आती है तो विकास पर जातिवाद हावी हो जाता है. एक ही घाट पर पंडित का वोट किसी एक दल को जा रहा है तो निषाद का किसी दूसरे दल को. घाट पर रिश्तेदार का दाह संस्कार करने आए किसी अन्य ही दल को वोट देने की बात करते हैं.


बनारस में गंगा किनारे अस्सी घाट पर सुबह ए बनारस की छटा निराली होती है. किसी शास्त्रीय गायक की मधुर आवाज या फिर कानों में रस घोलने वाला वीणा वादन. आप उस संगीत में खोने ही लगते हैं कि आपकी नजरें सुबह-ए-बनारस के पीछे की तरफ सौ मीटर दूर गंगा किनारे की तरफ जाती है. वहां लोग खुले में शौच करते और गंगा में कपड़े धोते नजर आ जाते हैं. आप वहां से नजरें हटाते हैं और घाट की सीढ़ीयां उतर गंगा किनारे चले जाते हैं. वहां लोग स्नान कर रहे हैं, पिंडदान करवा रहे हैं, हवन में लीन हैं. बची हुई पूजा सामग्री, फूल मालाएं, पॉलीथीन की थैलियां वहीं छोड़ लोग हर हर गंगे का नारा लगा गरम चाय पीने लगते हैं. जगह-जगह कचरा दिखता है. कुत्ते उस कचरे के ढेर में भोजन तलाशते दिख जाते हैं.


अस्सी घाट पर ही ट्रैक सूट में टहलते हुए मिले सुबोध. एक निजी कंपनी में एरिया मैनेजर. पिछले बीस सालों से घाट पर घूमने आ रहे हैं. कहने लगे कि पहले सभी घाट गंदे हुआ करते थे लेकिन अब कम से कम अस्सी घाट से राजेन्द्र घाट तक तो सफाई दिखती है. इसके लिए मोदीजी का शुक्रिया अदा करते हैं लेकिन साथ ही कहते हैं कि मोदीजी ने जो वादे किए थे उसका बीस फीसद काम ही पूरा हुआ है बाकी अस्सी फीसद बकाया है. उनसे आगे एक स्वयंसेवी संगठन के युवक दिखे. गंगा किनारे की गंदगी को साफ करते और उसका ढेर लगाते. इनमें सन्नी भी हैं. बताते हैं कि कचरे के ढेर को नाव आ कर ले जाएगी. नाव सारा कचरा राजेन्द्र घाट में कूड़े की गाड़ी तक ले जाएगी. वहां से कचरा शहर से बाहर ले जाया जाएगा.


सन्नी को दुख है कि यहां हवन आदि करवाने वाले यजमानों और पंडितों दोनों को समझाने के सारे प्रयास निष्फल ही साबित हुए हैं. नजदीक ही काशी हिन्दु विश्वविद्दालय से रिटायर हुए पंडित अनंत कुमार गौड़ मिले. कहने लगे कि वह रोज सुबह आधा घंटा गंगा किनारे सफाई करते हैं और यह सिलसिला पिछले 48 सालों से चला आ रहा है. एक बार एक महिला को फूल मालाएं गंगा में डालने से रोका तो कहने लगी कि तुम क्या यहां के ठेकेदार हो, एक अकेली औरत को अकेला देख कर डराते हो, शर्म नहीं आती. ऐसे में गंगा को साफ करने की नमामि गंगे योजना का क्या होगा...इस पर वह मुस्करा कर रह जाते हैं.


गंगा किनारे से दोबारा सुबह ए बनारस स्थल पहुंचे तो योग अपने अंतिम चरण में चल रहा था. योगीराज विजयप्रकाश मिश्रा से बात हुई. वह कहने लगे कि नजदीक ही अस्सी का नाला है जहां से रोज करोड़ों लीटर गंदा पानी सीधे गंगा में समा रहा है. शहर से तीस करोड़ लीटर गंदा पानी हर रोज निकलता है. लेकिन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ( एसटीपी ) सिर्फ दस करोड़ बीस लाख लीटर गंदे पानी को ही साफ कर पाता है. बाकी का बीस करोड लीटर गंदा पानी शहर के अस्सी नाले जैसे छोटे बड़े 37 नालों के जरिए गंगा में सीधे मिल जाता है. पिछले ढाई साल में नया एसटीपी लगाने का काम आगे नहीं बढ़ा है. कुछ जगह जरुर पम्पिंग स्टेशन बनाए जा रहे हैं जो नालों के गंदे पानी को पुराने एसटीपी तक पहुंचाने का काम करेंगे.


योगीराज के पास खड़े पंडित भवानी मिश्र हमारा बातें गौर से सुन रहे थे. बीच में कूद पड़े. कहने लगे कि वह 75 साल के हैं और आखिरी बार गंगा में डुबकी बीस साल पहले लगाई थी. कभी कांग्रेस के घोर समर्थक हुआ करते थे लेकिन अब मोदीजी के मुरीद हैं लेकिन अंधभक्त नहीं. कहने लगे कि राजेन्द्र घाट से आगे गंदगी इस कदर है कि वहां जाना दूभर है. अस्सी घाट को शोरुम की तरह सबको दिखाया जा रहा है क्योंकि यही तक सीधे गाड़ी आती है. बाकी घाटों का हला बुरा है और किसी का भी उस तरफ ध्यान नहीं है. पंडितजी वैसे इस बात से खुश हैं कि मोदीजी के आने के बाद गंगा में नावें घूमने लगी हैं जो नदी में बहाए शवों को निकाल कर मर्णिकर्णिका के घाट पर ले जाती हैं. जानवरों की लाशें भी गंगा से हटाई जा रही हैं. उनके अनुसार गंगा किनारे के सभी शवदाह गृह बंद कर दिए जाने चाहिए.


वाराणसी का नाम दो नदियों पर पड़ा है. अस्सी और वरुणा. मोदी ने अगर अस्सी घाट को सजाया है तो वरुणा घाट पर रिवर फ्रंट बनवा रहे हैं अखिलेश यादव. 219 करोड़ की परियोजना है. वरुणा नदी में गिरने वाले नालों का गंदा पानी फिल्टर भूमिगत पाइपों से एसटीपी तक पहुंचाया जा रहा है ताकि वरुणा को साफ किया जा सके. दोनों तरफ सीढ़ियां भी बनाई जा रही हैं. यहीं घाट पर घूमते हुए मिल गये कुमद सिंह. बीए कर रहे कुमद बताने लगे कि पहले अखिलेश ने काम क्यों नहीं करवाया.


मोदीजी के गंगा को साफ करने के अभियान के बाद ही वरुणा की याद आई अखिलेश को. उनके साथी विजय सिंह ने जोड़ा कि मोदीजी सारा पैसा राज्य सरकार को भेज रहे हैं लेकिन अखिलेश यादव सरकार वाराणसी में काम अटका रही है ताकि बीजेपी को चुनावों में नुकसान उठाना पड़े. लेकिन दोनों से जब रोजगार के बारे में पूछा गया तो दोनों ने एक स्वर में मोदी और अखिलेश को कोसना शुरु कर दिया. कहने लगे कि हम बेरोजगारों की किसी दल को चिंता नहीं है. सबका विकास के सुनहरे सपने दिखा कर चुनाव जीतना चाहते हैं लेकिन दोनों में से किसी के पास हमारे लिए कोई योजना नहीं है.


अस्सी घाट से मुख्य शहर की तरफ चले तो छोटी गलियों में कूड़े के ढेर भी नजर आए और सफाई कर्मचारी भी. कचरा पात्रों के आसपास कचरा बिखरा नजर आया जहां गाएं पोलीथीन खाती नजर आई. मुख्य सड़कें कमोबेश साफ नजर आईं. वहां सफाई कर्मचारी भी ज्यादा थे. शहर की बीस लाख की आबादी है. रोज 600 मीट्रिक टन कचरा निकलता है. सफाईकर्मियों की संख्या 2700 है और लगभग इतनों की कमी भी बताई जाती है. ज्यादातर लोग सफाई से संतुष्ट नजर आए और साथ ही यह भी कहते सुने गये कि सफाई तो लोगों को खुद ही करनी है. कचरा सड़क पर नहीं फैंके, कचरा पात्रों का इस्तेमाल करें इसका ख्याल तो लोगों को ही करना है. शहर के बहुत से हिस्सों में कहीं फ्लाई ओवर के बनते तो कहीं सड़क के चौड़े होने के कारण जाम मिला. पहले सीवेज लाइन खोदी जा रही थी तो जाम मिलता था अब फ्लाई ओवर बनने के कारण जाम और धूल. लेकिन लोगों का यही कहना है कि थोड़ी तकलीफ तो उठानी ही पड़ेगी. अलबत्ता बिजली के खंभों पर तारों की जाल दिखा. एक वायदा तारों को भूमिगत करने का था लेकिन इस दिशा में दस फीसद भी काम नहीं हुआ है.


वाराणसी के सांसद प्रधानमंत्री मोदी ने सांसद कार्यालय भी खोल रखा है. इसे मिनी पीएमओ भी कहा जाता है. यहां रोज औसतन सौ से ज्यादा शिकायतें आती हैं. इन दिनों तो चुनाव के कारण बंद पड़ा है कार्यालय और चुनावी गतिविधियों के लिए ज्यादा काम आ रहा है. यहां मिले पदाधिकारी राकेश वशिष्ठ. उनका कहना था कि जमीन, सड़कों, नालियों, अवैध निर्माण से लेकर पारिवारिक पड़ौसी झगड़ों तक की शिकायतें लोग करते हैं. इसके आलावा रेलवे स्टेशन चमक रहा है. ट्रोमा अस्पताल नया नया खुला है और यहां आने वाले मरीज मोदजी के गुणगान करते नहीं दिखते.


जब सब कुछ इतना खुशनुमा है तो यहां की आठों सीटों को लेकर बीजेपी को आश्वस्त हो जाना चाहिए. मोदीजी को प्रतीक के रुप में सिर्फ एक ही रैली करनी चाहिए लेकिन यह क्या. बनारस में अमित शाह डेरा डाले हुए हैं, मोदी सरकार के एक दर्जन से ज्यादा मंत्री रोज शहर में कहीं पत्रकारों से रुबरु हो रहे हैं तो कहीं जनता से. खुद मोदी तीन दिन के बनारस दौरे पर हैं. मोदी के संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की पांच सीटें आती हैं.


कहा जा रहा है कि इसमें से एक को छोड़ कर बाकी में कांटे की टक्कर है. पिछली बार बीजेपी ने तीन सीटें जीती थी और इस बार इरादा सभी सीटों पर कमल खिलाने का है. इसे पूरा करने के लिए संघ ने भी पूरा जोर लगा दिया है. संघ से पिछले तीस सालों से जुड़े प्रेम प्रकाश गिरी का कहना है कि मुकाबल कांटे का है और मोदी की सियासी साख दांव पर है. साफ है कि चूंकि यूपी में बीजेपी मोदी के चेहरे और जादू के भरोसे हैं लिहाजा यहां की पांच सीटे पूरे यूपी की 403 सीटों पर भारी पड़ रही हैं.