समाजवादी पार्टी में बाप बेटे का झगड़ा उस मोड़ पर आ गया है जहां से वापस आना लगभग नामुमकिन हो गया है. मुलायम सिंह ने साफ तौर पर अखिलेश यादव को अपनी राजनीति के दंगल से बेदखल कर दिया है. वह कहते हैं कि चुनाव के बाद मुख्यमंत्री का चयन विधायक करेंगे. यह अकेला वाक्य ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को किनारे पर ला देता है.


सामान्य तौर पर देखा गया है कि मुख्यमंत्री के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाता है. मुख्यमंत्री अपने पांच साल के कार्य़काल को जनता के सामने रखते हैं और उसके आधार पर ही वोट मांगते हैं. जाहिर है कि जीतने पर उन्हे ही दोबारा मुख्यमंत्री बना दिया जाता है. वोटर को भी पता होता है कि जीतने की हालत में कौन मुख्यमंत्री होगा और पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी पता होता है कि किसे मुख्यमंत्री बनना है. लेकिन यहां तो मुलायमसिंह यादव गजब किए हुए हैं. वह कह रहे हैं कि यूपी विधानसभा चुनाव किसी को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर के नहीं लड़ा जाएगा. वह कह रहे हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी जनता ने उन्हे वोट दिया था और उन्होंने ही अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाया था.


इन सब बयानों का क्या मतलब निकलता है इसे समझना बहुत मुश्किल नहीं है. मुलायम सिंह यादव बचपन में कुश्ती लड़ा करते थे और अखिलेश को पता लग गया होगा कि बाप ने कैंची दांव चला दिया है जिससे निकलना इतना आसान नहीं है.

भाई शिवपाल यादव को यूपी प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा चुका है. वह अखिलेश के कुछ समर्थकों को पद से हटा चुके हैं. कुछ जगह टिकट भी बदल दिया गया है. अखिलेश को प्रजापति जैसे नेता को फिर से मंत्री बनाना पड़ा जिसे वह निकाल चुके थे. जो कुछ बचा खुचा था उस पर भी मुलायम सिंह ने पानी फेर दिया है. अब किस मुंह से चुनाव प्रचार में उतरेंगे अखिलेश जिनके घर का नाम टीपू है. अब किस हैसियत से अखिलेश यादव पार्टी के अंदर बैठेंगे. अगर अखिलेश टिकट तय नहीं कर सकते, अगर अखिलेश के चुनाव जीतने के बाद भी मुख्यमंत्री बनना तय नहीं है, अगर अखिलेश अपने ही समर्थकों का बचाव नहीं कर सकते तो किस बात के नेता है.


ऐसी धारणा अगर सपा कार्यकर्ता बनाता है तो इसका बड़ा सियासी नुकसान टीपू को उठाना पड़ सकता है. कहते हैं कि सरकार का इकबाल होता है. यहां तो यह भी जाता रहा है ऐसा लग रहा है. आम वोटर की नजर में अखिलेश को सहानुभूति मिल सकती है लेकिन क्या वोट भी मिलेगा इसमें संदेह है. लोग कहेंगे कि बेटे को बाप चाचाओं ने काम नहीं करने दिया. लोग कहेंगे कि बेटे को काम करने दिया जाता तो वह बहुत आगे जा सकता था.


यादव वोटर मुलायम के नाम पर वोट देता आया है. इस बार भी देगा लेकिन सिर्फ यादव वोट से सत्ता हासिल नहीं की जा सकती. रही बात मुस्लिम की तो वह ऐसी पार्टी को ही वोट देगा जो उसकी नजर में सत्ता में आ सकती है. समाजवादी पार्टी में जिस तरह से टकराव का दौर चल रहा है उसे देखते हुए मुस्लिम वोट क्या उसके साथ जाना पसंद करेगा.


मायावती इसे समझ रही है. तभी वह अपनी सभाओं में लगातार यही कह रही है कि मुस्लिमों को सपा के साथ जाकर अपना वोट खराब नहीं करना चाहिए और हाथी पर सवार हो जाना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो दलित और मुस्लिम वोटों का संगम मायावती को पांचवी बार यूपी का मुख्यमंत्री बना सकता है. कुल मिलाकर समाजवादी पार्टी की कलह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है.


यूपी में मुख्य मुकाबला बीजेपी और बीएसपी के बीच ही है. ऐसे में सपा के झगड़े के बाद अगर मुस्लिम वोटों का मायावती की तरफ रुझान होता है तो बीजेपी को ही इसका खामियाजा उठाना पड़ेगा. अलबत्ता अगर मुस्लिम वोट का बंटवारा होता है तो बीजेपी फायदे की स्थिति में होगी.