BLOG: मुद्दों से ध्यान भटकाना, लटकाना, अटकाना उर्फ कांग्रेसी विरुद्ध भाजपाई उपवास
इसमें कोई शक नहीं कि लजीज पंजाबी छोले-भटूरे की चंद प्लेटों ने 9 अप्रैल को राहुल गांधी के राजघाट वाले उपवास का जायका बिगाड़ दिया था. देश के बिगड़ते माहौल की चिंता करने के लिए उपवास रखने की सुबह अगर कांग्रेसी नेताओं के सामूहिक नाश्ते की तस्वीर वायरल न हुई होती तो इस उपवास का असर ज्यादा व्यापक और गंभीर हो सकता था.
इसी कड़ी में देखिए कि विपक्ष द्वारा संसद की कार्रवाई न चलने देने को लेकर आज पीएम मोदी और भाजपाध्यक्ष शाह समेत भाजपा के बड़े नेता राजनाथ सिंह, रविशंकर प्रसाद, निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल, प्रकाश जावड़ेकर, अनंत कुमार, जेपी नड्डा, धर्मेंद्र प्रधान, महेश शर्मा, विजय गोयल, केजे अलफोंस, मनोज तिवारी देश के अलग-अलग हिस्सों में और लघुतम भाजपा नेता जिलों में उपवास कर रहे हैं. कल्पना कीजिए कि कांग्रेस के उपवास के मुकाबले भाजपा के इस अखिलभारतीय उपवास से देश में कैसा माहौल बनेगा. उम्मीद है कि पार्टी ने उपवास से पहले छिप कर पार्टी करने के प्रति अपने नेताओं को सावधान किया ही होगा!
दलितों पर बढ़ते अत्याचार और हिंसा के अहम मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी के सामूहिक उपवास से कुछ समय पहले अगर उसके नेताओं की छोले-भटूरे का सेवन करने वाली तस्वीरें मीडिया में आ जाती हैं तो मुद्दे की गंभीरता हवा होनी ही थी. वह तस्वीर दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना के बेटे और भाजपा नेता हरीश खुराना ने जिस उद्देश्य से ट्वीट की थी, उनका वह उद्देश्य सफल रहा.
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने खुद स्वीकार किया था कि उपवास के निर्धारित समय से पहले वे लोग नाश्ता कर ही रहे थे कि किसी ने फोटो क्लिक कर ली. तस्वीर में नजर आ रहे वरिष्ठ कांग्रेस नेता हारून यूसुफ ने सफाई दी कि वह तो रोजा रखने से पहले भी खाते हैं. उनके सामने बैठे अरविंदर सिंह लवली ने साफ कह दिया कि यह 'प्रतीकात्मक' उपवास था, कोई निर्जला व्रत नहीं! एक कांग्रेसी नेता का कहना था कि करवा चौथ का व्रत रखने से पहले भी महिलाएं सुबह कुछ खा ही लेती हैं! नतीजा यह हुआ कि भाजपा कांग्रेस के उपवास को 'नौटंकी' और दलितों के प्रति 'क्रूर मज़ाक' करार देने में कामयाब हो गई.
अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दो अप्रैल को हुए 'भारत बंद' से बने हिंसक माहौल का शमन करना कांग्रेस के उपवास का उद्देश्य था. कांग्रेस शायद प्रधानमंत्री मोदी और भाजपाध्यक्ष अमित शाह के प्रस्तावित उपवास से तीन दिन पहले ही उपवास करके भाजपा के उपवास कार्ड को पीटना चाहती थी, क्योंकि संसद की कार्यवाही ठप करने का ठीकरा विपक्ष के सर फोड़ना भाजपा के आज रखे गए उपवास का मूल उद्देश्य है. यह उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली स्थिति है क्योंकि सत्तारूढ़ पार्टी होने के नाते भाजपा जानती है कि संसद चलाने की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है न कि विपक्ष की.
टीआरएस, कांग्रेस और टीडीपी द्वारा लाए जा रहे अविश्वास प्रस्ताव से भाजपा अपने संख्या के बल के आधार पर आसानी से निबट सकती थी. लेकिन यदि इस प्रस्ताव पर चर्चा होती तो मोदी सरकार को कुछ मुश्किल सवालों के जवाब देने पड़ते. इसलिए सदन को अनुशासित रखने की सरकार की तरफ से कोई कोशिश नहीं हुई और अब यही सत्तारूढ़ भाजपा अपने उपवास को केंद्रीय मंच पर लाकर दलित-उत्पीड़न के ज्वलंत मुद्दे को नेपथ्य में धकेलना चाहती है.
वैसे भाजपा के शीर्ष नेताओं, मोदी मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों से लेकर छुटभैया भाजपा नेताओं तक के बयान उनकी 'सामाजिक समरसता' वाली राजनीति की पोल स्वयं खोल देते हैं. केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े संविधान बदल देने की बात करते हैं और यूपी की योगी सरकार बी.आर. आम्बेडकर के नाम में पिता का नाम राम जी जोड़ देती है. यूपी में आम्बेडकर की प्रतिमा टूटने के बाद उसे भगवा चोला पहना कर खड़ा किया जाता है! यह आम्बेडकर और दलितों के सम्मान का नया भाजपाई तरीका है.
दलितों पर बढ़ता अत्याचार एक कड़वी सच्चाई हैं. यही वजह है कि खुद भाजपा के दलित सांसद भी अब अपनी बेचैनी छिपा नहीं पा रहे हैं. कहा जा सकता है कि 2 अप्रैल का भारत बंद सिर्फ एससी/एसटी एक्ट को शिथिल करने से उपजा असुरक्षा-बोध नहीं, बल्कि संचित गुस्से का विस्फोट था. इस बंद के दौरान हिंसा की अधिकतर घटनाएं भाजपा शासित राज्यों में ही हुईं. बंद के बाद बदले की कार्रवाई के रूप में दलितों की ही धरपकड़ की जाने लगी. बंद में शामिल दलितों की यूपी में एक बाकायदा एक हिटलिस्ट बनाई गई और एक दलित युवक की हत्या कर दी गई. डर के मारे कई दलित गांव छोड़ कर भाग गए हैं.
ऐसे दलित-विरोधी हिंसक माहौल में शांतिपूर्ण उपवास के जरिए, वह भी गांधी जी की समाधि राजघाट से देश को एक संदेश देने का कांग्रेसी आइडिया बुरा नहीं था, लेकिन कांग्रेसियों की अपरिपक्वता ने सारे किए कराए पर पानी फेर दिया. जहां भाजपा शासित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को घिरना था वहां कांग्रेस खुद अविश्वसनीयता और अगंभीरता के घेरे में आ गई.
गौर करने की बात यह भी है कि 2 अप्रैल को किए गए दलितों के भारत बंद पर प्रधानमंत्री मोदी जी ने चुप्पी साधे रखी. हां, 10 अप्रैल को हुए सवर्णों के आरक्षण विरोधी बंद के दिन ही महात्मा गांधी के चम्पारण सत्याग्रह की याद में आयोजित समारोह में मोदी जी ने यह बयान जरूर दिया कि विपक्ष सरकार के काम में रोड़ा अटका रहा है, लेकिन अब भटकाने, लटकाने, अटकाने से काम नहीं चलेगा.
कभी महात्मा गांधी ने उपवास की सुचिता और ताकत से महाबली अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. अब भाजपा और कांग्रेस उपवास की लाठी से एक-दूसरे के दांत तोड़ने में लगी हुई हैं. लेकिन रोजी-रोटी की जगह छोले-भटूरे को केंद्र में रख कर कांग्रेस के उपवास का उपहास तो किया जा सकता है, पर सत्ता पक्ष द्वारा उपवास रखकर देश में दलितों और एससी/एसटी के खिलाफ बन रहे हिंसक माहौल की सच्चाई से ध्यान नहीं भटकाया जा सकता.
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