नई दिल्लीः कुलभूषण जाधव मामले में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस का फैसला पाकिस्तान के शैतानी रवैए के खिलाफ भारत की एक बहुत बड़ी जीत है. पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आदि ने इस फैसले का जोरदार स्वागत किया है लेकिन पाकिस्तान को शर्म नहीं आती. आईसीजे में मुंह की खाने के बावजूद पाकिस्तान के पीएम इमरान खान इस फैसले को कुतर्क के साथ अपनी जीत बताने में लगे हुए हैं कि अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने कुलभूषण को रिहा करने या भारत को सौंपने के आदेश नहीं दिए हैं और पाकिस्तान कानून के मुताबिक आगे बढ़ेगा. साफ है कि कुलभूषण को आसानी से छोड़ने का उसका इरादा नहीं है. लेकिन पाकिस्तान इसलिए घबराया हुआ है कि जाधव वाले फैसले से भारत और पाकिस्तान के बीच 40 अन्य मामले भी प्रभावित होंगे.


यह सही है कि आईसीजे ने जाधव को रिहा करके तत्काल भारत भेज देने का आदेश नहीं दिया है लेकिन उनकी फांसी पर रोक लगाते हुए पाकिस्तान को अपने फैसले पर फिर से विचार करने का आदेश तो दिया ही है. इतना ही नहीं, पाकिस्तान को काउंसलर संबंधों वाले वियना समझौते का उल्लंघन करने के लिए फटकार लगाते हुए यह भी टिप्पणी की है कि जाधव को काउंसलर एक्सेस मिलना चाहिए था और यह उसका अधिकार है, जो पाकिस्तान ने कभी नहीं दिया.


प्रमुख न्यायाधीश अब्दुलकावी अहमद यूसुफ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इस मामले का दोबारा ट्रायल होना चाहिए और जाधव को काउंसलर एक्सेस मिलनी ही चाहिए. पाकिस्तान की सभी दलीलों को खारिज करते हुए जाधव के पक्ष में 15-1 से फैसला हुआ है लेकिन वह अपनी टांग ऊंची दिखाने के चक्कर में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के बीच हंसी का पात्र बन गया है.


जासूसी करने के आरोप में गिरफ्तार हुए ते जाधव


नेवी के रिटायर्ड अफसर जाधव को 3 मार्च 2016 के दिन ही पाकिस्तान ने आतंकवाद फैलाने और जासूसी करने के आरोप में बलूचिस्तान से गिरफ्तार कर लिया था जबकि भारत को इस बारे में 24 मार्च को सूचना दी थी. भारत का दावा है कि जाधव कारोबार के सिलसिले में ईरान गए हुए थे. पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने भारत की तमाम अपीलें और दलीलें ठुकरा कर जाधव तक राजनयिक पहुंच देने से बार-बार इनकार करते हुए 10 अप्रैल, 2017 को उन्हें मौत की सजा सुना दी थी. मजबूरन भारत को 8 मई को आईसीजे की शरण में जाना पड़ा.


पाकिस्तान के इरादे कितने घटिया हैं यह उस घटना से जाहिर होता है जब 25 दिसंबर 2017 को उसने जाधव की मां अवंति और पत्नी चेतना मानसिक उत्पीड़न किया था और जाधव से मिलने से पहले उनके मंगलसूत्र तक उतरवा लिए थे और उन्हें मराठी व हिंदी में बोलने से रोक दिया गया था.


दरअसल इस तरह के मामले दुश्मन देशों पर मनोवैज्ञानिक जीत हासिल करने का आसान तरीका माने जाते हैं. सीमा पर सैकड़ों जवानों के शहीद होने का नागरिकों पर उतना असर नहीं होता, जितना कि कैद में बंदी का उत्पीड़न करने या उसे सजा देने से बनने वाली अंतर्राष्ट्रीय सुर्खियों का होता है. दुश्मन देश अपने बंदी छुड़ाने के लिए भी इस तरह के कैदियों को चारा बनाता है. कुलभूषण जाधव से पहले पंजाब के किसान सरबजीत सिंह को भी जासूस और आतंकवादी करार देकर पाकिस्तान ने इसी तरह भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का मोहरा बनाया था.


नहीं हुई थी ठीक से सरबजीत की पैरवी


सरबजीत के मामले में भी काउंसलर एक्सेस दिया गया था. लेकिन वो वकील पाकिस्तान से ही था और उसने ठीक ढंग से सरबजीत के मामले की पैरवी नहीं की. कुलभूषण जाधव के मामले में अच्छी बात ये है कि वकील भारतीय उच्चायोग की ओर से प्रोवाइड किया जाएगा और ऐसे में इंसाफ की उम्मीद भी जगी है. सरबजीत पर साथी कैदियों ने हमला किया किया था जिसके बाद इलाज के दौरान अस्पताल में उनकी मौत हो गयी थी.


ईरान के चाबहार में बिजनेस करने वाले भारतीय नौसेना के 49 वर्षीय पूर्व अफसर कुलभूषण जाधव को भारत का जासूस बताकर पाकिस्तान ने गहरी साजिश चली थी. भारत ने पाकिस्तान के प्रोपेगेंडा का जवाब देते हुए साफ कहा था कि उसे अगवा किया गया था.


जाधव के मामले में अंतर्राष्ट्रीय अदालत का फैसला भारत की जीत का शुरुआती कदम ही कहा जा सकता है क्योंकि अभी यह साफ नहीं है कि पाकिस्तान की जिस सैन्य अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, पुनर्विचार की सुनवाई वही अदालत करेगी, या कोई दूसरी पीठ नियुक्त की जाएगी. अंतराष्ट्रीय नजर में होने के बावजूद उस पीठ पर पाकिस्तानी हुक्मरानों का कितना दबाव रहेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि इतनी आसानी से उन्हें थूक कर चाट लेना गवारा नहीं होगा.


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सरबजीत की बहन दलबीर कौर ने अपने भाई को बचाने के लिए क्या-क्या नहीं किया था, कहां-कहां गुहार नहीं लगाई थी, किस दर पर मत्था नहीं रगड़ा था! लेकिन पाकिस्तान ने जेल में ही रास्ता निकाल लिया. ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय अदालत की राहत के बाद भी कुलभूषण जाधव के भाग्य का आखिरी फैसला होना बाकी है.


राहत की बात यह है कि सिर्फ 1 रुपए की सांकेतिक फीस लेकर कुलभूषण का केस लड़ने वाले देश के जाने माने वकील हरीश साल्वे ने वादा किया है कि अगर पाकिस्तान फैसले पर अमल नहीं करता तो वह फिर से आईसीजे का रुख करेंगे और भारत संयुक्त राष्ट्र में यह मुद्दा उठा सकता है.


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