रामनवमी पर हमने देखा कि किस तरह से पश्चिम बंगाल के हावड़ा में गुरुवार को पत्थरबाजी और अगजनी हुई. दूसरे दिन भी शुक्रवार को वहां पर पत्थरबाजी की खबर सामने आई. जबकि, जबकि देश के दूसरे हिस्सा में भी हिंसा की खबर आयी. गुजरात के वडोदरा में पत्थरबाजी हुई तो वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दो समुदाय आपस में भिड़ गए. लेकिन ऐसा नहीं है कि रामनवमी पर इस तरह की ये घटना पहली बार दिखी हो. इस तरह की घटनाएं पिछले साल भी हुईं थीं और इस साल भी हो रहे हैं. जबकि हिंसा होने की संभावना की बात प्रदेश सरकारों और प्रशासन को पहले से ही हो सकती है. लेकिन अब तो यही कहा जा सकता है कि यह पुलिस की इंटेलिजेंस फेल्योर है. दूसरी बात यह की कुछ असामाजिक तत्व हैं जो कि इस तरह की हिंसा को बढ़ावा देना चाहते हैं और एक तरह से कहा जा सकता है कि दे दिया गया है, इसके पीछे उनके कुछ खास मकसद होते हैं. वे चाहते हैं कि किसी तरह से धार्मिक भावनाओं को भड़काया जाए और देश के महौल और आपसी सद्भावना को खराब किया जाए. ये सब कुछ उनका उद्देश्य होता है.
चूंकि, मैं तो ऐसी घटना हर साल होते हुए देख रहा हूं. पुलिस इस तरह की हिंसा को रोकने के लिए जबरदस्त व्यवस्था करती थी. लेकिन फिर भी हिंसा की छिटपुट घटनाएं हो जाती थीं. लेकिन मेरा कहना है कि अगर पुलिस या प्रशासन ये चाह ले कि इस तरह की घटनाएं नहीं हो, तो बिल्कुल इस पर रोक लगाई जा सकती है. लेकिन ऐसा करने के लिए इसमें कहीं न कहीं इच्छाशक्ति की कमी दिखाई पड़ती है या फिर इंटेलिजेंस फेल्योर है कि कौन आदमी ऐसी गड़बड़ी करना चाह रहा है, जिससे की हमारे देश का सौहार्द और वातावरण खराब हो रहा है.
प्रशासन को उठाना चाहिए कदम
प्रशासन को पहले तो प्रिवेंटिव मेजर्स लेना चाहिए. पहले से ही ये चेतावनी दे दी जानी चाहिए कि अगर कोई भी इस तरह की गड़बड़ी करेगा तो उस पर सख्त से सख्त कार्रवाई होगी. इसमें ये देखा जाना चाहिए ये शुरू कहां से होता है? कौन सा ऐसा सामाजिक तत्व है जो इस तरह की हिंसा फैलाना चाहता है? चूंकि जो लोग कार्यक्रम का हिस्सा होते हैं और जुलूस निकालना चाहते हैं वो ऐसा कभी नहीं चाहते हैं. लेकिन अगर कोई आदमी गड़बड़ी करने वाला मिल जाता है तो ये भी देखा जाना चाहिए कि वह कौन व्यक्ति है? उसकी पहचान सामने आनी चाहिए. मेरे कहने का मतलब है कि इस तरह की घटना को शुरुआत में ही रोका जाना चाहिए.
दूसरी बात ये है कि पश्चिम बंगाल में जब प्रशासन ने जुलूस निकालने से मना कर दिया था तो फिर भी जुलूस निकाली गई जो कि पूरे तरीके से गैर-कानूनी है. फिर ऐसी स्थिति का लाभ तो वैसे लोग जरूर लेना चाहते हैं जो हिंसा फैलाने के पक्षधर हैं. हमें इसका भी ध्यान रखना चाहिए कि जो भी काम हो, नियम-कानून के मुताबिक जो प्रतिबंध और दिशा-निर्देश दिए गए हैं, उसका चाक-चौबंद तरीके से अनुपालन किया जाना चाहिए.
जो पहले पत्थर जमा किए जाने की बात है और कुछ लोग तो सोडे की बोतल भी रखते हैं. जब दिल्ली में उपद्रव हुआ था तो हमने देखा था कि किस तरह से पेट्रोल बम का इस्तेमाल किया गया था. उपद्रवी ऐसी तैयारी पहले से करके रखते हैं. ऐसे में तो लोकल पुलिस और इंटेलिजेंस की विफलता ही मानी जाएगी और ऐसी तैयारियों का पुलिस को भनक नहीं लगे, मैं इसे मानने को तैयार नहीं हूं. चूंकि पुलिस को तो चप्पे-चप्पे पर क्या हो रहा उसकी जानकारी तो होनी चाहिए. घटना के बाद जो राजीनितक बयानबाजी की जाती है, वह बिल्कुल आग में घी डालने का काम करती है.
तनाव बढ़ाना है उपद्रवियों का मकसद
चूंकि उपद्रव करने वाला का तो मकसद ही था वह किसी भी तरह से माहौल को खराब कर दे. उसमें जब राजनीतिक दलों के समर्थक उस पर बात करते हैं तो निश्चित रूप से विपक्षी पार्टियां भी उस पर बात करनी शुरू कर देगी और फिर मुद्दा उलझ जाता है. इस तरह की घटनाओं में बयानबाजी से बचना चाहिए. चूंकि इस तरह की घटनाओं के बाद कोई भी उल्टी-सीधी बात माहौल को और गंदा कर देता है. चूंकि, हिंसा या दंगा जब भी होता है तो उसमें किसी का भी कोई भला नहीं होता है. इससे हमेशा नुकसान होता है. चाहे वह निजी और सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान हो या किसी की भी मृत्यु हो जाए तो कुल मिलाकर सब तरफ से सिर्फ और सिर्फ नुकसान ही होना है. इसे बात को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक लोगों को राजनीतिक रोटियां सेंकने की बजाए ये देखना चाहिए की हमें राष्ट्र हित में जो कुछ हो उसे करना चाहिए.
हिंसा जब भी होती है तो उसके बाद पुलिस-प्रशासन का जो नॉर्मल फंक्शन है वो खत्म हो जाता है. चूंकि, माहौल को नॉर्मल करने के लिए अधिकतम फोर्सेज को हिंसा वाले स्थानों पर लगा दिया जाता है. निश्चित तौर पर पुलिस का काम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और वो बहुत ज्यादा अलर्ट मोड में आ जाती है. उनकी कोशिश ये होती है कि किसी न किसी तरह से इस तरह की चीजों को रोका जाए और दोबारा नहीं हो. लेकिन ये दुर्भाग्य है कि हमारे देश में लोग और राजनीति करने वाले इससे कोई सबक नहीं लेते हैं. मेरा तो मानना है कि जो लोग इस तरह की घटनाओं में दोषी पाए जाते हैं और हिंसा के दौरान जो संपत्तियों का नुकसान होता है उसकी भरपाई भी उन्हीं से की जानी चाहिए, ताकि इससे दूसरे लोगों को भी सबक मिले.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है]