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रामनवमी पर हिंसा के बाद एक्शन न लेने से ममता सरकार पर सवाल, समय रहते क्यों नहीं रोका गया बवाल

रामनवमी के मौके पर जुलूस के दौरान पत्थरबाजी, हिंसा और आगजनी की घटना हुई. किसी भी पर्व में और विशेषकर रामनवमी में इस प्रकार की घटना का होना अत्यंत आपत्तिजनक है और चिंता का विषय है. सामान्यतः देखा जाता है कि रामनवमी का त्योहार पूरी तरीके से शांतिपूर्ण ढंग से मनाया जाता है. इस बार मैं ये मानने को तैयार हूं चूंकि रामनवमी भी है, रमजान भी है और नवरात्रि का त्योहार भी था. ऐसे मौके पर हमें अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत थी. ऐसा नहीं हैं कि इससे पहले हिंसा की घटनाएं नहीं हुई हैं. लेकिन पूर्व में भी त्योहार शांतिपूर्ण तरीके से मनाया गए थे और वांछित पुलिस प्रक्रिया, व्यवस्था और इन्वोल्वमेंट अगर होती तो वाकई में इस तरह की अप्रिय घटनाएं नहीं होती. इससे बचा जा सकता था. इस पर नियंत्रण प्रभावी रूप से किया जा सकता था.

पुलिस को तो अलर्ट रहना ही चाहिए. लेकिन मैं कहूंगा कि इन पांचों प्रकरणों में स्थानीय स्तर पर पुलिस की चूक थी. पांचों प्रकरणों में मुझे बताया जाता है कि एक भी प्रीवेंटिव अरेस्ट नहीं हुई. प्रीवेंटिव एक्शन में धारा 151, 107 और 116 के अंतर्गत कार्रवाई की जाती है और जो शातिर बदमाश हैं उनके लिए पांच अभिलेखों का उल्लेख किया गया है. गुंडा रजिस्टर, साम्प्रदायिक सूचना रजिस्टर, साम्प्रदायिक गुंडा रजिस्टर और थानाध्यक्ष गोपनीय डायरी इसमें सभी त्योहारों के बारे में जो गड़बड़ी करने वाले हैं और पहले की क्या समस्याएं आईं थी और उनका निराकरण कैसे हुआ था, कितना पुलिस बल लगाया गया था और आने वाले त्योहारों में क्या सावधानियां और बरतनी चाहिए, इनका समावेश इन 5 अभिलेखों में होता है.

नहीं बरती गई मुश्तैदी

मुझे ऐसा लगता है कि गंभीरतापूर्वक इनका अवलोकन नहीं किया गया और प्रीवेंटिव अरेस्ट व कार्रवाई नहीं हुई. जो पुलिस के जो तीन अंग हैं गस्त, काराबंदी और प्रीवेंटिव एक्शन, सिक्योरिटी प्रोसिडिंग और प्रीवेंटिव एक्शन और पेट्रोलिंग, अगर ये सारी प्रक्रिया हो जाती तो छतों पर पत्थर आए कैसे? क्या यह स्थानीय पुलिस की जिम्मेदारी नहीं थी कि छतों पर पत्थर आए कैसे? मिलीजुली आबादी से अगर जुलूस निकलता होता है तो पहली चीज की जुलूस वहीं निकलता है जहां शासन और प्रशासन की अनुमति हो और परंपरा रही हो. बिना परंपरा के जुलूस नहीं निकल सकता है और बिना इजाजत लिए जुलूस नहीं निकाला जा सकता है. पत्थर अगर कहीं पर भी हो तो जिसका घर है, उसके घरवालों की गिरफ्तारी होनी चाहिए. पत्थर कैसे जमा हुए इसकी जांच की जानी चाहिए. ये तमाम मुद्दे हैं और अब तो हमारे पास ड्रोन टेक्नोलॉजी भी आ गई है तो अब इसके माध्यम से छतों की सर्चिंग मिनटों में हो सकती है, जिसे करने के लिए पहले कई दिन लग जाते थे. ये तमाम चीजें थी जिसका इस्तेमाल करके सुरक्षा के इंतजाम को भली भांति पुख्ता किया जा सकता था. वांछित अभिसूचना का संकलन हो सकता था जो नहीं हुई जिसके कारण यह पांचों के पांच दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुईं, जोकि नहीं होनी चाहिए थी.

ममता बनर्जी का हिंसा पर गैर-जिम्मेदाराना बयान

पश्चिम बंगाल में तो मैं समझता हूं कि सीएम ममता बनर्जी ने बिल्कुल गैर-जिम्मेदाराना बयान दिया है. चूंकि, मिलीजुली आबादी में जुलूस क्यों गया? हिंदुस्तान में ऐसी कोई आबादी ढूंढना मुश्किल है जो मिलीजुली न हो. उसमें अगर परंपरागत तरीके से अनुमति लेकर जुलूस जा रहा है तो उसके निकलने में कोई कानूनी अड़चन नहीं थी. ये पुलिस और प्रशासन की जिम्मेदारी थी कि वे सकुशल जुलूस को निकलवा देते और अगर इजाजत नहीं थी तो वो जुलूस को बैन कर सकते थे. दोनों परिस्थितियां थीं तो अगर प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई. राजनीतिक इच्छाशक्ति कि मुझे बिल्कुल अभाव दिखाई पड़ रहा है. अगर दोनों में तालमेल नहीं है तो भी इस प्रकार की दुर्व्यवस्था फैलती है.

सरकार किसी को चाहे भाजपा की हो या ममता की हो तो जिम्मेदारी तो उसी निर्वाचित सरकार की है जो सत्तारूढ़ है और अगर वहां कोई लोकल समस्या है तो स्थानीय पुलिस-प्रशासन की भी है. जो भी चुनी हुई सरकार है उसकी यह जिम्मेदारी है कि वे प्रभावी कानून व्यवस्था और अपराध नियंत्रण को सुनिश्चित करें. चूंकि अगर जनता ने आपको निर्वाचित किया है तो फूलप्रूफ पुलिस का सुरक्षा इंतजाम होना चाहिए.

ममता की करनी और कथनी में विरोधाभास

किसी का भी अगर परंपरागत जुलूस है और उसे निकालने की अनुमति है, चाहे वो किसी को भी और उसका त्योहार रजिस्टर में जानकारी लिखी हुई है अप्रूवल है तो वो निकाल सकते हैं. अगर ममता बनर्जी कह रही हैं कि उनकी आंख और कान खुले हैं और दंगा हो जाता है उसके बारे में किस की जिम्मेदारी है. तो उनके कथनी और करनी में बड़ा ही विरोधाभास है और यह स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है. अब तक जिन लोगों ने कानून को अपने हाथ में लिया है, हिंसा की है, पुलिस की गाड़ियों पर आक्रमण हुआ है उनके खिलाफ ऐसी कार्रवाई हो कि वो नजीर बन जाए. मैं ये जानना चाहूंगा कि किसी के ऊपर एनएसए हुआ नहीं हुआ, किसी के ऊपर 151 सीआरपीसी हुई नहीं हुई मुझे जानकारी नहीं है. इसमें मैं 147, 148, 149, 307 और अन्य सुसंगत धाराओं में 153 (ए) आईपीसी की कार्रवाई होनी चाहिए. जहां जरूरी हो सेवन क्रिमिनल लॉ को रखना चाहिए और आवश्यकता अनुसार जो रिंग लीडर हैं, जिन्होंने पत्थर इकट्ठा किये, पुलिस की गाड़ियां जलाईं उनके ऊपर रासुका के अंतर्गत उप धारा (ए), लोक व्यवस्था को भंग करने के ऊपर कार्रवाई होनी चाहिए.

राजनीतिक बयानबाजी से खराब होता है माहौल

जिस वक्त माहौल इस तरह का हो, ऐसे में राजनीतिक बयानबाजी से बिल्कुल माहौल खराब होता है और पुलिस एक नंगी तलवार हो जाती है. ऐसे में पुलिस-प्रशासन को चाहिए कि वे वही कार्रवाई करे जो कानून और संविधान सम्मत हो. राजनीति करने वाले चाहे कुछ भी बयान देते रहे. जिस बात की तनख्वाह पुलिस-प्रशासन ले रहा है, वो बिल्कुल निर्भिक होकर के कानून की जो व्यवस्था है उसके अनुसार कार्रवाई सुनिश्चित करे. ये नहीं कहा जा सकता है कि आज आप एक्शन ले लेंगे तो भविष्य में कभी कोई घटना नहीं होगी. ये कोई गारंटी नहीं ले सकता है न चीन में न इजराइल में और नहीं भारत वर्ष में. लेकिन ये हो सकता है कि जहां 10 घटनाएँ होंगी वहां एक या दो घटना होगी और लोग बहुत ही सशंकित रहेंगे. ये आप कह सकते हैं कि अगर मध्य प्रदेश में वो कड़ाई नहीं की गई होती तो वहां भी फिर से घटनाएं होती मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं अपने 36 साल के अनुभव से लेकिन अगर एक नजीर बनाकर प्रभावी कार्रवाई और सही अभियुक्तों को जेल भेजा जाए तो आप मान लीजिए कि 90 प्रतिशत आपकी समस्या खत्म हो जाएगी. 

[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]

 

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