बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने खुलेआम बयान दिया है कि ये भड़काई हुई साजिश है. लोगों को चिन्हित किया जा रहा है. जो भी बिहार दंगों में शामिल होंगे, निश्चित रूप से उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
दुर्भाग्य की बात ये है कि पवित्र दिन भगवान राम के जन्मदिन रामनवमी के मौके ये घटनाएं हुई. भारत में रहने वाला हर लोग उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम मानता है. लेकिन उनके जन्मदिन पर निकले जुलूस में अमर्यादित घटना होती है. अगर आप वीडियो देखेंगे, तो न सिर्फ़ बिहार में हिन्दुस्तान के कई जगहों पर इस तरह की हिंसा हुई. बिहारशरीफ में तो एक मदरसा को जला दिया गया, जिसमें 5 हजार बहुत पुरानी किताबें जला दी गई. हम लोगों ने भी हिंसा रोकने की कोशिश की.
बीजेपी का आचरण पहले से गड़बड़ रहा है. स्वाभाविक रूप से बिहार में जब से बीजेपी शासन से अलग हुई है, बिल्कुल सुनियोजित तरीके से वो गड़बड़ी पैदा कर रही है. उनको पता है कि सत्ता आने का कोई और तरीका नहीं है.
हर समाज में ज्यादातर अच्छे लोग रहते हैं, लेकिन कुछ न कुछ बुरे लोग भी रहते हैं. ये बुरे लोग बाकी लोगों को बहुत ज्यादा प्रभावित कर लेते हैं कि अच्छे लोगों की अच्छाई दब जाती है. अफसोस इस बात का है कि अब दंगा कराने से समाज में मान-मर्यादा मिल जाता है, वोट मिल जाता है. हर पढ़े-लिखे लोगों को ये सोचना चाहिए कि हमारा देश किस दिशा में जा रहा है. बिहार में हर आदमी जानता है कि दंगा कराने के पीछे कौन संगठन है. सबके चेहरे पहचाने हुए हैं, लेकिन उन्हें मर्यादा और प्रतिष्ठा मिल रही है. इससे ऐसे लोगों का मनोबल बढ़ रहा है.
अंग्रेज भी यही करते थे. 1857 में देश पर कब्जा कर लिया था और सत्ता को बरकरार रखने के लिए अंग्रेजों ने समाज के बड़े समुदायों हिन्दू और मुसलमानों को लड़ाकर उसके बाद 90 साल तक शासन कर लिया. शासन करने के बाद नतीजा हम सब जानते हैं. देश के दो टुकड़े हुए. दोनों तरफ लाखों लोगों की हत्या हुई. पहले जो अंग्रेज करते थे, अब वही काम कुछ नेता और उनके समर्थक करने लगे हैं. देश के आम नागरिक चिंतित हैं, लेकिन उनकी चिंता नज़र नहीं आ रही है और जो ग़लत प्रवृत्ति वाले लोग हैं, उनको मान-सम्मान मिल रहा है.
जिस दिन से नीतीश ने बीजेपी को सरकार से अलग किया है, उस दिन से बीजेपी हर मौके पर जानबूझकर कोशिश करती है कि सामाजिक ध्रुवीकरण करे. चूंकि इस देश में हिन्दू 80 प्रतिशत और मुस्लिम 17 प्रतिशत हैं और इन दोनों के बीच कोई मुकाबला नहीं हो सकता. चाहे शिक्षा हो या आबादी या फिर ताकत. लेकिन देश में आबादी के हिसाब से नंबर वन और टू यही दोनों हैं, तो इनको लड़ाने और भड़काने की साजिश की जाती है.
इससे दोनों तरफ के ग़लत लोगों को प्रोत्साहन मिल जाता है. ये एकतरफा प्रोत्साहन नहीं है. दूसरी तरफ के ग़लत लोगों को भी बढ़ावा मिल जाता है. जो इस तरह के दंगों को भड़काते हैं, वो दोनों तरफ के लोगों का इस्तेमाल इस तरह के काम के लिए करते हैं. इससे राज्य, देश और समाज का ही माहौल खराब करते हैं.
ये बात तो सही है कि राज्य के प्रशासन को चौकन्ना रहना चाहिए, लेकिन यहां साजिश हो रही है.बंगाल में भी ममता बनर्जी के खिलाफ कौन लोग हैं, ये सब लोग जानते हैं. इन जगहों पर दंगा फैलाने वाले लोगों को समाज में प्रतिष्ठा मिल रही है.
बिहार में मुख्य रूप से दो जगह बिहारशरीफ और सासाराम, बंगाल में, राजस्थान में ये कोशिश हुई है. इस कोशिश में स्थानीय लोगों का इस्तेमाल किया गया है. दोनों तरफ के एंटी सोशल एलिमेंट हैं, जिनको प्रोत्साहन देकर इस तरह के दंगों को अंजाम दिया जाता है.
हर समाज में समझदार और शांतिप्रिय लोग ज्यादा होते हैं और उपद्रवी तत्व कम होते हैं. लेकिन चूंकि मामला वोट से जुड़ गया है, तो उपद्रवी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है. लड़ाई और हिंसा से कोई फायदा नहीं है. कोई विकास नहीं हो सकता है, जब तक अमन और शांति नहीं हो. जो उपद्रवी लोग हैं, नफरत फैलाने वाले लोग हैं, उनको समाज से अलग करना चाहिए. इसमें समझदार और शांतिप्रिय लोगों की भूमिका बहुत बड़ी है.
धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए जनप्रतिनिधियों का चुनाव जनता नहीं करती है. लेकिन कुछ लोगों को लगता है कि ऐसा करने से ही वोट मिलेगा. मुझे ये कहने में कोई झिझक नहीं है कि अब देश में काम पर वोट नहीं मिलता है, भावनात्मक मुद्दों पर वोट मिलता है और कुछ लोग धार्मिक भावनाओं को भड़का कर वोट लेने का काम कर रहे हैं. जब से बिहार में बीजेपी सत्ता से अलग हुई है, वो माहौल बिगाड़ना चाहती है.
इस तरह के दंगों को रोकने में राज्य सरकार की भी बड़ी जिम्मेदारी है. कानून व्यवस्था राज्य का विषय है. उनकी भी जिम्मेदारी बनती है. भाईचारा और सौहार्द का माहौल बनाना भी प्रशासन की जिम्मेदारी है. बिहार को एक सबक मिला है और मैं समझता हूं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इससे सबक लेकर और चौकन्ना रहेंगे ताकि भविष्य में इस तरह की घटना नहीं हो.
(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)