(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
वक्फ संपत्ति पर 'एडवर्स पज़ेशन' और सुप्रीम कोर्ट का आदेश, क्या हैं इसके मायने ?
भारत के कानून में यह हमेशा से है कि जब भी किसी प्रॉपर्टी की बात होती है तो दो तरह की बातें आती हैं. एक होता है 'ओनरशिप' और दूसरा होता है 'पजेशन'. ओनरशिप मतलब उसका मूल मालिकाना हक किसका है और पजेशन मतलब आज के दिन उस पर कब्जा किसका है, फिजिकली वहां कौन रह रहा है?
इसी के साथ एक बात और है. अगर कोई प्रॉपर्टी किसी दूसरे के मालिकाना हक में है और कोई तीसरा आदमी निर्विरोध वहां 12 साल से रह रहा है, तो वह 'एडवर्स पजेशन' का दावा कर सकता है. सरकारी संपत्ति के मामले में ये समय-सीमा 30 साल की हो जाती है. जैसे, किसी सरकारी संपत्ति पर अगर आप 30 साल से अधिक समय से हैं, आपने वहां बिजली का कनेक्शन ले लिया, पानी का बिल देते हैं, आपने वहां बिजनेस शुरू कर दिया, तो सरकार भी आपको वहां से नहीं हटा सकती है. प्राइवेट प्रॉपर्टी के मामले में ये समय-सीमा 12 साल की है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अब वक्फ की प्रॉपर्टी को भी उस दायरे में ला दिया है. अगर मान लीजिए कि प्रॉपर्टी है कोई वक्फ की और वहां भी कोई निर्विरोध रह रहा या रही है, तो अब वे भी उस संपत्ति पर एडवर्स पजेशन के लिए दावा कर सकते हैं.
'एडवर्स पज़ेशन' पर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशानिर्देश
आप कानूनन यह मानते हैं कि इस प्रॉपर्टी पर कानूनन आपका दावा नहीं है, मालिकाना नहीं है. संपत्ति के कागजात आपके नाम पर नहीं हैं, लेकिन चूंकि कोई और आपको हटा नहीं रहा है, निर्विरोध आप रह रहे हैं तो 'एडवर्स पजेशन' के लिए दावा कर सकते हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट के बिल्कुल साफ दिशा-निर्देश हैं. मतलब, 12 या 30 वर्ष की जो समय सीमा है, वह निर्विरोध होनी चाहिए. ऐसा न हो कि बीच में कुछ महीने या साल के लिए आप वहां नहीं रहे हों, तब आप दावा नहीं कर सकते हैं. आपका रहना लगातार होना चाहिए. दूसरा, यह कि जब आप एडवर्स पजेशन का दावा करते हैं तो आपको यह भी बताना होगा कि अमुक संपत्ति आपकी नहीं है. आप ऐसा नहीं कर सकते कि बीच की समयावधि में उस संपत्ति को अपना बताते रहें. आपको साफ-साफ कहना होगा कि उस पर आपका मालिकाना हक नहीं है. आपको मानना पड़ेगा कि अमुक संपत्ति मेरी नहीं है, लेकिन चूंकि मैं इतने वर्षों से रह रहा हूं, तो मुझे दे देनी चाहिए ये संपत्ति.
यह फैसला ऐतिहासिक और दूरगामी महत्व का
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐतिहासिक और दूरगामी महत्व का है. आप सभी जानते होंगे कि भारत में वक्फ बोर्ड संपत्ति के मामले में तीसरे नंबर पर है. पहले दो स्थानों पर भी जो संस्थान हैं, वे सरकारी संस्थान हैं, किसी धर्म विशेष यानी हिंदुओं के नहीं. ऐसे में जब 'एडवर्स पजेशन' की बात वक्फ के संदर्भ में भी हो रही है, तो यह स्वागत योग्य कदम है. जाहिर तौर पर यह वक्फ पर लगाम कसने की कवायद है. जैसे, वक्फ के दावे की कई संपत्तियां ऐसी हैं जिन पर उसका पजेशन नहीं है, पजेशन वहां के लोकल लोगों का है. उन लोकल लोगों को इस फैसले से बहुत राहत मिलेगी. मैं आपको एक उदाहरण देता हूं. केरल के एक पूरे गांव पर वक्फ ने अपना दावा पेश कर दिया. वहां पर 1500 साल पुराना एक मंदिर था, उसको भी वक्फ ने अपना बताते हुए दावा ठोंक दिया. है न मजेदार बात. कल को वक्फ ऐसी जगहों पर अपना दावा नहीं कर पाएगा, तो ये एक बड़ा फर्क तो पड़ेगा.
यह वक्फ के अबाध और अगाध विस्तार को चुनौती देने वाला फैसला तो है ही. कानूनी तौर पर इसको रिव्यू में ले ही जा सकते हैं. यह फैसला चूंकि दो जजेज की बेंच ने दिया है, तो वक्फ यह मांग कर सकता है कि इसे पांच सदस्यीय या सात सदस्यीय बेंच के पास भेजा जाए. दूसरे, वक्फ इतना ताकतवर है, उसके पास पैसे और वकीलों की ऐसी फौज है कि मुझे लगता है कि इसे तुरंत अमली जामा पहुंचाना तो संभव नहीं होगा. कुछ समय तो जरूर लगेगा. वैसे भी, 'एडवर्स पजेशन' के जो मामले हैं, वे भारत में लंबे समय तक चलते हैं. भारत जैसे देश में जहां वक्फ इतना धनवान और इतना ताकतवर है, वहां आम जनता इतनी जल्दी एडवर्स पजेशन के लिए सामने आएगी, मुझे नहीं लगता है.
वक्फ ने तो दिल्ली के 77 फीसदी पर किया है दावा
चूंकि वक्फ बोर्ड एक निजी संस्था है, इसलिए इसमें भी 12 साल का ही अंतराल लागू होगा. हालांकि, गौर करने वाली बात वही है कि अपने देश में मुकदमे समय बहुत लेते हैं. जैसे, आंध्र प्रदेश सरकार का एक मामला था तो वह 2016 से चल रहा था और अब जाकर खत्म हुआ है. तो, राज्य सरकार का मामला इतने दिनों में खत्म होता है. आम जनता का क्या होगा, यह सोच कर देखिए. वक्फ ने तो कर्नाटक के रामलीला मैदान से लेकर नयी दिल्ली के 77 फीसदी इलाके पर अपना दावा कर रखा है. यहां तक कि इंडिया गेट और संसद भवन का भी कुछ हिस्सा इन्होंने 'क्लेम' कर रखा है. काशी-विश्वनाथ मंदिर से लेकर द्वारिकाधीश मंदिर तक इन्होंने क्लेम कर रखा है. तो, आज न कल यह समस्या बहुत बड़ी होने जा रही है.
इसके लिए थोड़ा इतिहास समझें. जब बंटवारे के बाद हमें आजादी मिली तो कुछ मुस्लिम जो भारत छोड़ पाकिस्तान चले गए थे, उनकी प्रॉपर्टी को सुरक्षित रखने के लिए वक्फ को बनाया गया, लेकिन एक के बाद एक सरकारों- इंदिरा गांधी, राजीव गांधी या पीवी नरसिम्हा राव- ने वक्फ को इतना मजबूत किया कि आज के हालात बन गए हैं. आप खुद देखिए न, भारत में 14 फीसदी मुसलमान हैं और वक्फ की प्रॉपर्टी तीसरे स्थान पर है. यह भला कैसे संभव दिखता है? वक्फ ने सभी मस्जिदों-मंदिरों से लेकर बड़े-बड़े ग्राउंड्स हैं, उन पर भी दावा किया है. तभी तो आपको गणेश चतुर्थी मनाने तक के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ता है. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट में कई मामले ऐसे हैं जिनमें वक्फ के अधिकारों को कम करने या उसकी हद तय करने की बात है. उन मामलों पर भी फैसला आना चाहिए.
केवल कानूनी फैसला काफी नहीं
अगर आप एक समुदाय विशेष के लिए एक ऐसा संगठन बनाते हैं, जो केवल उसके लिए लड़ता है या गड़े मुद्दे उखाड़ता है, तो मेरी नजर में वह आर्टिकल 14 का गलत इस्तेमाल है. हमारे संविधान का अनुच्छेद 14 तो बराबरी के अधिकार की वकालत करता है न. अगर वक्फ को आप साल-दर-साल मजबूत करते चले जाते हैं, तो फिर दूसरे धर्म वाले यह मांग क्यों नहीं करेंगे. या तो आप सबको मजबूत करें या फिर सबको वैसा ही छोड़ दें. देखिए, 2012 में मनमोहन सिंह की सरकार ने एक अमेंडमेंट के जरिए वक्फ बोर्ड को इतना शक्तिशाली बना दिया. वक्फ को जो भी प्रॉपर्टी लगेगी, वह उसे मान लेगा और अपने पास रख लेगा. मान लीजिए कि मेरी कोई प्रॉपर्टी है, दिल्ली में और मैं तीन साल नहीं गया वहां और वक्फ ने अगर उस पर कब्जा कर लिया तो मैं कहां जाऊंगा?
अभी हाल ही में आपने देखा होगा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में जो एक अवैध ढांचा है, उसे हटाने के लिए हाईकोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा लड़ना पड़ रहा है. इसलिए, क्योंकि वक्फ ने दावा कर दिया कि वह मस्जिद है. अब वक्फ उसका मुकदमा लड़ रहा है और कपिल सिब्बल उसकी तरफ से मुकदमा लड़ रहे हैं. उनकी एक दिन की फीस लाखों में हैं. आम आदमी कहां जाएगा? तो, कानूनी फैसला ठीक है, स्वागत योग्य है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकार को चौकस होकर कार्रवाई भी करनी पड़ेगी.
(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)