दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर से शानदार जीत हासिल की है. लगातार दूसरी बार दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी को एक ऐसी पार्टी ने हराया है जो राष्ट्रीय पार्टी तक नहीं है. ऐसा चमत्कार बहुत कम राजनीति में देखने को मिलता है. लेकिन काम की जगह कुछ लोग कह रहे हैं कि यह शाहीन बाग की जीत है. शाहीन बाग जीत गया क्योंकि बीजेपी हार गयी. मुझे लगता है कि शाहीन बाग जीत कर भी हार गया या यूं कहा जाए कि केजरवाल जीत कर भी शाहीन बाग से हार गये. अगर केजरीवाल शाहीन बाग चले गये होते तो यह शाहीन बाग की पूरी जीत होती. खैर अब देखना दिलचस्प रहेगा कि जीतने के बाद क्या केजरीवाल शाहीन बाग जाते हैं या कम से कम धरना उठाने की अपील ही करते हैं.


नतीजों के बाद लगता है कि शालीन बाग नहीं होता तो भी बीजेपी को इतनी सीटें मिल ही जाती. फिर क्यों पूरे चुनाव में हिंदु मुस्लिम करना पड़ा. दरअसल बीजेपी के पास केजरीवाल से लड़ने के लिए कोई हथियार नहीं था मजबूरी का नाम था शाहीन बाग. बीजेपी को लग रहा था कि केजरीवाल इस जाल में फंस जाएंगे और बीजेपी चुनाव निकाल ले जाएगी. लेकिन बीजेपी की चाल को केजरीवाल भांप गये. शालीन बाग पर धरना देने वालों के पास तो नहीं गये लेकिन धरने के अधिकार का समर्थन करके साथ ही जोड़ दिया कि जनता को परेशानी नहीं होनी चाहिए. उसके बाद तो साफ कह दिया कि अमित शाह की पुलिस चाहे तो शाहीन बाग को एक दिन में उठवा सकती है लेकिन वो ऐसा करना ही नहीं चाहते.


उधर बीजेपी नेताओं ने पहले करंट लगने, शाहीन बाग को शर्म बाग कहने, गोली मारने के और रेप करेंगे शाहीन बाग वाले जैसे बयान देने शुरु कर दिये. इससे माहौल बीजेपी के पक्ष में उतना नहीं हुआ जितना कि खिलाफ हो गया लगता है. उदारवादी हिंदु को यह पसंद नहीं आया. युवा वर्ग को इसमें सियासत दिखी. कम से कम नतीजे तो ऐसा ही बता रहे हैं.


कुछ कह रहे हैं कि मुफ्तखोरी की जीत है, अब इसपर बहस हो सकती है क्योंकि सभी दल ऐसा ही कुछ करते रहे हैं. यूपी में बीजेपी किसानों का कर्ज माफ करने के वायदे पर चुनाव जीत गयी थी. राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस इसी वायदे पर सवार होकर सत्ता में लौटी थी . यहां मुझे लगता है कि दिल्ली की जनता ने मुफ्त पानी बिजली का कर्ज वोट के रुप में उतारा. यहां मुफ्तखोरी की बात बीजेपी ने की जिससे दिल्ली के वोटर ने खुद को शर्मसार महसूस किया. यहां राजौरी गार्डन का किस्सी याद आता है. वहां मेन मार्केट में एक दुकानदार ने मुझे बताया था कि उनके यहां पांच कर्मचारी काम करते हैं और मुफ्त पानी बिजली मोहल्ला क्लिनिक के कारण खुश रहते हैं. अब घर में बच्चा बीमार पड़ता है तो छुटटी लेकर घर नहीं भागते. पत्नी बच्चे को मोहल्ला क्लिनिक ले जाती है. आगे दुकानदार का कहना था कि कर्मचारी समय पर दफ्तर आते हैं , ग्राहकों से प्यार से बात करते हैं , देर शाम तक रुक भी जाते हैं और ऐसे में दुकान की बिक्री बढ़ रही है . मेरे लिए यह तर्क हैरान करने वाला था. लेकिन चुनाव के नतीजे बताते हैं कि केजरीवाल की योजनाओं का लाभ किस तरह से लोगों को मिल रहा है. प्रत्यक्ष रुप से और अप्रत्यक्ष रुप से. मुफ्त पानी बिजली का तोड़ बीजेपी नहीं निकाल सकी और केजरीवाल ने मजमा लूट लिया.